-श्री महंत ब्रम्हर्षि आचार्य कुश मुनि स्वरूप ।आचार्य महामंडलेश्वर ओंकार अखाडा ।मोबाइल नंबर 9450763125
महामंडलेश्वर ब्रम्हर्षि आचार्य कुश मुनि स्वरूप ने कहा किआज के तथाकथित सन्यासी स्वामी अग्निवेश द्वारा मूर्ति पूजा की निन्दा की जा रही है।कहा जा रहा है कि मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा संभव ही नही है।याद दिलाना चाहता हूँ कि वाराणसी के प्रसिद्धि सूर्योपासक स्वामी विशुद्धानंद जी महराज साकार उपासक थे ।और स्वयं स्वामी दयानंद सरस्वती ने कहा था कि यदि विशुद्धानंद जी महाराज जैसे विद्वान संत का सहयोग मिल जाये तो मैं पूरे विश्व में परिवर्तन कर सकता हूँ।और जिन तैलंग स्वामी जी महाराज के आगे स्वामी दयानंद सरस्वती की वाणी ही नही खुल पायी वह तैलंग स्वामी भी साकार उपासक थे ।शिव के उपासक थे। आर्यसमाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती के गुरू स्वामी विरजानंद सरस्वती भी साकार उपासक थे ।विष्णु सहस्रनाम और दुर्गासप्तशती का पाठ करते थे । इतने प्रमाण मूर्तिपूजा की पुष्टि के लिये पर्याप्त हैं।स्वामी अग्निवेश जी महाराज मूर्तिपूजा का विरोध कर सनातनी हिन्दू समाज का विरोध करने की जगह आप भारत वर्ष में आर्यसमाज की दुर्दशा पर ध्यान देते तो उचित था । स्वामी जी स्वामी श्रद्धानंद द्वारा स्वामी दयानंद सरस्वती जी के सिद्धांतों के प्रचार प्रसार और वेद के प्रचार प्रसार के लिये स्थापित डी ए वी कालेजों,आर्य विद्यालयों की दुर्दशा देख कर मुझे तो रोना आता है। आज का आर्यसमाज स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्यसमाज नही बल्कि षडयंत्रों मे सिमटा आर्य समाज है। सैद्धांतिक विरोध होते हुये भी आर्यसमाज में मंदिरों में दलितों के प्रवेश के लिये आंदोलन किया वह आदरणीय है।इसके अतिरिक्त भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी आर्यसमाज ने अतुलनीय योगदान किया ।जब हैदराबाद के निजाम ने हैदराबाद के मंदिरों में घंटा न बजाने का फरमान जारी किया तब आर्यसमाज और हिन्दू महासभा ने हैदराबाद के मंदिरों में घंटा बजाया । क्योंकि आर्यसमाज यह समझ चुका था कि मूर्ति पूजा हिन्दू समाज का अभिन्न अंग है।सनातन धर्मी हिन्दू समाज मूर्ति पूजा नही छोंड सकता ।इसलिये आर्यसमाज ने हिन्दू समाज में सुधार आंदोलनों पर बल दिया ।ताकि हिन्दू समाज में एकता हो ।और हिन्दू समाज हिन्दू विरोधियों से लड सके।इसलिये स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने आर्य शूरवीर सभाओं की स्थापना की थी ।
यह तो सैद्धांतिक पक्ष था अब स्वामी अग्निवेश जी महाराज आप हिन्दू विरोधी हो ।मुस्लिम परस्त हो।आप के सम्बंध भारत विरोधियों से हैं। आप भारत विरोधी ताकतों से हिन्दू विरोधी ताकतों से पैसा ले कर काम करते हो ।आप के आचरण से तो यही लगता है।स्वामी जी आप को हिन्दू समाज की मूर्ति पूजा तो दिखाई देती है पर मुसलमानों की कब्रपूजा ,मजार पूजा के बारे मे आप ने अपने विचार क्यों नही व्यक्त किये? क्या मजारों पर जा कर हिन्दुओं द्वारा की जाने वाली इबादत आप को वेदसम्मत लगती है? अगर हाँ तो किस वेदमंत्र मे है ?और वेद विरूद्ध है तो आप ने इसका विरोध क्यों नही किया ?
सीधे राम, हनुमान और कृष्ण और भगवान शिव की मूर्तिपूजा का विरोध आप ने क्यों किया ? और आप में साहस हो तो समाज को वह बताइये जो आप के आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती जी महाराज ने कुरान और इस्लाम के बारे में कहा था ।आप के अंदर वह साहस नही है स्वामी अग्निवेश जी महराज ।और स्वामी अग्निवेश जी आप नें बँधुआ मुक्ति अभियान के नाम पर भारतीय उद्योग पतियों को कितना प्रताडित किया है ?और किसलिये किया है यह भी हमारा समाज जानता है। स्वामी दयानंद सरस्वती ने मुसलमानों को भी सत्यार्थप्रकाश में मूर्तिपूजक लिखा है।क्योंकि स्वामी जी के अनुसार दुनिया का हर मुसलमान मक्के की तरफ मुँह कर नमाज पढता है।और अपनी जिन्दगी में एक बार हज जरूर करता है।स्वामी दयानंद सरस्वती जी नें मक्के में वह प्रतीक जिसकी इबादत पूरी दुनिया के मुसलमान करते हैं।उसे भी मूर्तिपूजा माना है।तो स्वामी अग्निवेश जी महाराज आप ने समाज को यह सब नही बताया ।आप ने बौद्धों की भी मूर्ति पूजा का खंडन नही किया ।सीधे आप हिन्दू समाज की मूर्तिपूजा के विरूद्ध बोलने लगे ।यदि आप को शास्त्रार्थ भी करना है मूर्ति पूजा के विषय में तो भी हमें स्वीकार है ।शास्त्रार्थ कँहा करेगें ?निर्णायक मंडल कौन होगा ?निर्णायक ग्रंथ कौन कौन होंगे ? यह सब मिल कर तय कर लीजिये ।उन्होंने कहा मेंंरे मोबाइल नंबर पर फोन कर लीजिये । जय श्री राम ।