विरासत में हुए विभिन्न प्रतियोगीता के विजेताओं को पुरस्कृत किया
ऋषिका मिश्रा के कथक नृत्य ने विरासत के लोगो को आनंदित कर दिया
संजुक्ता दास के ठुमरी ने विरासत के लोगो को प्रेमरस में डुबोया
देहरादून-28 अप्रैल 2022- विरासत आर्ट एंड हेरिटेज फेस्टिवल 2022 के चौदहवें दिन की शुरुआत डॉ. बी. आर. अंबेडकर स्टेडियम (कौलागढ़ रोड) देहरादून में ’प्रतियोगीयों को पुरस्कार सम्मान देकर किया गया। विरासत 2022 जिसका आयोजन 15 अप्रैल से 29 अप्रैल तक चल रहा है जिसमे विभिन्न प्रकार के प्रतियोगीताओं को आयोजित किया गया था और उन सभी का परिणाम आज घोषित किया गया। फोटोग्राफी प्रतियोगिता में जसवंत मॉडर्न स्कूल के सौम्या मैकृति प्रथम, ईश्वर उनियाल दून इंटरनेशनल स्कूल द्वितीय पुरस्कार एवं खुशी विष्ट हिम ज्योति स्कूल को तृतीय पुरस्कार मिला। सीट एंड ड्रॉ कंपटीशन में अनुराग रमोला, के वी ओएनजीसी को प्रथम पुरस्कार मिला, कशिश यादव एशियन स्कूल को द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ एवं साना मेहरा बीटीडीटी को तृतीय पुरस्कार मिला। हेरिटेज ट्रेजर हंट प्रतियोगिता में ग्रुप अवार्ड मिला जिसमें वेदांत ओहरी, श्रेया छेत्री, सौम्या मैकृति एवं मानसी शामिल रही। सभी विजेताओं को रीच के वरिष्ठ सदस्यों ने पुरस्कृत किया।
सांस्कृतिक संध्या कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ हुआ एवं ऋषिका मिश्रा द्वारा कथक नृत्य प्रस्तुत किया गया। उन्होंने अपने प्रस्तुति की शुरुआत सरस्वती वंदना से की, इसके बाद पारंपरिक तीन ताल- तोड़ा/तिहाई/परन/पदंत के साथ। बाद में, उन्होंने दुर्गा स्तुति- महिषासुर मर्दिनी, महालीला और बनारसी दादरा का प्रदर्शन किया। ऋषिका मिश्रा के साथ फनीषु महाराज, शुभ महारात और कुशल कृष्ण तबले पर, श्रीमती जयंती माला पधान पर और गायक गौरव मिश्रा थे।
बताते चले कि ऋषिका मिश्रा बनारस घराने के पारंपरिक कथक का प्रतिनिधित्व करने वाली एक उभरती हुई कलाकार हैं। ऋषिका मिश्रा दिवंगत आचार्य स्व पं सुखदेव महाराज के परिवार से आती हैं। उनकी मां जयंती माला विश्व प्रसिद्ध कथक डांसर हैं। ऋषिका कथक रानी सितारा देवी की पोती हैं और उन्होंने अपनी पहली शिक्षा तीन साल की उम्र में अपनी मां और अपनी नानी से प्राप्त की है। कथक में शामिल होने वाले गणितीय गणनाओं की ऋषिका ने बहुत प्रशंसा की है और बहुत कम उम्र में इसमें महारत भी हासिल की।
ऋषिका ने विभिन्न प्रतिष्ठित समारोहों में अपनी प्रस्तुति दी है और दशर्को ने भी उन्हें सराहना और उनके प्रस्तुती कि प्रशंसा की है। पुरस्कार और उपलब्धियां में ऋषिका को हरिदास सम्मेलन, सुरसिंगार समसद, इस्कॉन महोत्सव, मैसूर महोत्सव जैसे विभिन्न त्योहार एवं महोत्सअ शामिल है। उन्होंने विदेशों में भी बहुत से प्रस्तुतियां दी है जिसमे वे कई प्रकार के कथक नृत्य प्रस्तुत किया है जैसे कि पौराणिक मंदिर शैली, तांडव, लिशिया, प्रदोष और नटवारी। उन्होंने एकाकी नृत्य नाटिका, संपूर्ण रामायण, गीता उपदेश, ओम नमश शिवाय, शिव पुराण, गायत्री महिमा, नौ दुर्गा सप्तपती, विष्णु पुराण महिमा का भी प्रदर्शन किया है एवं वे मुगल शैली के दरबेरी नृत्य भी करती हैं।
ऋषिका मिश्रा अपनी माँ और दादी की तरह ही अभिनय और लयकारी में बहुमुखी प्रतिभा कि हैं, उनके हाथ की मुद्रा और चाल की स्पष्टता उत्कृष्ट है एवं उनका कथक नृत्य पारंपरिक और शुद्ध चक्र बहुत स्पष्ट है। कुल मिलाकर वह एक बहुत ही ग्रेसफुल डांसर हैं जो अपनी प्रस्तुतियों में परंपरा और आधुनिकता दोनों को जोड़ती है।
सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अन्य प्रस्तुतियों में संजुक्ता दास द्वारा ठुमरी गायन प्रस्तुत किया गया। सबसे पहले उन्होने राग मारू विहार गाया, अगली प्रस्तुति राग माज खामाजी में आगरा घराने के दादरा की रही। उनके साथ मिथलेश झा तबले पर, जाकिर ढोलपुरी हारमोनियम पर एवं तानपुरा पर पारस उपाघ्याय ने संगत दी।
ठुमरी एक उत्तर भारतीय गायन स्वरूप है जो भक्ति से प्रेरित प्रेमरस साहित्य पर आधारित है, इसमें आमतौर पर राधा-कृष्ण के प्रसंग को चरितार्थ किया जाता है। शब्द “ठुमरी“ हिंदी क्रिया ठुमकना से लिया गया है, जिसका अर्थ है “नृत्य के साथ चलना जिससे पायल के घुंघरू बजती हैं।“ इस प्रकार यह विशेष नृत्य, नाटकीय इशारों, हल्के कामुकता, उत्तेजक प्रेम कविता और लोक गीतों से जुड़ा हुआ है। इसे 19 वीं शताब्दी में लखनऊ के शासक वाजिद अली शाह के दरबार में विकसित किया गया था।
संजुक्ता दास ने एम.एससी. कलकत्ता विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में किया है वे पश्चिम बंगाल राज्य संगीत अकादमी, कोलकाता में संगीत स्कॉलर भी हैं एवं वे दूरदर्शन केंद्र कोलकाता की एंकर भी हैं।
उन्होंने उस्ताद रजा अली खान से प्रशिक्षण लिया एवं वे प्रसिद्ध ठुमरी और दादरा विदुषी दलिया राउत की शिष्या भी हैं। संजुक्ता दास वर्तमान में प्रबुद्ध राहा से रवींद्र संगीत का प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है। इससे पहले वे कनिका बंदोपाध्याय, अपाला बसु और राजेश्वर भट्टाचार्य की वरिष्ठ शिष्या श्यामश्री दासगुप्ता के कुशल मार्गदर्शन में थीं। संजुक्ता ने अपने गायन करियर की शुरुआत 1998 में शिशुमहल में ख्याल, रवींद्र संगीत और नज़रूल गीती के बाल कलाकार के रूप में की थी।