🔭साइंटिफिक-एनालिसिस🔬
संविधान दिवस ने भारतीय लोकतंत्र व सरकार की कलाई खोल दी
दुनिया के सबसे बडे़ लोकतंत्र भारत यानि इंडिया में 26 नवम्बर का दिन आया | इस दिन 1949 में संविधान बनकर पुरा हुआ और उसे अपनाया गया था | हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) व गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) पर राष्ट्रीय पर्व बनाने की जो परम्परा सी बन गई हैं उसमें पिछले कुछ समय से ही सार्वजनिक राष्ट्रीय स्तर पर संविधान दिवस बनाने की परम्परा जुडी हैं | जन्मदिन, शादी की सालगिरह, मरण दिवस की सामाजिक और व्यक्तिगत सोच के स्तर व उसे बनाने के तरीके व राष्ट्रीय पर्व को बनाने के तरीके व सोच में जमीन-आसमान का फर्क होता हैं | इस बार के बनाये गये संविधान-सदन को विज्ञान के सिद्धांतों के आधार पर देखे व समझे तो भारत के लोकतंत्र व उसके प्रति निष्ठा, आदर, सम्मान व स्थायित्व की ऐसी तस्वीर सामने उभर कर आती हैं कि राष्ट्रीय एकता, अखण्डता, अक्षणुता, सम्प्रभुता जैसे शब्द भी अर्थहीन नजर आते हैं।
उच्चतम न्यायालय मे हमेशा की तरह संविधान दिवस बनाया गया व राष्ट्रपति ने इसमें उपस्थित होकर सम्बोंद्धित किया | राजनैतिक रूप से राजनेता वाले चेहरे न आने की वजह से इसे बिना बिना संवैधानिक चेहरे वाली व राष्ट्रीय जवाबदेही से पूरी तरह मुक्त मीडिया ने इसे इवेंट/प्रोग्राम की संज्ञा दी व राष्ट्रीय स्तर पर लाईव प्रसारण करना गैर-जरूरी व अन्य खबरों की तुलना में अव्वल क्या कोई भी दर्जे की प्रासंगिकता नहीं दी | इसमें राष्ट्रीय ध्वज फहराने व राष्ट्रीय गीत को गाने की तस्वीर मीडिया में नजर नहीं आई शायद न्यायपालिका देश से अलग हैं व भारत राष्ट्र और उसके तिरंगे के निचे नहीं आती |
इस दिन पहले राष्ट्रपति ने शहीद स्मारक व उसमें विलिन अमर जवान ज्योति पर जाकर शहीदों को नमन नहीं किया परन्तु भारत के मुख्य न्यायाधीश को तो वर्ष में एक बार वहां जाकर नमन व पुष्पांजलि तो अर्पित करनी चाहिए ताकि मुख्य न्यायाधीश के पद के आगे भारत होने का सार्थक अर्थ देशवासीयों व दुनिया को नजर आता | ऐसा प्रतित होता हैं कि उच्चतम न्यायालय पर किसी बड़े आतंकी हमले का इंतजार करा जा रहा हैं ताकि शहिदों की शहादत उनके लिए भी होती हैं वो समझ में आ सके | राष्ट्र के लिए जीवन न्यौछावर करने वाले शहीदों के परिवारों को उनके बाद समुचित न्याय व सम्मान देने का वचन देना तो भारत के मुख्य न्यायाधीश का भी धर्म बनता हैं।
संविधान दिवस पर संविधान संरक्षक, सेना प्रमुख, देश के प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति उपस्थिति दर्ज करवाये व उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष व प्रधानमंत्री उपस्थित न हो या इन्हें बुलाने की कोई प्रक्रिया न हो तो इनकी देशवासीयों व देश के लोकतन्त्र के प्रति जवाबदेही कितनी होगी जो संविधान के आधार पर पद की शपथ लेते हैं |
विज्ञान का तर्क माने तो इस विशेष दिन देश की तमाम अदालतों की बिल्डिंगों पर प्रात: होने वाला ध्वजारोहण किसी कर्मचारी से न होकर उसके प्रमुख न्यायाधीश के द्वारा सभी अधिवक्ताओं व न्यायिक प्रक्रिया से जुडे लोगों की उपस्थिति में होना चाहिए | सभी राज्यों के उच्चतम न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों को सर्वोच्च न्यायालय के इस संविधान दिवस में लाईव उपस्थित रहना चाहिए | भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा इस दिन संविधान की प्रस्तावना सभी को बुलवानी चाहिए तभी संविधान दिवस बनाना लोकतंत्र के लिए सार्थक व मजबुत प्रदान करने वाला होगा | न्यायपालिका से जुडे लोग अपने आप की राष्ट्रीयता व कार्य के रूप में समर्पण अभिव्यक्त नहीं करेंगे तो गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय सलामी में उनके प्रमुख भारत के मुख्य न्यायाधीश को नीचे ही बैठाया जाता रहेगा व उनसे पद की शपथ लेने वाले राष्ट्रपति व इनसे पद की शपथ लेने वाले उपराष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष व प्रधानमंत्री ऊपर मंच पर बैठ कर अपने पद के आगे लगे भारत अलंकृत एवं गौरव के माध्य से राष्ट्र को सलामी देंगे |
संविधान दिवस पर भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीशों का बैठने का स्थान व उनका समाहित होना सार्वजनिक होता तो सबको समझ आता कि राज्य सभा के सांसद व राज्यपाल जैसे अन्य पदों न्यायाधीश के पदों में कितना बड़ा अंतर होता हैं | जीवन भर न्याय व्यवस्था में रहने के बाद निष्ठा व जीवन भर की कमाई राष्ट्रीयता की पूंजी को अलग कर के मार्ग बदलने से पूरी न्याय व्यवस्था पर दाग लगने और देशवासीयों के मन में भ्रष्ट व पक्षपात पूर्ण न्याय होने का शंशय पैदा होने से रोका जा सकता था |
इस दिन भारत के मुख्य न्यायाधीश ने अपने सम्बोधन में कई जानकारीया सार्वजनिक रूप से दी जिसमें कितने मामले अदालतों ने सुने, जनता के लिए अंग्रेजी से अलग दुसरी भाषाओं में रूपांतरण कर उन्हें पारदर्शीता के साथ न्यायतंत्र से जोडना हैं | यह अच्छी व स्वस्थ परम्परा की शुरुआत हैं जो अपने आप के मुल्यांकन को स्वयं सामने रखता हैं | विज्ञान के आधार पर यह सिर्फ सिक्के का एक पहलू लगा व न्यायिक तौर पर तराजु का सिर्फ एक पलडा पुरा झुका नजर आया क्योंकि अदालतों व सर्वोच्च अदालत में कितने मामले विचाराधीन हैं, कितने समय से हैं, न्याय देने पर औसतन कितना समय लगा, आर्थिक रूप से जनता के सिर पर न्याय पाने का कितना बोझ सिर पर पडा यह सभी जानकारीयां गायब थी | यदि इस सच्चाई को बिना शर्म एवं संकोच के ईमानदारी से सामने रख देते तो पूरी न्यायपालिका के लिए विकास का स्तर जुबानी नहीं धरातली आधार ले लेता | इसके साथ न्यायाधीशों व अन्य कर्मचारीयों के रिक्त पडे पद, भारत सरकार का हिस्सा होते हुए अधिवक्ताओं को कर्मियों को आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण काम करने वाले आफिसों की राह बनती व सुप्रीम कोर्ट भी सेन्ट्रल विष्टा प्रोजेक्ट में शामिल हो पाता |
न्यायपालिका को अलग व अपने से निचा मानकर संसद-भवन में एक अलग ही संविधान दिवस बनाने की प्रक्रिया कार्यपालिका यानि तथाकथित सरकार द्वारा प्रधानमंत्री के नेतृत्व में चलाई जा रही थी | इसमें मूल संविधान या उसकी प्रति को उच्चतम न्यायालय के सभागार में रखे होने की बजाय संसद-भवन में रखकर एक अलग ही राग अलापा जा रहा था | अधिकांश विपक्षी राजनैतिक दल इसका बहिष्कार कर एक राष्ट्र, एक संविधान की बात को विश्वास जताकर लोकतंत्र को मजबूत कर रहे थे |
इस बार तो मीडिया के माध्यम से संसद-भवन में संविधान दिवस बनाया ही नहीं दिखा | यह सम्भावना हो सकती हैं कि अधिकारियों के स्तर पर रस्मअदायगी कर दी गई हो | संसद में बैठे करीबन सभी सत्ता व विपक्षी सांसदों यानि जनप्रतिनिधियों के लिए संविधान से ज्यादा उनकी राजनैतिक पार्टियों के लिए वोट मांगना, चुनाव प्रचार करना बडा व ज्यादा जरूरी काम हैं यह संदेश देशवासीयों व दुनिया को देते दिखा |
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