देहरादून : विषम भूगोल और 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में वन एवं जन के रिश्ते मजबूत करने के साथ ही जंगलों के जरिये राज्यवासियों की आर्थिकी संवारने के लिए सरकार ने केंद्र की शरण ली है। कोशिश रंग लाई तो केंद्र की ‘स्वदेश दर्शन’ योजना के जरिये न सिर्फ यहां पांच इको टूरिज्म सर्किट निखरेंगे, बल्कि राज्य की बजट जुटाने की चिंता भी दूर होगी।
इस कड़ी में इको टूरिज्म विकास निगम ने इन सर्किट के आने वाले 37 स्थलों व उनके नजदीकी गांवों में तमाम योजनाएं संचालित करने के मद्देनजर सात सौ करोड़ के प्रस्ताव केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय को भेजे हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि नववर्ष में केंद्र से कुछ न कुछ सौगात अवश्य मिल जाएगी।
प्रकृति आधारित पर्यटन को बढ़ावा देने और जंगलों के जरिये ग्रामीणों की झोलियां भरने के उद्देश्य से ही राज्य में पांच इको टूरिज्म सर्किट देहरादून-ऋषिकेश, कोटद्वार, रामनगर-नैनीताल, यमुना-टौंस वैली व नंधौर-चंपावत विकसित किए जा रहे हैं। इनके अंतर्गत 37 महत्वपूर्ण स्थलों के साथ ही आसपास दो सौ से अधिक गांव हैं। योजना तो बनाई गई और कोटद्वार सर्किट से इसका शुभारंभ भी किया गया है, लेकिन इन सर्किट के लिए बजट जुटाना मुश्किल हो रहा है।
इस सबको देखते हुए केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय की स्वदेश दर्शन योजना से राज्य को कुछ उम्मीद बंधी है। वजह यह कि योजना का एक बिंदु इको टूरिज्म भी है। इको टूरिज्म विकास निगम के प्रबंध निदेशक अनूप मलिक के मुताबिक इको टूरिज्म सर्किट के लिए स्वदेश दर्शन में सात सौ करोड़ की योजनाओं के प्रस्ताव भेजे गए हैं।
इसके तहत इन सर्किट में पडऩे वाले स्थलों के पर्यटन के लिहाज से विकास के साथ ही गांवों में युवाओं को रोजगारपरक प्रशिक्षण देने समेत कई योजनाएं शामिल हैं। मंशा यह है कि जंगल को नुकसान पहुंचाए बगैर पर्यटन की गतिविधियां हों और इनसे रोजगार के अवसर पर भी सृजित हों। उन्होंने कहा कि केंद्र ने इन प्रस्तावों पर रुचि दिखाई है और उम्मीद है कि नए साल में कुछ मंजूर हो जाएं।