आज सब में ..तू ही तू देख रहा..है भगवान…..कितना बदल गया….
है इन्शान…
जब वातावरण शुद्ध हो गया है तो ईश्वर को भी साफ देख रहा है। क्योकि ईश्वर को देखने के लिए तो मन शुद्ध.बचन शुद्ध..कर्म शुद्ध व दृष्टि शुद्ध हो तो हर जगह तू ही तू है…..
ये सब कोरोनो वायरस जैसी महामारी के आने पर संसार का भी भला हो गया। मानुष्य के अंदर रहने से सारा पर्यावरण में बातावरण भी शुद्ध हो गया है। अब तो पशु पछि में भी प्रभु दिखने लगे हैं। सब जीव जंतु स्वतंत्र घूम रहे हैं।विश्व मे आज के लॉकडाउन से कई फायदे ही फायदे हुई हैं।
दिल्ली के लोगो को भी अब आसमान साफ दिखाई दे रहा है तो वे बोल उठे नीलगगन मे तू ही तू है….प्रभु….
चारो ओर का सुंदर पर्यावरण देखकर मेरा मन भी कह उठा–
“”तू जल में है…तू थल में है..कण कण में रज रज में हे प्रभु एक तू ही तू है””।
आजकल जंगलों में आग नही लग रही हैं क्योंकि वो दुष्ट घरों में बंद हैं तो चारों ओर हरा भरा देख मन डोल उठा मन भी बोला उठा—–
“”हर पत्ते पत्ते ..हर डाली में.. हर वन हर उपवन में एक तू ही तू है””…..।
मीडिया में खबर कई विश्व भर की नदीयां भी साफ व निर्मलता लिए शांत रूप में बह रही है देख मन बोला मचल उठा—-
“””नदियों की कल कल में तू है झरनों की झर झर में तू।निर्मल बहती सर सर में बस एक तू ही तू है”””…प्रभु।
इस समय बसन्त बहार है फूलों की शुद्ध महक. चिड़ियों की चहक.मन को हरते हुए आत्मीयता से विजय बोली—–
“”कलियों की कोमलता में.फूलों की महक में .पपीहे की पिहु पिहु में. कोयल की कुंहु कुंहु में एक तू ही तू है””..।
कोरोना से लॉकडाउन हुआ तो देखा पूरा विश्व आज एक जैसा दिख ने लगा पर मन बोला..
“”सर्बत्र दिशा में ,दिख रहा है तू ही वहां तू ही..चहूं दिशा में दिख रहा एक तू ही तू है””।
“””गरजते बादलों में, कड़कती बिजली में,संध्या में प्रभात में, दिवस निशा में एक तू ही तू है””….।
“”””भोर भई सुप्रभात में,तू सूरज में, तू चंदा में, तारा गण में एक तू ही तू है”””।
“”आज हर एक-एक वाणी में, हर हर देव वाणी में,गुरु के ज्ञान में, सतगुरु को जाना चौदह भुवन में दिख रहा बस एक तू ही तू है”””।
“””कोरोना महामारी चौतरफा कहर में, हर गांव से शहर-शहर में,हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब मे बस दिख रहा बस एक तू ही तू है”””।
“”कोरोना को भगाने डॉक्टर बनकर ,पुलिस व जनसेवक बनकर,पूरे जगत में करुणा सैनिक बन आया एक तू ही तू है”””।
“””आज प्रभु का गुन गुणगान,हर एक एक मानव में ,जीव जंतु में,प्यार स्नेह में, ममता बरसा रहा एक तू ही तू है”””।
“”””जगत का पालन हारा, आज सबका बन गया प्रभु दुलारा, तेरा गुण गा रहा विश्व सारा, सबका बन गया सहारा सब पुकारें एक तू ही तू है'”””””।
“विजय” को कबीरा याद आ गया.
कबीर जी बोलते हैं….कि हे!मानव
“””दुख में सुमरन सब करे,सुख में करे न कोई।
जो सुख में सुमरन करे,दुख कहे को होई।।””””
आओ आज कोरोना बहुत कुछ दुनियाँ के इंसानों को बहुत कुछ समझा गया। आपको हमको भी बता गया। कि जीवों पर दया करो। आपस मे मिल कर रहो। तुम सब मेरे ही पुत्र हो। मिलबर्तन से रहो…एकत्व की भावना से कर्म धर्म और अपने भविष्य को सुरक्षित करो। परिश्रम निष्ठा,ईमानदारी व कर्मयोग से कमारा धन से ही स्वस्थ शरीर निरोग्य काया होती है।
और देखा मेरी बनाई दुनियाँ को बर्वाद कर अणु परमाणु , महायुद्ध,से मेरी रचना को नष्ट करने वालों, अपने अहम से बहम करके अहंकार,लोभ,मोह-माया लालच से इस ब्रह्मांड को कष्ट देते हुए जब जब अधर्म की हानि होगी।
मेरे करुणा मयी पुत्र-पुत्रियों,मोन पशु-पछियों,जीव जंतुओं पर अत्याचार करोगे,जो दयालु हैं श्रद्धालु, धार्मिकता से चलने वाले हैं उन्हें सताओगे,और अपने झूठ-ठग से इन आत्माओं को पीड़ित करोगे। उत्पीड़ित की यही आवाज कोरोना के विषाणु-कीटाणु और महामारी बन कर तुम्हारा पिछा करेगी।
धरती पर मैने तुम्हारे लिए सारी सुख सुविधाएं जड़ी बूटियां से लेकर अन्न साग सब्ब्जियों फल फूलों कंद मूलो से सजाई है। सारी दवाये रोगनिवारण के लिए तुम्हारा स्वय का शरीर सछम है।
मेहनत करो, परिश्रम करो,अपनी भूली यादे फिर से ताजी कर अपनी रसोई को जो मेने विशाल रसोईघर को औषधीयालय बना कर दिया है और तुम अपनी रसोई ही भूलते जा रहे हो।मुझसे दूर होते जा रहे हो। इसलिए बीमारियों को सहने की प्रतिरोधक छमता खत्म होती जा रही है।
और तुम डरपोक होते जा रहे हो कमजोर होकर तुम अपने को छीण करते जा रहे हो। मेने तुमको शतायु दी थी तुम मेरे आश्रिवाद चिरंजीब की अवेहलना करते जा रहे हो। अपनी आयु कम करते जा रहे हो। बैठ बैठ कर शरीर को खत्म क्यो कर रहे हो। ये शरीर कार्य के लिए है। खूब इससे कार्य लेकर दुरस्त रखो। तंदुरस्त रखो। तभी में व मेरी आत्मा खुश होती है।
आओ आज से अभी से हम अपने को स्टोनग बनाये…प्रकृति के साथ चले।और संग संग चल कर इसके निकट रहकर स्पर्श करते हुए हम आप सब इसे देखने का प्रयास करें मोक्ष तभी मिलेगा।
अध्यात्म में …जहां से आये हो उसको पहचानो। जानो। वो तुम्हारे अंग संग है। बस शुद्ध ह्रदय, शुद्ध विचार व निर्मल मन तन से इसे जाना जाता है। जैसे कोरोना के भय से आज मानव में 60 प्रतिशत शुद्धता आयी है। इससे वो जान गया कि प्रभु ही सब कर रहा है। इन्शान कुछ नही है। ईश्वर शक्ति महाशक्ति है।
आओ इसके गुण गायें प्रेम से परम् पिता परमात्मा को सर झुकाएं व जो गलतियां जीवन मे हुई है माफी मांगे ओर ईश्वर के बताये मार्ग पर चलें। यही संकेत आपको मिल रहा है। सम्भल जाओ।बस ईश्वर की हर रचना का सम्मान करो। किसी का भी अपमान न करो। जाति धर्म पर गुमान न करो। ये सब मानुष्य ने बनाया है। उसपर मत चलो।
जीव जंतु मनुष्य व पेड पौधों प्रकृति के हर सजीव से निर्जीव से सबसे प्यार करो उनकी रक्षा करो।
हिम पहाड़ नदी धरती सबको अपना अपना कार्य करने दो उनको छेड़ो नही। वे आपके मित्र हैं। उन्हें
प्यार करो उनकी भी रक्षा करो। वे तुम्हारी मदद करेंगे।
धरती पर तुम्हे प्राण दिया तीन लोक नो खण्ड बनाये। पूरा ब्रह्मांड रचा है। सारे के सारे मानव को उपहार स्वरूप भेंट किया है। इस उपहार को प्रभु का पुरुष्कार समझ कर इन्हें भी समान दें क्योकि इनमें भी प्रभु ही समाया हुआ है। ये तभी तो आपके साथ है।
हर इन्शान में प्रभु है इन्शान को भी प्रभु ने ही बनाया है। उसने सब जीव को मोन बना कर बुद्धि विबेक इन्शान को दिया।और इन्शान ने ईश्वर की हर बनाई बस्तु को उधेड़ने तोड़ने व उत्पीड़ित करने उन्हें सताने में लगा दिया। और स्वयं अपनो की मूर्ति बनाकर ईश्वर को भुलाकर में में में में में करता फिरता रहता है।
जबकि उसका इस कृति पर कोई अधिकार नही। असली कृति तो गरीबी गन्दीबस्ती व नदियों के किनारे रहते हुए नरक जैसा जीवन व्यतीत कर भूखे प्यारे और दुखी हैं। पर इनको कोई भी मदद नही बल्कि अपने वेतन व कमाई से चोरी करके संग्रह कर इनका हक मारते हैं।
किसी को आज कल देख रहै है आप लोग भूख मरी में भी भोजन देते हुए फोटो खींच कर लोगो को दिखा रहे हैं। ये नीचता नही तो क्या। ईश्वर इतना देता है क्या तुम्हें फोटो खींच कर देता है। यही इंसानियत खत्म होती जा रही है।
तभी तो सबक नही सिख रहा इन्शान……
अंत में यही कहूँगी….देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान…..कितना बदल गया इन्शान इन्शान…जीव न बदला जंतु न बदले…मानव बना हैवान …अपने स्वार्थ के कारण ….
कितना बदल गया इन्शान….
लेखिका,पत्रकार ,राज्य आंदोलन कारी ,समाज सेवी हैं