जुमले में फँसी गैस – 1
●दावा था 20 trillion cubic feet गैस मिलने का!
आज 1 trillion cubic feet मिलना भी दूभर है !!!
.
●हाल ही में अरुण शौरी ने एक इंटरव्यू में कहा कि जब उन्हें “गुजरात विकास मॉडल” की असलियत समझ आई तब तक मोदी प्रधानमंत्री बन चुके थे. यानि कि तीर कमान से निकल चुका था. अभी तक कमान से निकले इस तीर का लक्ष्य रहा है चेहते उद्योगपतियों, अफसरों, नेताओं एवं गुजरात के हित साधना.
●मोदी, गुणी अर्थशास्त्री मनमोहन को कुछ नहीं समझते थे. जबकि उनके खुद के अर्थशास्त्र में न जाने कितने झोल हैं. इसका क्लासिक उदाहरण है कृष्णा-गोदावरी (KG) बेसिन में गुजरात स्टेट पेट्रोलियम कारपोरेशन (GSPC) द्वारा हासिल किया एक ब्लाक. 13 साल पहले मोदी ने गुजरात मुख्यमंत्री की हैसियत से चमत्कारी दावा किया था कि GSPC के KG बेसिन ब्लाक में 20 trillion cubic का भंडार है, जिसका मूल्य 22 ख़रब रुपये है.
●मोदी ने KG बेसिन ब्लाक से 1,500 करोड़ रूपये खर्च करके दो वर्ष
यानि कि 2007 में गैस उत्पादन करने का आश्वासन दिया था. परन्तु गैस आज तक नहीं निकली. गैस अन्वेषण पर मोदी द्वारा अनुमानित खर्च से 13 गुना ज्यादा यानि कि 20000 करोड़ रुपये खर्च हो चुका है. इस विशालकाय खर्च के सन्दर्भ में सवाल उठता है कि आखिर भारत के “सबसे काबिल प्रधानमंत्री” के बड़े-बड़े हवाई दावे ज़मीन पर उतरते क्यों नहीं?
एक सवाल और – 20000 रुपये के खर्च में रेवड़ियाँ बंटी थी के नहीं? इस खर्च पर CAG ऊँगली उठा चुका है.
अब ONGC को KG बेसिन ब्लाक में GSPC की 80% हिस्सेदारी 8000 करोड़ रुपये में खरीदवा दी गयी है. ONGC के भूतपूर्व वरिष्ठ अधिकारी अशोक वर्मा ने इस खरीदारी को ONGC के लिए ज़बरदस्त घाटे का सौदा बताया है. अशोक वर्मा 31 जुलाई 2015 को ONGC से रिटायर हुए थे. जब ONGC बोर्ड ने KG बेसिन ब्लाक में GSPC की हिस्सेदारी खरीदना मंज़ूर किया, तो वर्मा ने Economic Times में इसका विश्लेषण किया था. उस विश्लेषण की कुछ ख़ास बातें हैं –
●ONGC ने बताया था कि उसने Ryder Scott को GSPC के KG बेसिन ब्लाक में गैस रिज़र्व का अनुमान लगाने का जिम्मा दिया है. परन्तु ONGC-GSPC डील की खबर में Ryder Scott का जिक्र नहीं है और न ही इस बात का जिक्र है कि इस डील का विश्लेषण आर्थिक सलाहकारों से करवाया है.
●उपरोक्त दोनों क़दमों का उठाया जाना ज़रूरी है क्योंकि GSPC ने अपने ब्लाक में 20 trillion cubic feet (TCF) गैस होने का दावा किया था. परन्तु Directorate General of Hydrocarbons (DGH) ने जो फील्ड डेवलपमेंट प्लान तैयार किया है उसमे सिर्फ 2 TCF गैस होने का जिक्र है जिसमे से केवल आधी ही यानि कि 1 TCF ही निकाली जा सकेगी.
●KG बेसिन में गैस भण्डार बहुत गहरे और उच्च दबाव–उच्च तापमान वाले हैं. ऐसे भंडार तकनिकी रूप से एक बड़ी चुनौती देते हैं. GSPC का ब्लाक ONGC के अपने फील्ड से बहुत गहरा है. ONGC अपने कई गहरे फील्ड से गैस निकालने में असफल रहा है. कहीं तकनीकी चुनौती है, तो कहीं गैस निकालने का खर्च इतना ज्यादा है कि उसे मार्किट प्राइस पर बेचने से घाटा होगा.
●ONGC रूस में ख़रीदे Imperial Energy के गैस भंडार से उत्पादन बढ़ा नहीं पाया. KG बेसिन और Cauvery बेसिन में कई गैस भंडारों से ONGC उचित तकनीक के अभाव में उत्पादन नहीं कर पा रहा.
●संभव है कि GSPC ने गैस खोज-प्रसार प्रसार के लिए जो इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा किया है, वह ONGC के लिए उपयोगी साबित हो. परन्तु यह इंफ्रास्ट्रक्चर तभी उपयोगी होगा अगर गैस निकेलगी अन्यथा यह पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाएगा और इसे बड़ा खर्च करके हटाना पड़ेगा.
●ONGC की इस खरीद की खबर में इस बात का कोई जिक्र नहीं है कि KG बेसिन से सम्बंधित 20000 करोड़ रुपये का जो खर्च है उसको कैसे चुकाया जायेगा. इस कर्ज पर 1800 करोड़ रुपये सालाना ब्याज देना पड़ता है.
●बेहतर होता अगर ONGC, GSPC या दूसरी कंपनियों के साथ वह टेक्नोलॉजी लेने का प्रयास करता जिससे उन फील्ड से किफायती खर्च से गैस निकाली जा सकती जिनसे उत्पादन होना है या जो न के बराबर उत्पादन कर रहें हैं।साभार