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G-20 के आतिथ्य में नाम बड़ा व सोच छोटी का प्रतिफल हैं इंडिया (-)भारत विवाद

Pahado Ki Goonj

साइंटिफिक-एनालिसिस

दुनिया की स्थाई मेजबानी को दबा G-20 की अल्पकालीन मेजबानी में “विश्वगुरू” का गौरव

भारत यानि इंडिया, इंडिया यानि भारत वाले संविधान की छांव में पौराणिक सभ्यताएं एवं संस्कृति के मानवीय आदर एवं सत्कार सुरक्षित व फलते-फूलते रहे हैं इसलिए अतिथि देवो भव: के सिद्धांत एवं वासुदैव कुतुम्बकम् की आत्मीय भावना से राष्ट्र G-20 देशों की पहली बार एक वर्ष की अल्पकालीन अध्यक्षता करता हुआ उसकी वार्षिक मीटिंग की मेजबानी कर रहा हैं | इससे कई देशों के राष्ट्राअध्यक्षों का एक साथ भारत-माता की जमीन पर प्रदार्पण हो रहा हैं | इन सभी का आतिथ्य करके “विश्वगुरू” होने के गौरव का भ्रामिक एवं काल्पनिक पुलाव बनाकर खुशबु से लोगों को मदहोश करने की कोशिश हो रही हैं |

आतिथ्य/मेहमाननवाजी करना हर देशवासी के लिए गौरव की बात हैं | जब दुसरे देशों के राष्ट्राअध्यक्ष आदर व सत्कार से अपने सिर को झुकाकर आत्मीयता का परिचय दे उससे अपने आप को बड़ा समझना व समझाना शास्त्रों एवं किसी भी धर्मग्रंथ के अनुसार अहंकार व घमण्ड को सिर पर चढाना होता हैं | यही से ईंसान के नीचे गिरने की शुरूआत होती हैं |

G-20 यानि 19 देशों का समूह जिसमें 20 वॉ सदस्य यूरोपीयन यूनियन संघ हैं और इसमें अन्य 9 आमंत्रित देश हैं | ग्लोबल इकोनोमी में करीब 80 फिसदी से ज्यादा का प्रतिनिधित्व यह करते हैं और दुनिया की दो तिहाई आबदी इन्ही देशों मे रहती हो तब भी यह सैद्धान्तिक रूप से विश्वगुरू नहीं बनाते हैं | इसमें हर नये वर्ष के लिए अध्यक्ष व मीटिंग का देश बदलने का प्रावधान हैं | यह सिर्फ सारे भेदभाव, ऊंच-नीच, जात-पात, गरीब-अमीर, धर्म-संप्रदाय को खत्म कर आपसी समानता दिखाने का बहुत सुन्दर उदाहरण हैं |

इसके विपरित यहां राष्ट्रीय एकता भी नाम के नाम पर बंटी होने का प्रमाण भी राष्ट्रपति के भोजन निमंत्रण के रूप में परोसा जा रहा हैं | भारत और इंडिया के नाम पर विवाद व बहस का खुलेआम प्रदर्शन करके मानसिक सोच की संकुचिकता व घटियापन का परिचय दिया जा रहा है। यह आयोजन कई देशों की आपसी एकता व समानता का उद्घघोष कर रहा हैं और हम राष्ट्र की परिभाषा व उसका नाम कैसा होना चाहिए उसका ज्ञान जबरदस्ती उन पर उडेल रहे हैं |

जब हम ही नहीं समझे तो उन्हें यह कैसे समझा सकते हैं कि अंग्रेजो से आजादी के संघर्षं में अनगिनत लोगों ने अपने जीवन की आहुति दी जिनके पूर्वज लाखों-करोडों वर्ष नहीं चन्द सैकडों वर्ष पहले इस भूधरा पर आये और इन्होंने इसी मिट्टी, जल, वायु से अपने शरीर का अस्तित्व प्राप्त करा | इन बलिदानों को भी आदर देना जरूरी था और इस मिट्टी की हर सभ्यता व संस्कृति में यह आदर रहा कि कोई आपके लिए त्याग व बलिदान करे तो उस उपकार को सदैव अपने जीवन से बडा मानना चाहिए | इस कारण हमारे भारतीय संविधान में भारत (सांस्कृतिक धरोहर) व इंडिया (इंडिपेंडेट नेशन डिकलेयर्ड इन अगस्त) को समान रूप से रखकर आपसी झगडे़ को खत्म करा है ताकि राष्ट्र संगठित बना रहे | इसके साथ नई पीढी जो यही पैदा हुई व होगी उसमें भी बिना स्थाई नागरिकता के पहचान पत्र को गले में टांगे बिना देश की सीमा पर दुश्मनों के दांत खट्टे करते समय बलिदान के लिए अपने सिर को आगे रखने मेंं दिल में बिना किसी संकोच के पैर लडखडाए नहीं …

इसी छोटी मानसिकता का कारण हैं कि राष्ट्रपति 2011 से ही अन्तिम निर्णय के लिए आधिकृत होने पर भी भारत में एक स्थाई अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना जिसकी हर वार्षिक मीटिंग भारत में होती और दुनिया के करीबन सभी 204 देशों के राष्ट्राअध्यक्षों का आतिथ्य मीलता उसे इधर-उधर विभागों में भेजकर मुंहफेर लेते हैं और भारत पूरी दुनिया की स्थाई मेजबानी करने व हकीकत में विश्वगुरू बनने से पिछले 12 वर्षो से चुकता आ रहा हैं |

G-20 समूह का मूल एजेंडा आर्थिक सहयोग व आर्थिक लेन-देन था जिसमें व्यापार, जलवायु परिवर्तन, सस्टेनेबल डेवलपमेंट, स्वास्थ्य, कृषि और भ्रष्टाचार निरोधी एजेंडों को शामिल कर लिया गया | यह प्रस्ताव ही 2011 में ही 220 बिलियन अमेरीकन डालर के प्रतिवर्ष के आर्थिक लेन-देन व स्थाई वित्तीय स्थिरता दे रहा था | यह स्वास्थ्य क्षेत्र में उत्थान लाकर हर एक मिनिट में मर रहे एक ईंसान की जिंदगी को बचाता |

यह 3.50 किलोग्राम की 10 पेज वाली संलग्न सूची की फाईल अपने अन्दर संयुक्त राष्ट्र संघ, द ग्लोबल फण्ड, विश्व स्वास्थ्य संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय रेडक्रास सोसायटी, द क्लिंटन फाउंडेशन, बिल एंड मेलेना गेट्स फाउंडेशन जैसे संस्थाओं के पत्र/ईमेल के साथ अमेरिका के राष्ट्रपति का पावती ईमेल व चालीस से ज्यादा देशों की कम्पनीयों के रेसपोंस के साथ दुनिया के हर देश की सम्बन्धित वित्तीय स्थिति व आपसी लेन-देन को समाहित करे हुए थी |

अब G-20 देशों के आयोजन से भारत के राष्ट्रपति व तन्त्र के महारथी समझ पाये कि विश्वगुरू बनना व सभी देशों का आतिथ्य कर गौरव प्राप्त करने का मतलब क्या होता हैं | जुबानी बातें बड़ी-बड़ी करने भर से नहीं, पहले सोच भी बडी चाहिए और उसे मूर्तरूप में बदलने का दम व हौंसला तो चाहिए | इन सबसे पहले मेहनत करने वाले असली लोगों को सम्मान, कार्य की खुली स्वतंत्रता के साथ पुरा सहयोग देते हुए मेहमानों की तरह शीर्ष झुका विनम्रता से बडबपन व बड़े होने का गुण न कि ताकत के दम पर निचा दिखा अपने को बडा व महान बनाने का फोटोफ्रेम का अहंकार…..

शैलेन्द्र कुमार बिराणी
युवा वैज्ञानिक

 

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