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रामराज्य में ही सभी धर्मों के लोग सुकून से रह सकते हैं- इकबाल सिंह लालपुरा

Pahado Ki Goonj

 

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सरदार इकबाल सिंह लालपुरा ने अजमेर में अजय पाल तीर्थ स्थल की दुर्दशा देखी।

सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष काबरा की पहल पर हुआ लालपुरा का ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा।

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अजमेर ,देहरादून, पहाडोंकीगूँज,राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष सरदार इकबाल सिंह लालपुरा ने कहा है कि रामराज्य में ही सभी धर्मों के लोग सुकून के साथ रह सकते हैं। 16 अप्रैल को अजमेर में निकटवर्ती खरेखडी गांव में आयोजित सुंदरकांड पुस्तिका वितरण समारोह में लालपुरा ने कहा कि यह अच्छी बात है कि इस क्षेत्र में ऐसे लोग भी रहते हैं जो राम और रहीम दोनों को मानते हैं। उन्होंने कहा कि रामराज्य का मतलब किसी धर्म विशेष का राज्य नहीं होता। रामराज्य का मतलब सभी लोगों का मान सम्मान होता है। भगवान राम ने जिस राज्य की परिकल्पना की आज इसकी सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा कि धर्म को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए, क्योंकि सबसे बड़ा धर्म इंसानियत का है। भगवान राम ने इंसानियत को ही सबसे पहले माना। उन्होंने बताया कि उनके आयोग के पास देश के छह धर्मों के लोगों को रोजगार, सुविधाएं और सरकारी योजनाओं के लाभ देने का काम है। आयोग चाहता है कि अल्पसंख्यक समुदाय को सरकारी योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक मिले। उन्होंने उम्मीद जताई कि केंद्र सरकार की जो योजनाएं अल्पसंख्यकों के लिए बनाई गई है। उनका लाभ राजस्थान में भी मिल रहा होगा।

अजय पाल की दुर्दशा देखी:

16 अप्रैल को आयोग के अध्यक्ष लालपुरा ने अजमेर पहुंचकर ऐतिहासिक स्थल अजय पाल की दुर्दशा भी देखी। सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष काबरा ने बताया कि राजा अजयपाल ने ही अजमेर की स्थापना की थी। लेकिन आज उन्हीं राजा का मंदिर और स्थल दुर्दशा का शिकार हो रहा है। अजमेर की पहचान ही अजयपाल से है,

लेकिन इस स्थल का विकास नहीं हो पाया। हालात इतनी खराब है कि ऐतिहासिक मंदिर और अजय पाल की प्रतिमा पर बिजली भी नहीं है। काबरा ने ग्रामीणों की ओर से आग्रह किया कि अजयपाल के गुजरने वाले कच्चे-पक्के मार्ग पर डामर की सड़क बनाई जाए। यदि सड़क बनती है तो आए दिन वाहनों का जाम भी नहीं लगेगा। लालपुरा ने अजय पाल की दुर्दशा पर अफसोस जताया। उन्होंने कहा कि ऐसे ऐतिहासिक स्थलों का विकास तो होना ही चाहिए। यह स्थान पर्यटन की दृष्टि से भी विकसित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अजमेर के इस ऐतिहासिक स्थल के विकास के लिए वे राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखेंगे। इसके साथ ही आयोग की ओर से केंद्र सरकार के जरिए फंड दिलवाए जाने का प्रयास करेंगे। लालपुरा ने कहा कि इस क्षेत्र के विकास के लिए जो भी सुझाव हों वे सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष काबरा के माध्यम से उनके पास भिजवा दें। अपने प्रवास में लालपुरा ने सुंदरकांड की पुस्तकों का वितरण भी किया।

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सुंदरकांड को पढ़ने से शरीर में एक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है। खरेखडी, काजीपुरा, अजय पाल आदि ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याएं राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग तक पहुंचाने के लिए मोबाइल नंबर 9829071696 पर सुभाष काबरा से संवाद किया जा सकता है।

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2016 की फोटो अजोगंध महादेव मंदिर (अजपाल मंदिर)

अजमेर से लगभग 10 किलोमीटर दूर अरावली पर्वतमाला की सुरम्य घाटी में अजयसर गांव के पास “अजोगंध महादेव मंदिर” नामक प्राचीन मंदिर स्थित है| ऐतिहासिक अजयमेरु नगर (अजमेर) के संस्थापक चौहान राजा अजयपाल का स्मृति रूपी यह प्राचीन मंदिर जो अजोगंध महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है, जन-आस्था व पुरातात्विक महत्व की अनूठी विरासत है| मनमोहक प्राकृतिक छठा के मध्य यहाँ बने शिव मंदिर का वास्तु शिल्प सातवीं सदी का प्रतीत होता है, जो राजा अजयपाल का समकालीन है| अजोगंध महादेव मंदिर के नाम से जाने जाने वाले इस मंदिर को स्थानीय लोग राजा अजयपाल का मंदिर भी कहते है है, पर वह पश्चिम मुखी शिव मंदिर ही है जिसकी पुष्टि उसके प्राचीन नाम अजोगंध महादेव मंदिर से हो जाती है| मंदिर गर्भग्रह के सिलदर पर शिव के लकुलिस अवतार की प्रतिमा स्थापित है| द्वार के दोनों और कीर्ति मुख भी खुदे है| मंदिर का वस्तु शिल्प देखने के बाद पुरातत्वविद ललित शर्मा ने बताया कि “इस शिव मंदिर में शैव सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा तांत्रिक क्रियाएँ संपन्न की जाती थी|” इसी मंदिर के उत्तरी, दक्षिणी तथा पूर्वी दिशाओं में मूर्तियाँ स्थापित थी| वर्तमान में पूर्वी दिशा में राजा अजयपाल की पूजा होती है| वर्तमान में मंदिर का मुख्य द्वार भी पूर्व दिशा में खुलता है जिस पर “श्री अजयपाल जी महाराज का मंदिर” नाम अंकित है।

इस मंदिर के पीछे एक प्राकृतिक जल स्त्रोत बना है जिसमें उतरने के लिए सीढियाँ बनी है, जिनका वास्तु शिल्प देखने के बाद लगता है कि उनका निर्माण बाद के किसी समय में किया गया है| इस निर्माण में वहां के ध्वस्त मंदिरों की मूर्तियाँ, कलश आदि का उपयोग भी किया गया है| अजयपाल मंदिर के नजदीक ही एक और मंदिर बना है जिसका बाद के किसी समय में पुनरुद्धार किया प्रतीत होता है| उसी मंदिर के पास एक अन्य ध्वस्त मंदिर के अवशेष नजर आते है| इस ध्वस्त मंदिर की पीठिका में पनाली आदि देखने के बाद यह शिव मंदिर प्रतीत होता है| मंदिर का मुख पूर्व दिशा में होना इसे सात्विक मंदिर सिद्ध करता है| इस मंदिर के पास ही दक्षिण दिशा में एक कुआ नजर आता है|

अजयपाल मंदिर के पास ही एक नाले के पास पत्थर की बनी एक घानी (तेल निकालने का कोल्हू) नजर आती है| इस घानी के बारे में “अजमेर का वृहद् इतिहास” पुस्तक में डा. मोहनलाल गुप्ता लिखते है- “जब कोई विधर्मी किसी हिन्दू की पूजा-प्रार्थना में विध्न डालता था, तो राजा अजयपाल उसे इस घानी में पिसवा देता था|”
प्राचीन काल से ही क्षत्रिय सन्यास लेने के बाद भी हथियार व सवारी (घोड़ा आदि) का त्याग नहीं करते थे| साथ ही उनके आप-पास रहने वाले साधू, चरवाह आदि अपनी सुरक्षा व अन्य समस्याओं के लिए भी उन्हीं पर निर्भर रहते थे| ऐसे में हो सकता है पुष्कर के आस-पास रहने वाले साधुओं को मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा तंग करने व पशु पालकों का पशुधन लूटने वालों को राजा अजयपाल सन्यासी होने के बावजूद वहां दण्ड देते रहे हों| डा. मोहनलाल गुप्ता ने अपनी इतिहास पुस्तक में यहाँ राजा अजयपाल द्वारा शिव की तपस्या करने का उल्लेख किया है| अन्य इतिहासकारों के मतानुसार उम्र के आखिरी पड़ाव में राजा अजयपाल ने संन्यास धारण कर लिया और वहीं पर रहे।

क्षत्रिय चिन्तक और लेखक श्री देवीसिंह जी महार के अनुसार- राजा अजयपाल अपने पुत्र को राज्य सौपने के बाद यहाँ तपस्या करने के लिए आ गए| उनके यहाँ आने से यहाँ एक छोटा सा गांव बस गया| पुष्कर के नजदीक होने के कारण इस क्षेत्र में बहुत से साधू तपस्या करने हेतु रहते थे| एक बार बहुत से मुस्लिम डकैत पशुपालकों का पशुधन लूटने को आ धमके| ऐसे में पशुपालक व चरवाहे सन्यास ग्रहण कर चुके राजा अजयपाल के पास सुरक्षा की गुहार लेकर पहुंचे| राजा अजयपाल ने देखा कि विधर्मी आक्रान्ताओं की संख्या बहुत ज्यादा है और उनके साथ युद्ध में बचना असंभव है| चूँकि राजा अजयपाल विधर्मियों के हाथों मरना नहीं चाहते थे| अत: उन्होंने स्वयं अपना सिर काट कर वहां रख दिया और बिना सिर के वे घोड़े पर सवार होकर विधर्मी लुटेरों पर टूट पड़े और उन्हें गुजरात में कच्छ तक खदेड़ दिया| लुटेरों को खदेड़ने के बाद राजा अजयपाल का धड़ कच्छ के अंजार में गिरा, जहाँ आज भी उनकी याद मंदिर बना है| इस तरह राजा अजयपाल का सिर अजयपाल गांव में रहा और धड़ कच्छ जिले के अंजार नामक स्थान में|

वर्तमान में यह स्थान पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है| पिछले कुछ समय से एक होमगार्ड का जवान भी इस स्थान की सुरक्षा हेतु तैनात है| ध्वस्त मंदिरों की मूर्तियाँ आदि कई पुरातात्विक महत्त्व की वस्तुएं बिखरी पड़ी है, जिन्हें सहेजने की आवश्यकता है| प्राकृतिक रूप से मनमोहक व एकान्त में होने चलते यह स्थान सैलानियों, मनचलों व शराबियों की पसंद भी है अत: यहाँ होमगार्ड की तैनाती के साथ ही समुचित सुरक्षा व्यवस्था हेतु पुलिस गश्त की भी आवश्यकता है|

यहाँ अजमेर, पुष्कर आदि स्थानों से आसानी से पहुंचा जा सकता है|

 

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