बड़कोट / -जहाँ देश भर में सरकार स्वच्छता को लेकर अभियान चला रही है इसी के तहत नगर पालिका में 18 लाख की लागत से निर्मित स्मार्ट शौचालय के अस्तित्व पर खतरे के बादल मंडराने लगे है जीरो टॉलरेन्स के दावे जितने भी करें ढाक के तीन पात है।
चार धाम यात्रा शुरू होने से पूर्व ही स्मार्ट शौचालय इसकी सुरक्षा के लिए नगर पालिका परिषद बड़कोट द्वारा जो सीसी ब्लाक बनाये गए थे वे बिन बरसात ही भरभरा कर गिर गए। इससे यह स्मार्ट शौचालय शुरू होने से पहले ही ख़तरे जद में आ गया है। यहां चौकानें वाली बात यह है कि 18 लाख की लागत से निर्मित ई टॉयलेट को बने एक वर्ष का समय भी पूरा नहीं हुआ की यह विवादों में आ गया है। शौचालय का निर्माण तब हुआ था जब स्थानीय निकाय में प्रशासक नियुक्त थे। बेमौसम बरसात व भू-स्खलन के चलते यह शौचालय उपलब्धि के बजाय विवादों में आ गया है। राज्य में नगर निकाय चुनावों की आचार संहिता के दौरान इस शौचालय को नगर पालिका द्वारा निर्मित करवाया गया था। जब यह बना तो इसे उत्तर भारत का पहला स्मार्ट शौचालय बताया गया। जिसे नगर पालिका बड़कोट स्थित यमुनोत्री व गंगोत्री धाम को जाने वाले मार्ग के दोबाटा में बरसाती गधेरे के पास गलत जगह चिन्हित कर बनाया गया। नगर पालिका प्रशासन ने इतनी ज्यादा लागत से बिना किसी तकनीकी ज्ञान से भूमि चयनित कर 18 लाख रुपये की रकम ठिकाने लगा दी। वर्तमान में स्थिति यह है कि यात्रियों को शौचालय की हाईटेक सुविधा देने से पहले ही शौचालय की सुरक्षा के लिए दिए गए चार लाख रुपये के सीसी ब्लाक भी चंद दिनों में भूस्खलन की जद में आ गये। साथ ही शौचालय में एंट्री के लिए बने दो व पांच रुपये के क्वाइन बॉक्स भी शरारती तत्वों ने नष्ट कर दिये हैं। इस सम्बंध में जब नगर पालिका परिषद बड़कोट की अध्यक्ष अनुपमा रावत से बात की गई तो उनका कहना था कि यह कार्य उनके कार्यकाल से पूर्व ही करवाया गया है। वह इसकी तकनीकी जांच करवाकर कार्यवाही करेंगे। अधिशासी अधिकारी नगर पालिका बताती है कि शौचालय के निर्माण से पूर्व स्थान का तकनीकी परीक्षण नहीं किया गया था। जिसके कारण 18 लाख रुपये की लागत से बना शौचालय और शौचालय की सुरक्षा के लिए लगभग चार लाख की लागत से भरे गये सीसी ब्लाक एक महीने में ही धराशायी होने लगे हैं। इसे स्थानीय लोगों के नजर में सरकारी धन का सरासर दुरूपयोग माना जा रहा हैं। लोगों का पालिका प्रशासन पर आरोप है कि इस शौचालय के निर्माण से पूर्व न तो तकनीकी भूमि परीक्षण किया गया और न ही तकनीकी रूप से स्थान का चयन किया गया। यह ऐसे स्थान पर बना दिया गया जहां बरसाती गधेरा है। इसी कारण यह शुरू होने से पहले ही धराशायी होने के स्थिति में आ गया है। कोन करेगा जांच किस किस पर आएगी वसूली की आंच ।ढेकेदार से वसूली करने के बाद काली सूची में डाला जाय इससे यात्रा पर बुरा प्रभाव पड़ता है।यात्रा हमारे उत्तराखंड की लाइफ़ लाइन है।