देहरादून : ‘अखिल भारतीय बाघ आकलन-2018’ के तहत उत्तराखंड में अब 1200 कैमरों के जरिये बाघों की गणना की जाएगी। इसके लिए कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व के अलावा टाइगर बहुल 12 वन प्रभागों को नौ ब्लाक में बांटा गया है, जिनमें अगले हफ्ते से कैमरे लगाने का कार्य प्रारंभ कर दिया जाएगा। कैमरों के जरिये बाघों की तस्वीरें जमा की जाएंगी और फिर इनका मिलान कर बाघों की संख्या निकाली जाएगी।
उत्तराखंड सहित देश के 18 राज्यों में बाघ आकलन का कार्य फरवरी के पहले हफ्ते से चल रहा है। इसके तहत प्रथम चरण में उत्तराखंड में भी एक फरवरी से कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व के साथ ही 12 वन प्रभागों में बाघों के पगचिह्न का डेटा जुटाया गया। इन दिनों इसकी फीडिंग का कार्य चल रहा है। अब द्वितीय चरण में कैमरों के जरिए बाघों की गणना की जानी है।
कैमरा ट्रैप में बाघों की तस्वीरें उतारने के मकसद से विभाग ने सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। राज्य में बाघ गणना के नोडल अधिकारी और अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डॉ.धनंजय मोहन ने बताया कि बाघ गणना के लिए 1200 कैमरों की व्यवस्था की गई है। राज्य के सभी बाघ बहुल क्षेत्र को नौ ब्लाक में बांटा गया है और हर ब्लाक को दो-दो वर्ग किमी के ग्रिड में विभक्त किया जाएगा।
डॉ.धनंजय के मुताबिक प्रत्येक ग्रिड में आमने-सामने दो कैमरे लगाए जाएंगे। हर ब्लाक में 25 दिन तक कैमरे रहेंगे। अगले हफ्ते से यह कार्य प्रारंभ कर दिया जाएगा। फिर इनमें आई बाघों की तस्वीरें एकत्रित कर इनका मिलान किया जाएगा, जिससे सही आंकड़ा सामने आएगा। साथ ही पगचिन्हों का भी विश्लेषण किया जाएगा।
बढ़ सकती है बाघों की संख्या
बाघ आकलन के प्रथम चरण में जिस प्रकार गणना टीमों को बड़े पैमाने पर बाघों के पगचिह्न मिले, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि राज्य में बाघों की संख्या में इजाफा हो सकता है। 2017 में राज्य में बाघों की संख्या 361 थी, जो इस मर्तबा 400 तक पहुंच सकती है। हालांकि, सही तस्वीर गणना के नतीजे सार्वजनिक होने पर ही सामने आएगी।
हिमालयी क्षेत्र में गणना बरसात बाद
राज्य में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में 14 हजार फुट की ऊंचाई तक भी बाघों ने दस्तक दी है। इसे देखते हुए विभाग ने वहां भी बाघों की गणना कराने का निश्चय किया है। वर्तमान में राजाजी व कार्बेट टाइगर रिजर्व के 12 वन प्रभागों में बाघ आकलन चल रहा है। यह कार्य पूरा होने पर बरसात के बाद उच्च हिमालयी क्षेत्र में बाघ गिने जाएंगे। अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक डॉ. धनंजय के मुताबिक इस संबंध में भारतीय वन्यजीव संस्थान के सहयोग से प्रोटोकाल तैयार किया जा रहा है।