साइंटिफिक -एनालिसिस
संविधान हत्या दिवस 25 जून को नहीं 11 जुलाई को बनाना पड़ेगा
छछूंदर के सिर में चमेली का तेल, अंधेरी नगरी चौपट राजा, अधुरा ज्ञान आफत पर जान, बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद, बन्दर के हाथ में उस्तरा देना, ऐसे न मालुम कितने मुहावरों का सत्यापन गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने संयुक्त सचिव के माध्यम से 11 जुलाई 2024 को एक अधिसूचना सा.स.17015/53/2024 – आईएस – 1 को जारी करके किया हैं
वो आप विज्ञान के सिद्धान्तों व तार्किकता के आधार पर साइंटिफिक-एनालिसिस ने जो सच को 30 जून 2024 को सामने रखा व 1 जुलाई को देश के कई मीडिया प्लेटफार्म पर प्रसारित एवं प्रकाशित हुआ, पहाडों की गूँज ने भी उसे प्रकाशित करा आप एक बार पुन: इसका आकलन करके स्वयं तय करलें।
इस अधिसूचना के माध्यम से यह घोषित करा गया हैं कि 25 जून को “संविधान हत्या दिवस” बनेगा जिसमें 1975 में लगे आपातकाल के दौरान भारत के लोगों पर ज्यादतियां और अत्याचार हुये उसके लिए संघर्ष करने वाले सभी लोगों को श्रृद्धांजली दी जायेगी।
भारत में आपातकाल 25 जून, 1975 को लगाया था जो राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी या कैबिनेट की सिफारिश पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के तहत लगाया था।
यह खबर उस समय की मीडिया ने राष्ट्रपति ने आपातकाल की करी घोषणा के रूप में प्रकाशित करा था। यह सभी संविधान में पहले से मौजूद धारा के अनुरूप हुआ। इस कारण इसे किसी भी दृष्टिकोण से संविधान की हत्या नहीं कह सकते हैं। यदि संविधान को साईड कर किसी अलग मनमर्जी के नियम व जबरिया आदेश से होता तो इसे संविधान की हत्या भी नहीं कह सकते हैं। यहां हत्या शब्द का इस्तेमाल भी पूर्णतया अनैतिक व किसी भी रूप में न्यायोचित नहीं हैं।
यदि संविधान को जीवित मान लिया जाये तो एक बार हत्या के बाद उसे दुबारा जीवित करना असम्भव हैँ। यह सब कार्यपालिका यानि तथाकथित सरकार के फैसले से हुआ परन्तु इस पर हस्ताक्षर व आधिकारिक मोहर राष्ट्रपति ने लगाई।
यहां पर राष्ट्रपति को अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए था। उनके पास संविधान के तहत उच्चतम न्यायालय व मुख्य न्यायाधीश से सलाह मांगने का अधिकार था। इसलिए कार्यपालिका की हर सलाह पर आंख मूंद कर साईन करने का काम अन्धा शासन कहलाता हैं। इस फैसले से लाभ हानि की दोनों परिस्थितियों के लिए मूलतया राष्ट्रपति ही जिम्मेदार माने जायेंगे।
प्रधानमंत्री के पद पर रहकर गलत सलाह देने का परिणाम इन्दिरा गांधी ने बडी हार के रुप में भुगतना पडा। यह निर्णय कितना जनविरोधी, अत्याचारी, दमनकारी व जनता को गुलामीता में धकेलने का था इसका अहसास उन्हें बाद में खुद को हो गया इसलिए उन्होंने सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। हिन्दू, सनातन, इस्लाम, ईसाई, जैन, सिक्ख, बौद्ध व दुनिया के किसी भी धर्म व सम्प्रदाय को उठाकर देख ले तो माफी मांगने वाला बड़ा होता है और माफ कर देने वाला उससे भी बड़ा होता है।
इन्दिरा गांधी को इस काम के लिए सजा देनी थी ताकि आने वाले समय में ऐसा दुस्साहस कोई और राजनेता न कर सके इसके लिए नैतिक, न्यायिक, संवैधानिक व लोकतान्त्रिक रूप से कही तरिके मौजूद थे व आज भी हैँ।
राजनैतिक शत्रुता, वैमनस्य, घृणा, टकराव, हीनता, संकीर्णता इतनी बढ़ गई हैं कि वो संविधान के साथ हत्या शब्द को ही जबरन चस्पा कर रहा हैं और उस समय संविधान के लिए संघर्ष करने वालों सहित पूरी देश की जनता को नकारा, अज्ञानी , राष्ट्र भक्ति से कौसो दूर बता रहा हैं।
आखिरकार संविधान के अनुसार देन में सरकार सभी देशवासीयों की बनती हैं।
गृह मंत्रालय की अधिसूचना के तहत सीधे राष्ट्रपति के संवैधानिक पद पर आरोप लगाया गया हैं और उसे जनता पर ज्यादतियां व अत्याचार करने वाला निरंकुश बताया गया हैं। राष्ट्रपति पद पर बैठे व्यक्ति पर कोई आरोप व मामला संविधान के तहत नहीं लग सकता हैं व इस पर बैठने वाले व्यक्ति की कोई निजी जिन्दगी भी नहीं होती हैं और अब उसी संविधान के नाम पर मीले अधिकार से ऐसी बैढ़ग, नियम-कायदे विहीन, बिना धरातलीय आधार वाले अध्यादेश निकाले जा रहे हैं।
शैलेन्द्र कुमार बिराणी युवा वैज्ञानिक
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राष्ट्रपति के अभिभाषण पर प्रधानमंत्री धन्यवाद प्रस्ताव पर आज जवाब व अपनी प्रतिक्रिया देंगे। इसके बाद पुरी संसद की लोकतन्त्र को लेकर उनकी समझ, ज्ञान, शिक्षा का पता चल जायेगा कि वो सही कदम उठाते हैं या अल्पबुद्धि, नासमझी या राजनैतिक षडयंत्र से लोकतन्त्र की जड़ो को खोदते हैं।
राष्ट्रपति की सरकार का जनता से चुनावी समर्थन, आपातकाल को लेकर टिप्पणी, दस वर्षों से उनकी सरकार इत्यादि-इत्यादि पर सच जानने के लिए पुरा 🔭साइंटिफिक-एनालिसिस🔬 इस लिंक पर क्लिक करके पढ़े ⤵️
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