वैदिक रक्षासूत्र
रक्षासूत्र मात्र एक धागा नहीं बल्कि शुभ भावनाओं व शुभ संकल्पों का पुलिंदा है । यही सूत्र जब वैदिक रीति से बनाया जाता है और भगवन्नाम व भगवद्भाव सहित शुभ संकल्प करके बाँधा जाता है तो इसका सामर्थ्य असीम हो जाता है। प्रति वर्ष श्रावणी-पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार होता है, इस दिन बहनें अपने भाई को रक्षा-सूत्र बांधती हैं ।
कैसे बनायें वैदिक राखी ?
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वैदिक राखी बनाने के लिए सबसे पहले एक छोटा-सा ऊनी, सूती या रेशमी पीले कपड़े का टुकड़ा लें।
👉 #दूर्वा, 👉 #अक्षत साबूत #चावल, 👉 #केसर या #हल्दी, 👉#शुद्ध #चंदन, 👉#सरसों के साबूत दाने,
इन पाँच चीजों को मिलाकर कपड़े में बाँधकर सिलाई कर दें । फिर कलावे से जोड़कर राखी का आकार दें । सामर्थ्य हो तो उपरोक्त पाँच वस्तुओं के साथ स्वर्ण भी डाल सकते हैं।
वैदिक राखी का महत्त्व
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वैदिक राखी में डाली जानेवाली वस्तुएँ हमारे जीवन को उन्नति की ओर ले जाने वाले संकल्पों को पोषित करती हैं ।
👉 दूर्वा
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जैसे दूर्वा का एक अंकुर जमीन में लगाने पर वह हजारों की संख्या में फैल जाती है, वैसे ही हमारे भाई या हितैषी के जीवन में भी सद्गुण फैलते जायें, बढ़ते जायें… इस भावना का द्योतक है दूर्वा ।
👉अक्षत साबूत चावल
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हमारी भक्ति और श्रद्धा भगवान के, गुरु के चरणों में अक्षत हो, अखंड और अटूट हो, कभी क्षत-विक्षत न हो – यह अक्षत का संकेत है । अक्षत पूर्णता की भावना के प्रतीक हैं । जो कुछ अर्पित किया जाय, पूरी भावना के साथ किया जाय ।
👉केसर या हल्दी
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केसर की प्रकृति तेज होती है अर्थात् हम जिनको यह रक्षासूत्र बाँध रहे हैं उनका जीवन तेजस्वी हो । उनका आध्यात्मिक तेज, भक्ति और ज्ञान का तेज बढ़ता जाय । केसर की जगह पिसी हल्दी का भी प्रयोग कर सकते हैं । हल्दी पवित्रता व शुभ का प्रतीक है ।
👉चंदन
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चंदन दूसरों को शीतलता और सुगंध देता है । यह इस भावना का द्योतक है कि जिनको हम राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में सदैव शीतलता बनी रहे, कभी तनाव न हो । उनके द्वारा दूसरों को पवित्रता, सज्जनता व संयम आदि की सुगंध मिलती रहे ।
👉सरसों
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सरसों तीक्ष्ण होती है । इसी प्रकार हम अपने दुर्गुणों का विनाश करने में, समाज-द्रोहियों को सबक सिखाने में तीक्ष्ण बनें ।
अतः यह वैदिक रक्षासूत्र वैदिक संकल्पों से परिपूर्ण होकर सर्व-मंगलकारी है ।
रक्षासूत्र बाँधते समय एक श्लोक और पढ़ा जाता है जो इस प्रकार है-
ओम यदाबध्नन्दाक्षायणा हिरण्यं, शतानीकाय सुमनस्यमाना:। तन्मSआबध्नामि शतशारदाय, आयुष्मांजरदृष्टिर्यथासम्।।
इस मंत्रोच्चारण व शुभ संकल्प सहित वैदिक राखी बहन अपने भाई को, माँ अपने बेटे को, दादी अपने पोते को बाँध सकती है ।
महाभारत में यह रक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधी थी । जब तक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई, धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई । इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार
बांधते हैं।
रक्षा सूत्रों के विभिन्न प्रकार
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विप्र रक्षा सूत्र- रक्षा बंधन के दिन किसी तीर्थ अथवा जलाशय में जाकर वैदिक अनुष्ठान करने के बाद सिद्ध रक्षा सूत्र को विद्वान पुरोहित ब्राह्मण द्वारा स्वस्तिवाचन करते हुए यजमान के दाहिने हाथ मे बांधना शास्त्रों में सर्वोच्च रक्षा सूत्र माना गया है।
गुरु रक्षा सूत्र- सर्वसामर्थ्यवान गुरु अपने शिष्य के कल्याण के लिए इसे बांधते है।
मातृ-पितृ रक्षा सूत्र- अपनी संतान की रक्षा के लिए माता पिता द्वारा बांधा गया रक्षा सूत्र शास्त्रों में #करंडक कहा जाता है।
भातृ रक्षा सूत्र- अपने से बड़े या छोटे भैया को समस्त विघ्नों से रक्षा के लिए बांधी जाती है देवता भी एक दूसरे को इसी प्रकार रक्षा सूत्र बांध कर विजय पाते हैं।
#स्वसृ-रक्षासूत्र- पुरोहित अथवा वेदपाठी ब्राह्मण द्वारा रक्षा सूत्र बांधने के बाद बहिन का पूरी श्रद्धा से भाई की दाहिनी कलाई पर समस्त कष्ट से रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधती है। #भविष्य #पुराण में इसकी महिमा बताई गई है।
गौ रक्षा सूत्र- #अगस्त #संहिता अनुसार गौ माता को राखी बांधने से भाई के रोग शोक डोर होते है। यह विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है।
वृक्ष रक्षा सूत्र – यदि कन्या को कोई भाई ना हो तो उसे वट, पीपल, गूलर के वृक्ष को रक्षा सूत्र बांधना चाहिए पुराणों में इसका विशेष उल्लेख ह
राखी बांधने का शुभ मुहूर्त
श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा रविवार 22 अगस्त 2021
लग्न केअनुसार शुभ मुहूर्त
दोपहर -12:00 बजे से 02:12 तक वृश्चिक लग्न
शाम-06:06 बजे से 07:40 तक कुम्भ लग्न
शुभ मुहूर्त प्रातः09:29 से 12:30 तक- लाभ,
अभिजित मुहूर्त- 12:09 से 01:05 बजे तक अमृत
ज्योतिशास्त्र के अनुसार अशुभ भद्राकाल में भी राखी बांधना अशुभ माना जाता है।
#भद्राकाल समय 22 अगस्त को प्रातः 06:10 बजे तक
भद्रा क्यों होती है अशुभ
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लंकापति रावण ने भद्राकाल मे राखी बंधवाई और एक वर्ष में ही रावण का सर्व नाश हो गया। इसलिए भद्राकाल में भाई को राखी नही बांधनी चाहिए।
पौराणिक मान्यताओं में यह भी कहा जाता है कि भद्रा शनिदेव की बहन थी।
भद्रा को ब्रह्मा जी ने श्राप दिया था कि जो भी व्यक्ति भद्राकाल मे शुभ कार्य करेगा उसका परिणाम अशुभ होगा! अब जनता जनार्दन ने जिस समय रक्षा सूत्र धारण किया है उसका फल उन्हें मिलता दिखाई देनेे लगेगा।
शास्त्र की मर्यादा बनाये रखने के लिए हमे मनन करते हुए कार्य करने की आवश्यकता है।सभी मनुष्य श्रेणी के मनन करने वाले लोगों को सद्भावना बनाये रखने के लिए समय का ध्यान रखते हुए कार्य करने की आवश्यकता है।
भविष्य में रखी बनाने एवं पहनने का अवश्य संज्ञान लिजयेगा।
💐 लक्ष्मी प्रसाद थपलियाल राज्यन्दोलन कारी