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सोमेश्वर महादेव (जखाली) एक विश्वास और आस्था ।

Pahado Ki Goonj

*सोमेश्वर महादेव (जखाली) एक विश्वास और आस्था

उत्तरकाशी / बड़कोट :- ब्यूरो

उत्तराखण्ड को पुराणों में केदारखण्ड़ के नाम से जाना जाता है वास्तव मे हमारी ये पावन भूमि देवी-देवताओं के अनेको मन्दिरों से सुशोभित हैं।

ऐसी ही एक कथा है *सोमेश्वर महादेव* की। जिनका एक प्राचीन मन्दिर उत्तरकाशी जनपद के नौगांव विकासखण्ड के जखाली गांव में स्थित है । यह गाँव नौगाँव से राजगढी़ रोड़ पर 15 किलोमीटर गडोली और वहां से लगभग 6 किलोमीटर कुड़ ,नाल्ड,कोटला होते हुए जखाली पहुंचा जाता है |सोमेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर देवदार व बांज बुरांस के बीच स्थित बनाल पटी के शीर्ष मुकुट को दर्शाता है यह मंदिर बनाल पटी के शिर्ष पर स्थित अपने प्राकृतिक सौन्दर्य वातावरण से सुसज्जित है जहाँ के कण कण मे महादेव जी विराजमान है बनाल पट्टी के ग्राम जखाली मे यह प्राचीन मंदिर है, जो कई सदियों से अपने पौराणिक स्वरूप में ही विद्यमान है! मंदिर में हमारे आराध्य ईस्ट देवता सोमेश्वर महादेव विराजमान हैं! इस क्षेत्र के कई गॉव इन्हें अपना कुल देवता मानते हैं। *सोमेश्वर महादेव* के उत्तराखण्ड में कई मंदिर है, और हर जगह अलग-अलग देव मूर्तियों के रूपों में पूजे जाते हैं,
ये मन्दिर जहां भी स्थित है एक ऊँचे क्षेत्र मे स्थापित हैं, वह मोरी तहसील का #जखोल सोमेश्वर महादेव* हो या #खरसाडी़ गीठ सोमेश्वर महादेव* हो या #गंगाड में भी सोमेश्वर मंदिर है * हो या फिर हर्षिल #मुखवा और #उपरीकोट उत्तरकाशी का *सोमेश्वर महादेव* का मन्दिर हो, या बड़कोट तहसील के #जखाली #सोमेश्वर महादेव जो पुरोला के मट्ठ गांव मे भी रहते हैं
, सभी में कई समानतायें हैं जैसे कपूआ का नृत्य हो या डांगरों के उपर चलना हो या डांगरों को मुंह मे लेकर किया जाने वाला देव नृत्य हो, या पालकी का मुड़ना हो, या मेले से पहले जागरण का आयोजन हो, सभी जगह ये समानतायें देखने को मिलती हैं।कहीं पर जागरण तो कहीं पर सेलकू के रूप में मेले से पहले जागरण मनाया जाता है |और सभी स्वरूप का कुल्लू कश्मीर से इतिहास शुरू होता हैं| जो कि जागरे या कपूआ में वर्णित है जहां से ये सब महेन्द्रथ बंगाण पहुचे। शायद वहीं से क्षेत्रों का बटवारा हुआ होगा। वहां से हनोल और हनोल से जखोल पहुंचे, जहां एक महाराज वहीं रूक गये बाकी सब आगे जखाली ,जाख की तरफ बढ गये | *सोमेश्वर महादेव* जखाली यहां से ईडक बनाल पहुंचे। एक किवदन्ति के अनुसार ईडक गांव में 16वी सदी के आसपास जखाली गांव के एक भेडाल को सोमेश्वर महादेव की छोटी मूर्ति मिट्टी के नीचे मिली उस भेडाल के वंशज भगल्याण (पंवार) कहलाये |और वही वंशज आज भी महाराज के बजीर है |शायद बड़ी मूर्ति को बाद में बनाया गया होगा | ईडक गांव में महादेव के मन्दिर के अवशेष आज भी मौजूद है। आज भी जब कभी सोमेश्वर महादेव ईड़क बनाल आते है तो महाराज की मूर्तियो में एक अलग ही चमक देखने को मिलती है | वहां से कोटला (नगदाड़ा) में महादेव ने अपना डेरा डाला,जहां महाराज के पहुचते ही बायकू बीर ने सोमेश्वर महादेव का बीर (गण )बनना स्वीकार किया जहाँ गांव वाले नदी का पानी पीने को मजबूर थे, लोगों ने महाराज को अपनी परेशानी बताई, तो महाराज ने अपने मन्दिर के नीचे से पानी की जलधारा निकाल कर लोगों की परेशानी दूर की। जो जलधारा आज भी विद्यमान है। और उस जगह महादेव का मन्दिर 20वी सदी मे दुबारा बनाया गया। और गांव कोटला के निवासी महाराज के खुंद कहलाते है |
एक अन्य किवदन्ति के अनुसार उस समय से पहले जखाली के बगल में घुण्ड़ गांव में चाकरयाण वंश के लोग रहते थे , जिन्होंने बायकू बीर का(जो बाद में सोमेश्वर महादेव का बीर बना) अपमान किया था जिससे बायकू बीर ने क्रोधित होकर पूरे वंश का नाश होने का बचन दिया और कुछ सालेा बाद पूरा गांव एक एक कर समाप्त हो गया उसके वाद वर्तमान समय के चौहान वंश का उदय हुआ | ये लोग हिमांचल के बार्डर पर स्थित वंकवाड़ गांव ये से यहां आये | नगदाड़ा से लगभग 17 वी सदी में महाराज जखाली पहुंचे। वहां की प्राकृतिक कन्दराओ से सुशोभित वनो के बीच मे प्रकृति की गोद मे बसे गांव में महादेव का मन्दिर बनाया गया,जहां पूर्व दिशा में एशिया का सबसे बड़ा देवदार का बन क्षेत्र जहां स्थित मड़ेश्वर महादेव और ड़ान्डा का देवता तथा पश्चिम में कोटाल्टिया नामक बन मात्रिकाओ का पहाड़ और बीच में बसा जखाली गांव जहां महादेव का मन्दिर एक शुद्द पहाडी़ शैली में बनाया गया | जिसमें पत्थर और लकडी़ पर नक्कासी ऊकेरी गयी है, और काष्ट कला का एक सुन्दर चित्रण दर्शाया गया है | इस मन्दिर की दिब्यता और भब्यता देखते ही बनती है |
सोमेश्वर महादेव की वन्दना में कुछ लोक पंक्तिया क्षेत्र मेंआज भी प्रचलित है कि तेर देवरा सोमेश्वर मुई चढाऊ लेसर ज्याण (एक विशेष प्रकार का फूल जो काफी ऊँची चोटियों पर मिलता है। ) या महाराज द्वारा बोली जाने वाली पंक्ति दुई गाडा़ पन्द्रह सौ तुमू मू बैठगाट जिसमें दो नदियो का सम्बन्ध रूपीन और सुपीन से है और पन्द्रह सौ बनाल पट्टी की जनसंख्या जो शायद उस समय रही होगी।
या बाकरी मारी धनकी कर सोमेश्वर मन की
ऐसी लोक पंक्तियाँ आज भी बोली जाती है
यहां *सोमेश्वर महादेव* बनाल पट्टी के कई गांवो मे पूजे जाने लगे। ईडक, कोटला, जखाली, धौसाली , घुण्ड आदि जो आज भी इन्हे अपना ईष्ट देवता मानतें है |
महादेव के साथ इन के गण के रूप मे 52 बीरों में सुमार संगटारा और भाइकू बीर तथा 64 कालकाओ में सामिल काली आज भी पूजे जाते हैं। किसी धार्मिक अनुष्ठान में या महाराज के मेले में अपने दर्शन अवश्य देते है। लगभग 19वी शताब्दी में बनाल पट्टी से कई परिवारों ने रवांई घाटी मे पलायन किया। जहां वे समाधि मठ, खडक्यासेम, भद्राली,
सुकडाला, धीवरा, सुनाली महरगांव, लमकोटी,उपला मठ, बिचला मठ, आदि गांवो में बस गयें |
इसी समय 19वी सदी के प्रारम्भ मे आसपास के गांवो ने मिलकर समाधि मठ में एक और मन्दिर का निर्माण किया इस क्षेत्र के कई गांव आज भी इन्हें ईष्ट के रूप मे पूजती हैं। कई सालो से पोराणिक परम्परायें कायम रहने से यह मन्दिर आज भी आस्था का केन्द्र बना हुआ है *सोमेश्वर महादेव* न्याय एवं पुत्र बरदान के लिये क्षेत्र मे माने जाते थे। और इनकी सुराही (पानी का बर्तन) पानी के लिये जानी जाती थी। जब क्षेत्र मे बारिश नही होती थी तो लोग सोमेश्वर महादेव की शरणो में आते थे, और महादेव कभी भी भक्तों को निराश नही करते थे। अब इसे शक्ति कहे या विश्वास। पर क्षेत्र में पुत्र वरदान के कई उदाहरण आज भी मौजूद है, जो खुद को महाराज का दिया वरदान मानतें है | क्षेत्र के कई लोग आज भी महादेव के मन्दिर मे नित्य आते है और मान्यता है कि महादेव किसी को निराश नही करते।
*पूजा विधि*
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*सोमेश्वर महादेव* के मन्दिर में रोज पूजा होती है जिसमे गुगल, मांसी डेला केदारपात्री ( विशेष प्रकार की प्राकृतिक धूप जो ऊँची पहाडियों में मिलती है) और पुष्प चावल दुध आदि से दिन में 12 बजे से 3 बजे के बीच होती है। पूजा के समय मन्दिर में घन्टी शंख लोकवाद्य यंत्र ढोल दमाऊ और रणसिंगे आदि बजाये जाते है इसके बाद शांम को दीया आरती और नमती होती है। और रात्री के अन्तिम प्रहर में प्रभात नामक पूजा होती है। और ये सब काम पुरोहित बजीर खुंन्द व अन्य कारसेवको के सहयोग से होता है।
*सोमेश्वर महादेव* के हर साल दो मेले होते है एक मेला 18 गते ज्येष्ठ जो जखाली मे आयोजित होता है। पलायन के बावजूद इस मेले के लिये लोग रामासिराई से बनाल पट्टी जाते है|
और दूसरा 18 गते मंगसीर जो समाधि मठ रवांई पुरोला में होता है और तीसरा मेला 28 गते ज्येष्ठ ईड़क बनाल में होता है,जो एक साल बाद होता है | इन मेलों में अपनें ईष्ट को मानने वाले जो कहीं बाहर नौकरी कर रहे है वें सब अवश्य घर आते है। इन मेलों में कई लोग अपनी समस्याएँ लेकर आते है और समस्या का समाधान करके देव दर्शन कर प्रसन्न मन से घर जाते है। महादेव के दर्शन मात्र से ही मन को अपार शान्ति की अनुभूति होती है।
महादेव आज भी जखाली,धौसाली, घुण्ड,कोटला, ईडक सभी गांव बनाल और समाधि मठ, बिचला मठ, उपला मठ,खडक्यासेम, धीवरा, सुनाली आदि सभी गावं के ईष्ट देवता है । स्थानीय निवासी विकास पंवार का कहना है कि
महादेव ना जाने हमारी कितनी पीढियां आपकी सेवा मे गुजर गयी आज हम सेवा में है और कल हमारी आने वाली पीढि महादेव कि सेवा मे ऐसे ही सेवारत रहेगी।

*जय सोमेश्वर महादेव*

सआभार  :-  विकास सिंह पंवार

*ग्राम – जखाली बनाल*
*हॉल निवास -समाधि मठ*
पुरोला उत्तरकाशी

 

 

 

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