🔭साइंटिफिक-एनालिसिस🔬
✌️हमसे हैं जमाना, जमाने से हम नहीं ✌️
1️⃣ भारत 🇮🇳 इंडिया विवाद को ठंडे बस्ते में डाल खत्म करने की प्रक्रिया शुरु हुई
2️⃣ NDA चला भारत बनने की राह पर I.N.D.I.A. का पता नहीं वो INDIA बनना चाहता हैं या नहीं
आपका साइंटिफिक-एनालिसिस सदैव सच्चाई को लिखता आया हैं, यह उसी सच्चाई का असर हैं कि उसके आगे अच्छों – अच्छों को झुकना पड़ता हैं | इसमें भी कुर्सीधारी लोग राजनीति चाले चलने से बाज नहीं आते हैं और मुंह के बल गिरने के मार्ग पर भटक जाते हैं |
संसद के विशेष सत्र के कार्यो का सिड्यूल जारी हो गया हैं इसमें भारत 🇮🇳 इंडिया मामले पर कोई कानून या बिल तो आना दूर चर्चा भी नहीं होगी | इसे आगे भविष्य में भी लाने का कोई आधिकारिक संकेत भी नहीं हैं | आपके साइंटिफिक-एनालिसिस ने 08 सितम्बर, 2023 की पोस्ट के ऊपर टैग लगाया था कि इसके बाद भारत 🇮🇳 इंडिया विवाद खत्म हो जायेगा | आप इसे दुबारा पढ सकते है |
नये संसद-भवन के उद्घाटन की शोषणा के साथ सबसे पहले आपके साइंटिफिक-एनालिसिस ने उस पर राष्ट्रपति द्वारा ध्वजारोहण व राष्ट्रगीत जन-गण-मण के साथ राष्ट्र को समर्पित करने की बात कही | अब कार्यपालिका यानि तथाकथित सरकार ने घोषणा करी कि 17 तारिख को प्रधानमंत्री नये संसद-भवन पर ध्वजारोहण करेंगे | इसमें भी राष्ट्र यानि देश की जनता को समर्पित करने की बात नहीं कही गई हैं | देश के फ्लैग कोड के अनुसार किसी भी सरकारी ईमारत को राष्ट्रीय ध्वज फहराने के बाद ही ये दर्जा मिलता हैं उसे दबी जुबान में सूत्रों के माध्यम से अब बोला जा रहा हैं |
इसी संसद-भवन के नीचे राज्यसभा के सभापति यानि उपराष्ट्रपति और लोकसभा के अध्यक्ष होंगे जो प्रधानमंत्री के संवैधानिक पद से बड़े हैं | इन पदों की ईज्जत व मर्यादा का सार्वजनिक माखौल उडा भारतीय संस्कृति व परम्परा जो बड़ो का आदर व सत्कार करने पर विश्वास करती हैं उसे मटियामेट करने की कोशिश होगी | ध्वजारोहण का दिन गणेश चतुर्थी के दिन सुबह प्रवेश के पूर्व 18 सितम्बर को न रखकर 17 सितम्बर रखा गया हैं क्योंकि उस दिन प्रधानमंत्री पद पर जनता की नौकरी करने वाले व्यक्ति श्री नरेंद्र मोदी जी का जन्मदिन हैं और विश्वकर्मा जयन्ती हैं | राष्ट्रपति को ध्वजारोहण का आमंत्रण न देने के पीछे संकुचित मानसिकता दिखाई देती हैं जिसमें सनातन धर्म में विधवा महिला को ऐसे कार्यों को करने से वंचित रखा जाता था | इंडिया के अन्दर ऐसा भेदभाव नहीं हैं और संविधान राष्ट्रपति की निजी जिन्दगी को मानता ही नही है |
इसके विपरित आज के साधु-संतों ने प्रधानमंत्री को अयोध्या राम मंदिर में भगवान राम की मूर्ति की स्थापना करने का निमंत्रण दे दिया | धर्म एवं संस्कृति के अनुसार प्रधानमंत्री पद पर नौकरी करने वाले व्यक्ति का निजी जीवन ऐसे कार्यों के लिए पहले देखा जाता हैं | श्री नरेंद्र मोदी शादीशुदा है और उन्होंने कानूनी रूप से तलाक न लेकर धर्मपत्नी को ऐसे ही छोड रखा हैं इसलिए वेदों व पुराणों के अनुसार वो इस मूर्ति स्थापना के लिए योग्य नहीं हैं | भगवान श्री राम को भी सीता माता की स्वर्ण मूर्ति बनाकर अश्वमेघ यज्ञ में साथ रखनी पडी तभी सभी ऋषि-मुनियों ने यज्ञ कराने के आतिथ्य को स्वीकार करा |
राष्ट्रपति के पति जिनकी मृत्यु हो चुकी हैं उनकी मूर्ति बनाकर उसे साथ रख महामहिम भी हवन में शामिल होकर मूर्ति स्थापना कर सकती हैं और मूर्ति तो राम के बाल्यकाल की हैं इसलिए महिला का अधिकार ज्यादा बनता हैं | इससे विधवा प्रथा के साथ महिलाओं के तिरस्कार की जो सोच कई लोगों में चली आ रही हैं उससे आजादी मिल जायेगी | इसके साथ हर शहीद सैनिंक की विधवा पत्नी भी अपनी बेटी का कन्यादान कर पायेगी जिसे शास्त्रों में सबसे बड़ा दान बताया गया हैं | सनातन धर्म में तलाक की व्यवस्था ही नहीं हैं और थी | तलाक तो बाद में दुसरे धर्मों के माध्यम से आया |
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साइंटिफिक एनालिसिस
I.N.D.I.A. को INDIA व N.D.A को भारत बनने का रामबाण तरीका
लोकतंत्र की आत्मा, सत्ता का केन्द्र, लोकतंत्र का मंदिर इत्यादि लक्षणा शब्दशक्ति के माध्यम से अलंकृत कर महिमामंडन करे जाने वाले संसद के नये भवन का श्रीगणेश गणेश चतुर्थी की पावन बेला में 19 सितम्बर 2023 को धरती से नवग्रहों की चाल व चन्द्रमा की धरती और नवग्रहों के बीच यानि सौरमंडल के मध्य अंग्रेजी शब्द से सुचित होने वाले कैमरों के चित्रों एवं चलचित्रों को देखकर तय कर लिया गया हैं |
“लक्षणा” हिन्दी व्याकरण की वो शब्दशक्ति हैं जिसके माध्यम से व्यक्तिवाद, परिवारवाद, धार्मिक व राजशाही वाली बिते भूतकाल की सत्ता ने अपने अवगुणों एवं दोषों को छुपाया व अपने कई फैंसलों को सही बताकर जनता पर थौपा परन्तु अब लोकतंत्र की बहार हैं और विज्ञान का आईना हैं जो इन शब्द शक्तियों के सच को सामने रख देता हैं | समय के चक्र पर भी सनातन धर्म से उभरा कालखंड भी इस लक्षणा शब्दशक्ति की अति के कारण ही हर बार टुटा और अलग-अलग धर्म एवं सम्प्रदायों के नाम से काल के कपाल पर उभर गया |
यह सभी क्रियाएं / इतिहास / गाथाएं / परिकल्पनाएं / मानसिकताएं लोगों के समूह व भूमि आधारित श्रेत्र-विशेष पर ही बलवान चढी हैं | अब इस श्रेत्र-विशेष के नाम भारत व इंडिया को लेकर जुबानी जंग और संचार के माध्यमों (अखबार, पत्र-पत्रिकाएं, न्यूज़ चैनल, रेडियों, इंटरनेट वाले कैबलों पर चल रहे सोशियल मीडिया इत्यादि) से हवा पर उभरे आधार पर जनता को गुत्थमगुत्था कराया जा रहा हैं |
आदिकाल से हर शासन की सोच दो भागों में बंट कर ही प्रदर्शित होती आई हैं | वर्तमान में पक्ष-विपक्ष में बंटी संसद अब भारत-इंडिया में बंटकर नये मार्ग के रूप में जनता पर शासन की सोच को मूर्त रूप देने में लगी हैं | संविधान ने भारत-इंडिया के मध्य डेस (-) को झण्डा लगाकर पहले ही जोड रखा हैं परन्तु दोनों पक्ष-विपक्ष मौखिक चिल्लाचोट कर रहे हैं परन्तु एक झण्डे के निचे आने को तैयार नहीं हैं | इसका साक्षात उदाहरण हैं नया संसद-भवन जनता को समर्पित नहीं होना हैं व अब तक देश, राष्ट्रभक्ति और तिरंगे के नाम पर लाखों-करोडों लोगों के जीवन न्यौछावर कर देने वालों को राष्ट्रगीत जन-गण-मन के रूप में नमन कर तिरंगें का ध्वजारोहण नये संसद-भवन पर नहीं करना |
संविधान ने इस तरह राष्ट्र को सलामी देकर ध्वजारोहण करने का दायित्व व विशेषाधिकार सिर्फ राष्ट्रपति को दे रखा हैं | यह विधान सनातन धर्म में शुरु से चलता आया हैं कि सत्ता का प्रमुख चाहे राजा व सम्राट के रूप में ही क्यों ना हो उसे ही शीर्ष झुका नमन करना पडता हैं | अब राजशाही तो रही नहीं उसकी जगह लोकतांत्रिक यानि जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता की सरकार के प्रमुख राष्ट्रपति सर्वोच्च पद पर आसीन हैं | प्रधानमंत्री तो पूर्व राजशाही के वजीर का तुलनात्मक पद हैं इसलिए भाषा विशेष में प्रधानमंत्री को वजीरेआजम भी कहां जाता हैं | इसलिए एन.डी.ए. (सत्ता पक्ष का बडा राजनैतिक गठबंधन) को पहले भारतीय बनने के लिए राज्यसभा के सभापति और लोकसभा के स्पीकर के माध्यम से निमंत्रण भेज राष्ट्रपति से ध्वजारोहण कराना चाहिए | G-20 को G-21 बनाकर दुनिया के देशों को जोडने का संदेश देने वाला राष्ट्र अब उसके समापन के साथ ही उसके लोगों में मौजूद रहे भारत-इंडिया को तोडकर जगहंसाईं कराके विश्वगुरू के प्राचिनतम सिक्के की छाप को खोट्टा सिक्का नहीं बतायेगा |
इसके बाद संसद के विपक्ष की बात आती हैं उसमें सबसे बडा समूह I.N.D.I.A. का राजनैतिक गठबंधन हैं | इसे INDIA बनने के लिए राष्ट्रपति से ध्वजारोहण के लिए निमंत्रण देना होगा | यह वर्तमान व्यवस्था या निर्धारित कागजी प्रक्रिया से हटकर है इसलिए उन्हें नई दिल्ली में ही पहले छोटी भारत-यात्रा तय करके राष्ट्रपति-भवन जाना होगा ताकि अल्पमत वाली राजनैतिक छाप को जनता के समर्थन से ढका जा सके |
इस भारत-यात्रा की शुरूआत नये संसद-भवन के द्वार से शुरू करनी पडेगी | यह यात्रा यहां से पहले महात्मा गांधी के शहीद-स्मारक जाये | ईश्वर-अल्लाह एक ही नाम सबको सदमति दे भगवान जैसी प्राथनाएं गाकर वहां उपस्थित मीडीया के कैमरामैनों के माध्यम से देश की जनता को बताये की आप धर्म, जात-पात, संस्कृति के आधार पर लड़ाई-झगड़े, ऊंच-नीच, भेदभाव, घृणा, तिरस्कार, छूआछूत व कुंठित सोच से ऊपर उठ देश व जनता के खुशहाल भविष्य हेतु काम करने के लिए संगठित हो गये हैं |
इसके बाद आगे का पढा़व उच्चतम न्यायालय होगा | यहाँ से मुख्य न्यायाधीश द्वारा संविधान की मूल-भावना वाली प्रस्तावना की शपथ लेनी हैं | ये ही संविधान संरक्षक राष्ट्रपति को शपथ दिलाते हैं | संविधान की मूल-प्रति इनके पास रहती हैं ताकि उसे किसी भी समय पढ़कर सच्चाई के मार्ग का ज्ञान प्राप्त कर लोगों को न्याय दे सके |
अब धर्म, संविधान, तिरंगा झण्डा लेकर राष्ट्रपति-भवन जाना हैं | इन सभी के माध्यमों से उन्हें नये संसद-भवन चलकर वहां ध्वजारोहण करके राष्ट्रीय गीत से राष्ट्र की गरिमा का महिमामान करके जनता के खून-पसीने की कमाई से बनी इस ईमारत को राष्ट्र व देश की जनता को समर्पित करने का अनुरोध करना हैं | तीनों सशस्त्र सेनाओं की प्रमुख व लड़ाकू विमान उडाकर फिज़ाओं से बात कर चुकी महामहिम को अच्छी तरह ज्ञात हैं कि अंग्रेजो से आजादी के संघर्षं में अनगिनत लोगों ने अपने जीवन की आहुति दी जिनके पूर्वज लाखों-करोडों वर्ष नहीं चन्द सैकडों वर्ष पहले इस भूधरा पर आये और इन्होंने इसी मिट्टी, जल, वायु से अपने शरीर का अस्तित्व प्राप्त करा | इन बलिदानों को भी आदर देना जरूरी था और इस मिट्टी की हर सभ्यता व संस्कृति में यह आदर रहा कि कोई आपके लिए त्याग व बलिदान करे तो उस उपकार को सदैव अपने जीवन से बडा मानना चाहिए | इस कारण हमारे भारतीय संविधान में भारत (सांस्कृतिक धरोहर) व इंडिया (इंडिपेंडेट नेशन डिकलेयर्ड इन अगस्त) को समान रूप से रखकर आपसी झगडे़ को खत्म करा है ताकि राष्ट्र संगठित बना रहे | इसके साथ नई पीढी जो यही पैदा हुई व होगी उसमें भी बिना स्थाई नागरिकता के पहचान पत्र को गले में टांगे बिना देश की सीमा पर दुश्मनों के दांत खट्टे करते समय बलिदान के लिए अपने सिर को आगे रखने मेंं दिल में बिना किसी संकोच के पैर लडखडाए नहीं …
18 सितम्बर 2023 के दिन जब पुराने संसद-भवन में आखरी सत्र होगा व नये भवन में जाने की तैयारी होगी तब हर राज्यसभा व लोकसभा के सांसद के धर्म व चरित्र की अग्निपरीक्षा होगी की उनके जीवन को बचाने वाले उन सुरक्षाकर्मियों के उपकार को किस तरह हमेशा के लिए बनाये रखते हैं या इस भवन के नये रूप संग्रहालय के अंधकार में छोड आगे बढ जाते हैं जिन्होंने आतंकी हमले में अपनी जान न्यौछावर कर अपने सिर पर तिरंगा ओढ़ लिया ताकि राष्ट्र के गौरव का सिर झुके नहीं …
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