ज्येष्ठ संक्रांति !विभिन इलाकों में इसको अपने अपने रीति रिवाजों से मनाने का प्रचलन है,हमारे गढ़वाल में इस संक्रांति को घवेड सँकराद के रूप में मनाने का प्रचलन है,बचपन में हमे इस संक्रांति का बड़े बेसब्री से इंतजार रहता था,कारण दो थे,,पहला कारण था कि आज घवेड खाने को मिलेंगे जिसका कि मन में एक विशेष उत्साह होता था,और दूसरा महत्वपूर्ण कारण था कि आज के ही दिन हमारे स्कूल के गृह परीक्षाओं के रिजल्ट भी आते थे,आज समय बदल गया है न अब पहाड़ो में घवेड का लोग बेसब्री से इंतजार करते है और न ही अब इस दिन स्कूल का रिजल्ट आता है,घवेड से मतलब आज के दिन पूड़ी कचोड़ी बनायी जाती है हमारे गढ़वाल की स्थानीय भाषा में इसको स्वांला ,पकोड़ा कहा जाता है पर सबसे महत्वपूर्ण आकर्षण होता था जब छोटे बच्चों के गले में एक विशेष डिजाइन का पकोड़ा बनाकर टांगते है जिसे कि हम घवेड कहते हैं, आज ज्येष्ट संक्रांति पर बचपन की तमाम स्मृतियां ताजा हो गयी,मैं भले ही अपने उत्तराखण्ड में आज के दिन जरूर नही हूँ पर अपने पहाड़ो के रीति रिवाज और आज घवेड के दिन की तमाम यादें मेरे जेहन में है,बड़ी बात ये है कि आज घवेड के दिन सभी लोग चाहे वो कितना भी गरीब क्यों न हो घवेड जरूर बनाता था,आज बेशक मेरे पहाड़ से पलायन हो रहा है लोग अपने रीति रिवाज भूलते जा रहे हैं पर जो मजा और उत्साह घवेड सँकराद का मेरे बचपन में था वो आज 5 star होटलों के खाने में भी नही आता है,बहरहाल मेरे गढ़वाल में जरूर लोग घवेड बनाने की तैयारी में होंगे,आप सभी भाई बंन्धुओं को घवेड की मुबारकबाद।
साथ ही सभी मित्रों और देशवासियों को ज्येष्ट संक्रांति