जीवन में कथा को उतारने वाले वक्ता से ही कथा श्रवण करें
– *मुकुंदानंद ब्रह्मचारी*
जोशीमठ, पहाड़ों की गूंज श्रीमद्भागवत की कथा हमें उस वक्ता से सुननी चाहिए जिसने कथा को अपने जीवन में उतार लिया हो। कथा में कहे गये उपदेशों के अनुसार ही वक्ता को आचरण करने वाला होना चाहिए। पाखण्डी से कथा श्रवण नही करना चाहिए। श्रीमद्भागवत महापुराण के प्रारम्भ में ही वक्ता के गुणों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
उक्त बातें पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज के शिष्य प्रतिनिधि स्वामिश्रीः 1008 अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती महाराज के प्रथम नैष्ठिक शिष्य मुकुंदानंद ब्रह्मचारी जी ने कही।
उन्होंने सप्ताह श्रवण की विधि का वर्णन करते हुए कथा के अन्तराल में वक्ता एवं श्रोता द्वारा पालनीय नियमों का वर्णन किया ।
प्रमुख रूप से स्वामी अभयानन्द तीर्थ (मौनी जी), केशवानन्द ब्रह्मचारी,
आदि जन उपस्थित थे।
कथा का प्रारम्भ चिरंजीवी अनमोल के मंगलाचरण से हुआ। संचालन अभिषेक बहुगुणा जी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन ब्रह्मचारी विष्णुप्रियानन्द जी ने किया। श्रीमद्भागवत महापुराण की मंगलमयी आरती से कथा का विश्राम हुआ।