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उत्पल सिंह मुख्य सचिव से राज्य सरकार के जीरो टोलरेंस के अनुरूप समयबद्ध को देखते हुए नगर आयुक्त द्वारा कि गई जांच को सार्वजनिक करें

Pahado Ki Goonj

सेवा मेें,

श्रीमान उत्पल सिंह (मुख्य सचिव)
सचिवालय, देहरादून उत्तराखण्ड।
विषयः- नगर निगम देहरादून में चल रहे व्यापक घोटाले हेतु ।
महोदय,
उपरोक्त विषय का सन्दर्भ ग्रहण करने का कष्ट करें जैसा कि आपको विदित है कि नगर निगम देहरादून में कई घोटाले हो गये है जो सीधे-सीधे भ्रष्टाचार से जुडें है। निगम के हित में आपके समक्ष निम्नलिखित तथ्य रखना चाहूंगा जो इस प्रकार है-
घोटाला नं0 1 सोडियम लाइट घोटाला
2012 में स्ट्रीट पोल्स पर लगाने के लिए सोडियम लाइटों की खरीद-फरोख्त में लाखों रूपये के गोलमाल का मामला सामने आया। इस मामले में निगम में जबरदस्त हंगामा हुआ। बाजारी दाम से ज्यादा दाम देकर लाइटें ली गयी थी, वो भी निम्न गुणवक्ता की। निगम ने विभागीय जांच बैठाई, जो दब गई। शासन ने वर्ष 2013 में विजिलेंस को जांच सौंपी, मगर निगम से विजिलेंस को अब तक पूरा रेकार्ड उपलब्ध नहीं कराया गया।
घोटला नं0 2 सीवर ट्रीटमेंट मशीन
2013 में निगम ने 30 लाख रूपये की सीवर ट्रीटमेंट मशीन खरीदी। बोर्ड की अनुमति के बिना खरीदी गई ये मशीन दो साल से शो-पीस बनकर निगम परिसार की शोभा बढ़ रही। कई बार इसे लेकर हंगामा हुआ और खरीद फरोख्त में पांच लाख रूपये से ऊपर के गोलमाल की शिकायत हुई। जांच बैठी लेकिन जांच के निष्कर्ष कभी सामने नहीं आए।
घोटला नं0 3 पोकलैंड मशीन घोटाला
वर्ष 2014 में निगम प्रबंधन ने करीब 55 लाख रूपये से पोकलैंड मशीन खरीदी। ट्रेचिंग ग्राउंड के लिए ली गई इस मशीन को खरीदने में दस लाख के गोलमाल के आरोप लगे व कई दिनांे तक हंगामा चला। एक बार फिर जांच बैठाई गई और हश्र फिर वहीं।
घोटला नं0 4 टैक्स असेसमेंट घोटला
जून 2014 में निगम के अधिकारियेां व कर्मचारियों ने पैसेफिक मॉल राजपुर रोड का कमर्शियल टैक्स असेसमेंट में घोटाला कर वास्तविक मूल्य से 60 लाख रूपये कम मूल्य आंका। दो करोड़ 83 लाख के बजाए संपत्ति का मूल्य दो करोड़ 17 लाख रूपये दर्शा दिया, जिससे निगम को लाखों रूपये की टैक्स में चपत लग गई। जांच बैठी और कर्मचारियों के विरूद्ध एफ0आई0आर0 दर्ज कराने की बात कही गई, लेकिन न जांच पूरी हुई, न नगर निगम ने एफ0आई0आर कराई।
घोटला नं0 5 नाला एन0ओ0सी0 घपला
जनवरी 2015 में अधिकारियों ने कारगी में नियम ताक पर रखकर एक प्राकृतिक नाले को मोड़ने की एन0ओ0सी0 दे दी। आरोप लगे कि पूरी डील 16 लाख में हुई। मामला उछला तो शासन ने एन0ओ0सी0 रद्द कर जांच बैठा दी। खुद डील करने वाले ने निर्माण रूकने पर हंगामा किया। शासन ने अधिकारी को हटा दिया, लेकिन जांच अभी भी ठंडे बस्ते में है।
घोटला नं0 6 यूजर चार्जेज घोटाला
नगर निगम में यूजर चार्जेज घोटाला हर साल की नियति बन चुका है। बीते दिसंबर में नगर आयुक्त ने इसकी समीक्षा की तो हर माह 15 लाख रूपये का घोटाला सामने आया। जांच की बात कही गई, लेकिन अधिकारिक आदेश ही नहीं हुए।
घोटला नं0 7 डस्टबिन घोटाला
जनवरी- 15 में 30 बड़े व 100 छोटे डस्टबिन का पेमेंट माल की डिलीवरी से पहले ही कर दिया गया। लुधियाना की कक्कड़ एजेंसी को ये ठेका दिया गया था लेकिन निगम प्रबंधन ने तीस लाख रूपये की पेमेंट कर दी। मेयर ने भी तत्काल जांच बैठा दी। शासन ने भी संज्ञान लिया, मगर नतीजा कुछ नहीं निकला।
घोटला नं0 8 हाथ-ठेली, रिक्शा घपला
जनवरी-15 में हरिद्वार की एक कंपनी को 330 हाथ-ठेली आर्डर की गई व 13 लाख रूपये में टेंडर दिया। एक ठेली करीब 3900 रूपये बताई गई। कंपनी ने ठेलियों की डिलीवरी निगम में कर दी व निगम ने 13 लाख का पेमेंट भी कर दिया, लेकिन ठेलियां तय संख्या में तो पहुंची ही नहीं। निगम में 220 ठेलियां आई, जबकि पेमेंट 330 ठेलियों का हुआ। जो ठेलियां आई वे बेहद घटिया व निम्न श्रेणी की थी। कुछ ठेलियां तो लाते समय रास्ते में ही टूट गई। ठेली खरीद में करीब छल लाख का घोटाला होने के आरोप लगे लेकिन जांच ठंडे बस्ते में चली गई।
घोटला नं0 9 होर्डिंग टेंडर घपला
मार्च 2015 में निगम द्वारा दिल्ली की एक कपंनी को पांच करोड़ 88 लाख रूपये में दो साल के लिए होर्डिंग टेंडर दिया गया था जबकि स्थानीय कंपनियां इससे ज्यादा रकम देने को राजी थी। निगम अधिकारियों ने दिल्ली की कंपनी से मिलकर स्थानीय कंपनियों को टेंडर तक नहीं डालने दिए। मामले में शासन स्तर से लेकर कई जांचे बैठी लेकिन एक कदम भी आगे नहीं सरकी।
घोटला नं0 10 फाइल घोटाला
निगम में संपत्ति विवाद से जुड़े कई बड़े मामलों की फाइलें ही गायब है। कार्यकारिणी बैठक में इसका खुलासा होने पर कर्मचारियों पर मुकदमें के आदेश् दिए गए, लेकिन अंदरखाने पूरा मामला दबा दिया गया। तीन माह पूर्व कुछ फाइलों में छेड़छाड़ के मामले सामने आए और नगर आयुक्त ने जांच बैठा दी, लेकिन नतीजा नहीं निकला।
घोटला नं0 11 टॉयर घोटला
जुलाई-2015 का सबसे चर्चित घोटाला यही रहा। निगम ने कंडम गाड़ियों के लिए 25 लाख रूपये के टायर खरीद के आर्डर दिए। कुछ टॉयर आए और नीलामी के लिए खड़े वाहनों में लगा दिए। इसके बाद टायर आए ही नहीं जबकि पेमेंट पूरा कर दिया गया। विभागीय जांच में वर्कशॉप के हेड फिटर को निलंबित कर फाइल दबा दी गई। शासन ने तीन माह पूर्व मामले की विजिलेंस जांच के आदेश दिए, मगर निगम ने खरीद के दस्तावेज विजिलेंस को सौंपे ही नहीं। शासन ने पिछले हफ्ते ही घोटालें की फाइलें तलब की है।
घोटला नं0 12 स्ट्रीट लाइट खरीद घोटाला
अक्टूबर 2016 में नगर निगम में 2200 रूपये के रेट पर ढाई हजार स्ट्रीट लाइटें लुधियाना की एक कंपनी से खरीदी गई थी। आरोप था कि जो यह लाइट देहरादून के बाजार में 700 रूपये में उपलब्ध है। महापौर ने घोटाले में जांच बैठाई और लाइट टेंडर निरस्त करने के आदेश दिए। दोबारा नई लाइटें तो ली जा रही, लेकिन घोटालें के आरोपियों का कुछ नहीं हुआ।
महोदय, उपरोक्त समस्त बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए आपसे अनुरोध है कि नगर निगम देहरादून की जनता का व्यापक जनहित एंव राज्य सरकार के जीरो टोलरेंस के अनुरूप समयबद्ध को देखते हुए नगर आयुक्त द्वारा कि गई जांच को आप सार्वजनिक करें ताकि उत्तराखण्ड को भ्रष्टाचार मुक्त कराया जा सके।

भवदीय
दिनांक-05.05.2018
(राकेश बड़थ्वाल)
पूर्व प्रदेश सचिव
समाजवादी पार्टी उत्तराखण्ड
182/1, मॉडल कॉलोनी, आराघर देहरादून।
मो0 नं0-9627102882

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