मुख्यमंत्री जी की धर्मपत्नी श्रीमती सुनीता रावत की प्रथम नियुक्ति 24 मार्च 1992 को प्राथमिक विद्यालय कफल्डी स्वीत पौड़ी गढ़वाल में हुई थी। यह एक सुगम विद्यालय है। 16/7/1992 से वह चार साल प्राथमिक विद्यालय मैंदोली पौड़ी गढ़वाल में रही और फिर 27/8/1996 को उनका ट्रांसफर प्राथमिक विद्यालय अजबपुर कलां में हुआ तो फिर कभी उन्होंने यहां से बाहर का मुंह नहीं देखा। 24/5/2008 को उनकी पदोन्नति पूर्व माध्यमिक विद्यालय अजबपुर कलां में ही हुई और तब से वह यहीं तैनात हैं।
सूचना के अधिकार में लोक सूचना अधिकारी तथा उप शिक्षा अधिकारी मोनिका बम ने एक आरटीआई के जवाब में बताया कि सुनीता रावत की नियुक्ति पत्र के अलावा अन्य प्रमाण पत्र उनके पास उपलब्ध नहीं हैं।
यह विद्यालय रायपुर ब्लॉक के देहरादून में स्थित है। यदि इन दोनों अध्यापिकाओं की तुलना की जाए तो एक अध्यापिका 1993 से उत्तरकाशी के दुर्गम में है और वर्ष 2015 में विधवा हो गई थी, जबकि दूसरी अध्यापिका 1992 में अपनी तैनाती के बाद से लगातार सुगम में है और 1996 से देहरादून में एक ही जगह पर तैनात है।
आखिर दोनों अध्यापिकाएं जब प्राथमिक स्कूलों की अध्यापिकाएं हैं तो दोनों के लिए दो अलग-अलग नियम क्यों हैं?
जाहिर है कि इसका जवाब संभवत: मुख्यमंत्री के पास भी नहीं है, किंतु रिटायरमेंट के नजदीक एक विधवा अध्यापिका के दुख और आक्रोश के प्रति सहानुभूति और समानुभूति के दो शब्दों के बजाय यदि मुख्यमंत्री सत्ता के अहंकार में इस तरह से भड़केंगे तो जनता दरबार का औचित्य ही क्या रह जाएगा
खैर जिस तरह से मुख्यमंत्री इस विधवा अध्यापिका पर “बरसे” हैं, उससे पिछले दिनों प्रधानमंत्री द्वारा देहरादून में योग महोत्सव से संचित “राजनीतिक पुण्य” धुल गया है। देखना यह है कि इस “बरसात” के बाद उत्तराखंड में भाजपा का राजनीतिक भूस्खलन होता है अथवा डैमेज कंट्रोल के द्वारा इस बरसात से प्राप्त सबक को भविष्य के संसाधन के रूप में काम में लाया जाता है।