यूक्रेन संकट: क्या अब रूस ने अपनी रणनीति बदल दी है और हमले का इरादा छोड़ दिया है
मंगलवार को जर्मनी के चांसलर ओलफ शूल्ज मास्को पहुंचे। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से चर्चा हुई और दुनिया ने राहत की सांस ली। सभी को उम्मीद है कि रूस अब यूक्रेन पर हमला नहीं करेगा। रूस ने भी यूक्रेन की सीमा पर तैनात अपनी सेना की संख्या में कटौती करने की घोषणा कर दी है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और ब्रिटेन के बोरिस जॉनसन ने भी राहत की सांस ली है। अभी यह पता नहीं चल पाया है कि रूस ने यह कदम किस भरोसे पर उठाया है। लेकिन तमाम आशंकाओं के बीच इस नए बदलाव से पूरी दुनिया को मंहगाई और युद्ध की स्थिति में पैदा होने वाली अंतरराष्ट्रीय अस्थिरता जैसे हालात से बच जाने के आसार हैं। खासकर, भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह एक अच्छी स्थिति होगी। इससे पहले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर चर्चा की थी। विदेश मामलों के जानकारों का कहना है कि राष्ट्रपति बाइडन ने पुतिन को अपनी सभी चिंताओं और प्रतिबद्धताओं से अवगत कराया। यूक्रेन की सीमा पर तैनात रूसी सेना तथा हमले की आशंका से उठे सवालों को लेकर भी खुलकर चर्चा की। अल-जजीरा न्यूज और स्पूतनिक के मुताबिक राष्ट्रपति पुतिन ने भी बाइडन के सामने अपनी चिंताओं को रखा। पुतिन ने स्पष्ट किया कि रूस का यूक्रेन पर हमले का कोई इरादा नहीं है, लेकिन यूक्रेन को नाटो सदस्य देशों में शामिल करने का प्रस्ताव और प्रयास दोनों उसके लिए गंभीर चिंता का विषय है। यह रूस की सुरक्षा चिंताओं से जुड़ा संवेदनशील मसला है। ऐसा समझा जा रहा है कि रूस ने भी अपनी तरफ से प्रस्ताव दिए और अमेरिका ने भी रूस के सामने कुछ स्थितियां रखीं तथा बातचीत बिना किसी निर्णायक स्थिति ।
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यूरोपीय संघ (ईयू) ने भारत को यूक्रेन की स्थिति पर अपनी चिंताओं और पूर्वी यूरोपीय देश के खिलाफ किसी भी रूसी आक्रमण की स्थिति में बड़े पैमाने पर होने वाले बदलावों से जुड़ी योजना के बारे में सूचित किया है। यूरोपीय संघ के एक अधिकारी ने बुधवार को भारतीय पत्रकारों के समूह को बताया कि यूरोपीय संघ भारत के साथ लगातार बातचीत कर रहा है, जिसे वह ‘मित्र और भागीदार’ के रूप में देखता है, ताकि नई दिल्ली को रूसी सैनिकों की ओर से उठाए गए किसी भी बड़े कदम के बाद बदले हुए घटनाक्रम में यूक्रेन की स्थिति के बारे में आकलन और चिंताओं से अवगत कराया जा सके। विज्ञापन यूरोपीय संघ ने नाटो और उसके अमेरिका जैसे सहयोगियों के साथ मिलकर यूक्रेन के खिलाफ रूस के किसी भी आक्रामकता भरे कदम के जवाब में उठाए जाने वाले कदमों और एक मजबूत प्रतिक्रिया की योजना तैयार की है। अधिकारी ने कहा कि ऐसी स्थिति में बड़े गंभीर परिणाम सामने आएंगे। यूरोपीय संघ, यूक्रेन के साथ खड़ा है, लेकिन साथ ही हम बातचीत और राजनयिक समाधान के लिए सभी रास्ते तलाशने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। यूरोपीय संघ के अधिकारी ने यूक्रेन की स्थिति के संबंध में संघ के 27 सदस्यों की भारत से अपेक्षाओं के सवाल को टालते हुए कहा कि समूह ने भारतीय पक्ष को अपनी स्थिति, दृष्टिकोण और आकलन के बारे में जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि हम विशेष रूप से इस तथ्य पर जोर दे रहे हैं कि यूरोपीय सुरक्षा को रेखांकित करने वाले सिद्धांतों और नियमों का सम्मान किया जाना चाहिए। चाहे वह यूरोप में हो या बाकी दुनिया अंतरराष्ट्रीय शासन की एक नियम-आधारित प्रणाली है जो सभी के लिए रुचिकर है।
जलवायु परिवर्तन व ऊर्जा संकट हैं रुस -यूक्रेन विवाद के पीछे
– अनुज अग्रवाल
जिस किसी को यह ग़लतफ़हमी है कि रुस और यूक्रेन का युद्ध टल चुका है वे निश्चित रूप से ग़लत हैं। शेयर बाज़ार के उतार चढ़ाव के भरोसे कूटनीतिक खेलों का आँकलन करना छोड़ दें। युद्ध न होने मगर सीमाओं पर सेनाओं के डटे रहने के नुक़सान भी युद्ध जैसे ही होते हैं। गोलबारी व बमबारी में तो मात्र युद्धरत दो देशों को ही जान माल का नुक़सान होता किंतु पूरी दुनिया पर जो महंगाई का बम गिरता है वो युद्ध के होने के बाद ही नहीं वरन युद्ध जैसे हालात में भी फूटता रहता है। इसी कारण दुनिया में तेल व गैस उत्पादक देशों की चाँदी हो रही है व बाक़ी देश बुरी तरह पिस रहे हैं। रुस और यूक्रेन के बीच बिगड़ते हालातों के पीछे नाटो देश विशेषकर अमेरिका है जो लगातार पिछले लंबे समय से यूक्रेन पर डोरे डाल रहा है। किंतु रुस की आक्रामकता के आगे उसे बार बार मुँह की खानी पड़ रही है।किंतु इसके बाबजूद आर्थिक लाभ दोनो को ही प्रचुर मात्रा में हो रहा है।इसलिए यह एक प्रकार की नूरा कुश्ती भी कही जा सकती है।
बदलती दुनिया और परिस्थितियों ने अमेरिका को कमजोर किया है और रुस व चीन अब बराबर के स्तर पर व्यवहार चाहते हैं। यही बात अमेरिका को अखर रही है । वह बार बार यह भूल जाता है कि उसकी स्थिति कमजोर हो रही है व रुस व चीन मज़बूत होते जा रहे हैं। इसी कारण नाटो देशों में भी दो फाड़ की स्थिति है। फ़्रांस, टर्की, जर्मनी व इटली के रुस व चीन से बढ़ते संबंध एक नई विश्व व्यवस्था उभरने के संकेत दे रहे हैं। जलवायु परिवर्तन और ऊर्जा संकट ने पूरी दुनिया के कूटनीतिक , आर्थिक व सामरिक संबंधो को उलट-पलट कर रख दिया है। यूरोप के कई देश जलवायु संकट के कारण उत्पन्न स्थितियों में गैस का खनन नहीं कर पा रहे हैं और लंबे शीत काल के कारण उनको पूरे वर्ष अपने घर, कार्यालयों व परिसरों को गर्म रखने के लिए प्रचुर मात्रा में गैस की आवश्यकता पड़ती है। निकट का देश होने के कारण रुस से यह गैस मंगाना सरल व सस्ता पड़ता है।
यूरोपीय देशों को जितनी प्राकृतिक गैस की जरूरत पड़ती है, रूस उन्हें उसका एक तिहाई हिस्सा सप्लाई करता है।लेकिन अप्रैल 2021 के बाद उसने सप्लाई में बड़ी कटौती की है। ऐसा जानबूझकर गैस का दाम बढ़ाने व ज़्यादा कमाई करने के लिए किया गया। इस कारण यूरोप में गैस के दाम पाँच गुना तक बढ़ गए हैं। यूक्रेन में चूँकि गैस के प्रचुर भंडार हैं इसलिए यूरोप के नाटो देश उसको अपने गुट में शामिल करने के लिए तरह तरह के लालच दे रहे हैं। रुस को लगता है कि यूक्रेन को नाटो का सदस्य बनाने के बहाने नाटो देश उसको चारों ओर से घेर सकते हैं। इसी कारण वह यूक्रेन का नाटो का सदस्य बनने का विरोध कर रहा है।
रणनीतिक रूप से रुस और अमेरिका गुप्त अभियान पर काम कर रहे हैं। अमेरिका चाहता है कि रुस यूक्रेन पर हमला कर दे और इस बहाने वो रुस को युद्ध में उलझाकर आर्थिक प्रतिबंध थोप देगा और यूरोप को गैस की आपूर्ति का काम हथिया लेगा और मोटी कमाई कर पाएगा। वहीं रुस यूक्रेन के दो टुकड़े करना चाहता है या फिर उसमें अपनी कठपुतली सरकार बैठाना चाहता है। ऐसा करने से यूक्रेन के गैस भंडार रुस के क़ब्ज़े में आ जाएँगे और रुस यूरोप को ज़्यादा गैस बेचकर अधिक माल कमा पाएगा। किंतु इन दोनो ही कार्यों को करने में सीमित युद्ध व दबाव आवश्यक है। परोक्ष रूप से रुस के इस खेल को चीन का पूर्ण समर्थन है और जर्मनी भी चूँकि पूरी तरह गैस की आपूर्ति के लिए रुस पर ही निर्भर है इसलिए रुस के पाले से बाहर नहीं जाएगा।
इन परिस्थितियों में इस क्षेत्र में अब लंबे समय तक झड़प, सीमित युद्ध , बड़े युद्ध और विश्व युद्ध तक किसी भी तरह की संभावना बनी रहेगी और तेल व गैस के दाम ऊँचे बने रहेंगे। आगे आगे जैसे जैसे जलवायु परिवर्तन और भयावह रूप में सामने आएगा वैसे वैसे संघर्ष की स्थितियाँ और विकट होती जाएँगी। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि तीसरा विश्व युद्ध ( अमेरिका चीन व्यापार युद्ध) जो कोरोना महामारी की आड़ में जैविक युद्ध का स्वरूप लिए हुए था अब जल्द हथियारों की लड़ाई के रूप में सामने आने वाला है। चूँकि महाशक्तियों को व्यापारिक व आर्थिक हित साधने की चिंता अधिक रहती है इसलिए वे आपस में सीधे नहीं टकराएँगी और परमाणु युद्ध की सम्भावनाएँ भी न के बराबर हैं किंतु झपटमारी के खेल में छोटे मोटे युद्ध और खूनी संघर्ष होने तो तय हैं। अगर आगे वैश्विक जलवायु परिवर्तन की स्थितियाँ तेजी से बिगड़ती हैं तो आमने सामने के युद्ध से भी इंकार नहीं किया जा सकता क्योंकि तब दुनिया की जनसंख्या, जीवाश्म ईंधनों व भोतिक संसाधनों को उपयोग तेज़ी से कम करना होगा और हरित ऊर्जा व इलेक्ट्रिकल वाहनो की और तेज़ी से बढ़ना होगा। ग्रीन एनर्जी चूँकि बहुत ज़्यादा सस्ती है इसलिए इसका प्रयोग बढ़ते जाने से तेल गैस उत्पादक व वितरक देशों की अर्थव्यवस्थायें व जीडीपी अत्यधिक सिकुड़ती जाएँगी और इस कारण दुनिया में दर्जनों देशों में भीषण आंतरिक व अंतरराष्ट्रीय संघर्ष होना तय है। और यह बस अगले कुछ वर्षों में होने जा रहा है।क्या हम तैयार हैं इसके लिए।
एसजेवीएन के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक ने शिमला में एक वर्किंग हाइड्रो प्रोजेक्ट मॉडल की आधारशिला रखी
देहरादून – 18 फरवरी 2022– नन्द लाल शर्मा, अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक, एसजेवीएन ने आज कंपनी के कारपोरेट मुख्यालय, शनान, शिमला के समीप निर्माणाधीन जैव विविधता पार्क में 1.3 – किलोवाट जलविद्युत परियोजना के एक वर्किंग मॉडल की आधारशिला रखी। शिलान्यास समारोह में एस. पी. बंसल, निदेशक सिवि और एसजेवीएन के अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे।
इस अवसर पर संबोधित करते हुए नन्द लाल शर्मा ने कहा कि यह हाइड्रो प्रोजेक्ट मॉडल आमजन को हाइड्रो स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन की अवधारणा को बेहतर ढंग से समझने में सहायता करेगा। एसजेवीएन इस जैव-विविधता पार्क का निर्माण 2.97 करोड़ रुपए की लागत से कर रहा है। इस वर्किंग मॉडल के अतिरिक्त डाइवर्सिटी पार्क में एक चिल्ड्रन पार्क और एक फिटनेस पार्क भी होगा। जैव-विविधता पार्क के पूरा होने पर इसे नगर निगम शिमला को सौंप दिया जाएगा।
शर्मा ने बताया कि एसजेवीएन इस जैव विविधता पार्क को अपने कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व पहल के तहत विकसित कर रहा है। उन्होंने दोहराया कि एसजेवीएन हमेशा से समाज के कल्याणार्थ प्रतिबद्ध है तथा विश्व स्तरीय सामुदायिक संपत्तियों का निर्माण कर लोगों को रिहायशी स्थानों में हरसंभव सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए कृतसंकल्प है।
सीएसआर गतिविधियां एसजेवीएन द्वारा एसजेवीएन फाउंडेशन ट्रस्ट के माध्यम से छह शीर्षों नामत: स्वास्थ्य और स्वच्छता, शिक्षा और कौशल विकास, सामुदायिक संपत्तियों का निर्माण, सततशील विकास, स्थानीय संस्कृति और खेल को बढ़ावा देना और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान सहायता के तहत संचालित की जा रही हैं। अब तक एसजेवीएन फाउंडेशन ने इन शीर्षों के माध्यम से 330 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया है।
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*सरकारी अधिसूचना जारी बाइक पर बच्चे के लिए हेलमेट, 40 किमी प्रति घंटे तक की रफ्तार, जानें नए सड़क सुरक्षा नियम*
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने बुधवार को दोपहिया वाहनों पर चार साल से कम उम्र के बच्चों को ले जाने के लिए नए सुरक्षा नियमों को अधिसूचित किया है। नए यातायात नियम सवारों के लिए बच्चों के लिए हेलमेट और हार्नेस बेल्ट का इस्तेमाल करना अनिवार्य बनाते हैं और साथ ही बाइक की रफ्तार को सिर्फ 40 किमी प्रति घंटे तक सीमित करते हैं। मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नए नियमों में कहा गया है कि चार साल तक के बच्चे को पीछे की सीट पर ले जाने वाली मोटरसाइकिल की गति 40 किमी प्रति घंटे से ज्यादा नहीं होगी। ये नियम केंद्रीय मोटर वाहन (द्वितीय संशोधन) नियम, 2022 के प्रकाशन की तारीख से एक वर्ष के बाद लागू होंगे। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने एक बयान में कहा, “सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 15 फरवरी, 2022 की अधिसूचना के जरिए सीएमवीआर, 1989 के नियम 138 में संशोधन किया है और चार साल से कम उम्र के बच्चों, सवारी करने या मोटर साइकिल पर ले जाने के लिए सुरक्षा उपायों से संबंधित मानदंड निर्धारित किए हैं।” । मंत्रालय ने कहा, “यह मोटर वाहन अधिनियम की धारा 129 के तहत अधिसूचित किया गया है, जो कहता है कि केंद्र सरकार, नियमों के अनुसार, सवारी कर रही है या मोटर साइकिल पर ले जा रहे चार साल से कम उम्र के बच्चों की सुरक्षा के लिए उपाय कर सकती है। इसके अलावा, यह एक सुरक्षा हार्नेस और क्रैश हेलमेट के इस्तेमाल को निर्दिष्ट करता है। यह ऐसी मोटर साइकिलों की रफ्तार को 40 किमी प्रति घंटे तक सीमित करता है।” मंत्रालय ने कहा कि चार साल से कम उम्र के बच्चों के लिए मोटरसाइकिल के चालक से बच्चे को अटैच करने के लिए सुरक्षा कवच का इस्तेमाल किया जाएगा।
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के.एल. डीम्ड-टू-बी यूनिवर्सिटी के सर्वाधिक छात्रों को इंटर्नशिप प्रदान किए जाने के लिए सर्वोच्च रैंक से सम्मानित किया गया
विश्वविद्यालय ने 650 से ज्यादा छात्रों के लिए मशहूर कंपनियों में इंटर्नशिप का आयोजन किया है
देहरादून-16 फरवरी, 2022- देश में ग्रेजुएशन और उच्च शिक्षा के लिए प्रमुख विश्वविद्यालयों में से एक, के.एल. डीम्ड-टू-बी यूनिवर्सिटी ने देश में इंटर्नशिप एवं ऑनलाइन ट्रेनिंग के अग्रणी प्लेटफार्मों में से एक, इंटर्नशाला से उत्कृष्टता के लिए प्रमाण-पत्र प्राप्त किया है। साल 2021 के लिए इंटर्नशाला की वार्षिक रैंकिंग में के.एल. डीम्ड-टू-बी यूनिवर्सिटी ने प्रथम स्थान प्राप्त किया है। इस रैंकिंग में पूरे भारत के 1,100 से अधिक विश्वविद्यालयों को शामिल किया गया था।
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, भारत सरकार के सहयोग से आयोजित इस वार्षिक रैंकिंग में देश भर के उच्च शिक्षण संस्थानों द्वारा अपने छात्रों को प्रतिष्ठित कंपनियों में नौकरी दिलाकर उनके शुरुआती करियर को बढ़ावा देने के लिए किए गए अनुकरणीय प्रयासों को सम्मानित किया जाता है। पिछले 2 सालों के दौरान, इस महामारी की वजह से नियुक्ति तथा इंटर्नशिप की पूरी प्रक्रिया काफी हद तक बदल गई है। नए हाइब्रिड और रिमोट मॉडल को जल्द-से-जल्द अपनाने के साथ-साथ मौजूदा पीढ़ी के युवाओं (जेनरेशन ज़ेड) को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय अस्तर की कंपनियों के साथ जोड़ने से संबंधित गतिविधियों के बीच, के.एल. डीम्ड-टू-बी यूनिवर्सिटी ने छात्रों के लिए कक्षा में पढ़ाई और प्रायोगिक शिक्षण के पूरे चक्र को अच्छी तरह बरकरार रखा है।
उत्कृष्टता के प्रमाण-पत्र के माध्यम से विश्वविद्यालय को आंध्र प्रदेश में नंबर 1 रैंकिंग दी गई है, तथा दक्षिण क्षेत्र में शीर्ष क्रम के 10 और राष्ट्रीय स्तर पर शीर्ष क्रम के 30 विश्वविद्यालयों की सूची में स्थान दिया गया है, जो वास्तव में विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा बेहतर वेतन वाली नौकरियों को सुनिश्चित करने की बात को मान्यता प्रदान करता है। छात्रों ने उबर ईट्स, यूनाइटेड नेशंस वालंटियर, स्नैपडील और ऑलइनवन साइबरटीम प्राइवेट लिमिटेड जैसी विभिन्न कंपनियों में इंटर्नशिप का अवसर प्राप्त किया है। साइबर सुरक्षा क्षेत्र की एक प्रसिद्ध कंपनी द्वारा प्रति माह 25,000 रुपये के मानदेय पर छात्र को इंटर्नशिप हेतु रखा गया, जो छात्रों द्वारा प्राप्त उच्चतम मानदेय है। विभिन्न प्रकार के उद्योगों, अलग-अलग कंपनियों तथा छात्रों की कार्य-नीति एवं कार्यशैली के आधार पर छात्रों के लिए इंटर्नशिप की अवधि 1 महीने से लेकर 6 महीने तक है।
इस अवसर पर डॉ. जी. पारधासारधी वर्मा, वाइस-चांसलर, के.एल. डीम्ड-टू-बी यूनिवर्सिटी, ने कहा, “यह पुरस्कार और सम्मान के.एल. डीम्ड-टू-बी विश्वविद्यालय में शिक्षा की संस्कृति तथा मूल सिद्धांतों को दर्शाते हैं। हम आज के जमाने की जरूरतों के अनुरूप, सैद्धांतिक शिक्षा के साथ-साथ जमीनी स्तर पर प्रायोगिक शिक्षा के बीच पूरा संतुलन बनाने पर विशेष ध्यान देते हैं। हमारे छात्रों को प्रमुख राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों से सराहना एवं प्रशंसा प्राप्त हुई है, और यह देखकर मुझे बेहद खुशी महसूस हो रही है।
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केशर जन कल्याण समिति,माजरी माफी ने कहा कि
रायपुर व डोईवाला विधानसभान्तर्गत अनेक क्षेत्रों में विद्युत कटौती से जनता हलकान रहने लगा है।
राज्य की अस्थाई राजधानी देहरादून की रायपुर विधानसभा व डोईवाला विधानसभान्तर्गत माजरी माफी,मोहकमपुर,नेहरूग्राम,नवादा,हरिपुर,बद्रीपुर आदि क्षेत्रों में घंटों घंटों तक विद्युत कटौती से आम जनता परेशान है।
केशर जन कल्याण समिति के प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट एन के गुसाईं ने कहा कि अघोषित विद्युत कटौती से जहां लोगों को भारी असुविधा का सामना करना पड़ रहा है,वहीं विद्युत की अनुलब्धता के कारण पानी के ट्यूबवेल न चलने से लोगों को पानी भी नहीं मिल पाता है।
गुसाईं ने कहा कि हाल ही में सम्पन्न विधानसभा के चुनावों में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने या तो कुछ लिमिट में फ्री बिजली देने की बात की या फिर सस्ती बिजली देने की बात कही।
दुर्भाग्य है कि जनता को उत्तराखंड में ही पैदा होने वाली बिजली महंगे दामों पर भी सुचारू रूप से नहीं मिल पाई रही है।
चुनाव बाद क्या होगी,बिजली किस रेट पर मिलती है।ये सब तो समय पर ही पता चलेगा,लेकिन चुनाव परिणाम तक की विद्युत कटौती की झेल जनता को झेलनी मुश्किल लग रही है।
केशर जन कल्याण समिति के अध्यक्ष एडवोकेट एन के गुसाईं ने ऊर्जा विभाग को चेतावनी दी है कि सप्ताह भर के अंदर विद्युत कटौती की समस्या का समाधान करे,अन्यथा की स्थिति में समिति स्थानीय जनता को साथ में लेकर ऑदोलन करने को विवश होगी,जिसकी समस्त जिम्मेदारी ऊर्जा निगम की होगी।
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