आँख भर गई,कान सन्ना गये मित्र लोग हनुमान जी को भी चर्चा में अधिकतम तक ले आये।
साथियो जानो आप
ब्राहम्ण कुल में जितने भी अवतार हुए है वो सभी त्याग और तपस्या के अवतार हुए हैं।किसी के संज्ञान में हो तो जरूर बताएं कि ब्राह्मण कुल अवतारी स्वयं ईश्वर या ऋषि जिसने सिर्फ भक्ति त्याग और तपस्या के अलावा कुछ किया हो।चाहे हनुमान जी का अवतार ही एक भक्त के रूप में भगवान् की सेवा के लिए हुआ।शिव जी के बीसवें रुद्राक्ष होने एवं स्वयं भगवान् विष्णु द्वारा उन्हें प्रदत्त नारायणी गदा के साथ अतुलित बलधाम हैं।वज्र देह ने दानव दल मार डाले।इसके बाद अपने प्रभु राम की आज्ञा से उनके बैकुंठ जाने के बाद भी लव कुश को संरक्षण दिया।तदोपरान्त फिर तपस्या में लीन हो गए।उसके बाद त्रिदेव ने स्वयं प्रकट होकर उन्हें भगवान् का दर्जा दिया।आज तक वे राम भक्तों की रक्षा कर रहे हैं।माँ सीता से अजर,अमर होने का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद भी ब्राह्मण कुल में उनका अवतारी आचरण आज भी साधक जैसा ही है।इसलिए मुझे नहीं लगता के उनका प्रशन करना चाहिए।
इसी प्रकार
ब्राह्मण अवतार भगवान् परशुराम भी त्याग और तपस्या के अवतार ही हैं।त्याग की चरम सीमा देखिये जब धनुष यज्ञ के समय उन्होंने प्रभु राम से कहा “राम रमापति कर धनु लेहू, खेंचहु चाप मिटे संदेहू”।।उस बाण को धनुष पर राम ने चढ़ा दिया और मुस्कराकर कुछ कहा तब सुन मृदु गूढ़ वचन रघुबर के,उभरे पटल परशुधर हिय के।।लेकिन राम ने जब प्रश्न उठाया के ये वैष्णव बाण खाली नहीं जाता है?अब बताव् इसे कहाँ और किधर छोड़ें।तब त्याग की पराकाष्ठा देखिये परशुराम जी ने वो बाण अपनी तपस्या खत्म होने पर ये कहकर छुड़वाया के तपस्या तो हम फिर कर लेंगे प्रभु लेकिन ये बाण अगर और कहीं चल गया तो प्रलय आ जायेगी।
और देखिये
ऋषि अवतार दधीचि ने स्वर्ग के राजा को दानवों से युद्ध के लिए अपनी ही अस्थियों का वज्र बनानें के लिए दान किया।
ऋषि वशिष्ठ नें अपना सम्पूर्ण जीवन राजपुरोहित होने के बाद भी कुटिया में गुजारा।
ये बानगी मात्र है इतिहास के उन चंद ब्राह्मण अवतारों की।शायद इसीलिए स्वयं अन्य कुलों में अवतरित होकर भगवान् नें विप्र चरण पूजा की है।
इसलिए प्लीज अब कम से कम हनुमान जी पर प्रशन बंद करें।