उत्तराखंड में न्याय के देवता माने जाते हैं महासू देवता ।। ————- (मदनपैन्यूली ) बड़कोट उत्तरकाशी–
महासू देवता मंदिर देवभूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून जिले में चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तकट पर स्थित है । कहा जाता है कि यह मंदिर 9वीं शताब्दी में बनाया गया था और ये मंदिर मिश्रित शैली की स्थापत्य कला को संजोए हुए है |
महासू देवता मंदिर भगवान शिवजी के अवतार “महासू देवता” को समर्पित है एवम् महासू देव को “नहादेव” का रूप कहा जाता है वर्तमान में यह मंदिर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के संरक्षण में है । मिश्रित शैली की स्थापत्य कला को संजोए यह मंदिर देहरादून से 190 किमी और मसूरी से 156 किमी दूर है । ‘महासू देवता’ एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द ‘महाशिव’ का अपभ्रंश है । चारों महासू भाइयों के नाम “बासिक महासू” , “पबासिक महासू” , “बूठिया महासू (बौठा महासू)” और “चालदा महासू” है , जो कि भगवान शिव के ही रूप हैं ।
महासू देवता जौनसार बावर , हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ईष्ट देव हैं | उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी संपूर्ण जौनसार-बावर क्षेत्र रंवाई परगना के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर और जुब्बल तक महासू देवता की पूजा होती है । इन क्षेत्रों में महासू देवता को न्याय के देवता और मन्दिर को न्यायालय के रूप में माना जाता है ।
वर्तमान समय में महासू देवता के भक्त मन्दिर में न्याय की गुहार करते हैं और महासू देवता अपने भक्तो को न्याय दिलाते है एवम् उनकी मनोकामना को भी पूरी करते है।
महासू देवता मंदिर के बारे में यह मान्यता यह है कि महासू देवता ने किसी शर्त पर हनोल में स्थित यह मंदिर जीता था । महासू देवता के मंदिर के गर्भ गृह में भक्तों का जाना मना है।
केवल मंदिर का पुजारी ही मंदिर में प्रवेश कर सकता है। यह बात आज भी रहस्य है। मंदिर में हमेशा एक ज्योति जलती रहती है जो दशकों से जल रही है । महासू देवता मंदिर के गर्भ गृह से पानी की एक धारा भी निकलती है , लेकिन वह कहां जाती है, कहां से निकलती है आज तक इसके बारे में कोई पता नहीं लगा पाया है |
महासू देवता मंदिर यूं तो अपनी मान्यताओं के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है लेकिन इसके बारे में एक खास बात ये है कि यहां हर साल राष्ट्रपति भवन से नमक आता है ।
महासू देवता मंदिर के बारे में यह भी बताया जाता है कि त्यूनी-मोरी रोड पर बना महासू देवता का मंदिर जिस गांव में बना है उस गांव का नाम हुना भट्ट ब्राह्मण के नाम पर रखा गया है। इससे पहले यह जगह चकरपुर के रूप में जानी जाती थी। पांडव लाक्षा ग्रह( लाख का महल) से निकलकर यहां आए थे। हनोल का मंदिर लोगों के लिए तीर्थ स्थान के रूप में भी जाना जाता है ।
इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां अगर आप सच्चे दिल से कुछ मांगो तो आपको मिल जाता है। दरअसल इस मंदिर को न्यायाधीश कहा जाता है । वर्तमान समय में कोविड-19 जैसी महामारी को देखते हुए उत्तराखंड में मंदिर पूर्ण रूप से बंद कर दिए गए थे लेकिन अब सामाजिक दूरियों का पालन तथा मंदिर में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को सिनटाइस कर मंदिर में दर्शन की अनुमति दी जा रही है लेकिन मंदिर मैं कोरोनावायरस की दृष्टिगत मंदिर की घंटियों पर कपड़ा बांधकर धंटिया बजाना तथा पुजारियों द्वारा तिलक लगाने पर अभी भी प्रतिबंध है यहां पर गोल पत्थर जिसको कि लोग उठाने का प्रयास करते थे उन गोल पत्थरों की शीला को भी पूर्ण रूप से छूने के लिए प्रतिबंधित किया गया है।