देहरादून। उत्तराखंड पेयजल निगम से छुट्टी होने के बाद भी निवर्तमान प्रबंध निदेशक भजन सिंह कर्मचारी नेताओं के निशाने पर हैं। एमडी के पद से हटाकर उन्हें मुख्यमंत्री के पेयजल सलाहकार बनाए जाने से भी निगमकर्मी बेहद खफा हैं। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि जिस अफसर पर भ्रष्टाचार के 100 से अधिक आरोप हैं उसे सलाहकार बनाया जाना सरकार की जीरो टाॅलरेंस नीति की तौहीन है।
कर्मचारी नेताओं की मांग है कि विभागीय टेंडरों में गड़बड़ी और अनियमितताओं की शासन स्तर पर निष्पक्ष जांच कराई जाए और जांच पूरी होने तक उन्हें सेवा से निलंबित रखा जाए। साथ ही भजन सिंह की आय से अधिक संपत्ति की भी ईडी विजिलेंस से जांच कराई जाए और दोषी पाए जाने पर उनके खिलाफ बर्खास्तगी कार्रवाई करते हुए उनसे रिकवरी की जाए।
सबसे अहम बात यह सामने आ रही है कि एमडी की सेवा नियमावली अस्तित्व में आने के बाद वह उस पद के अधिकारी नहीं थे। ऐसे में नियमानुसार उनके द्वारा इस अवधि में लिए गए सारे निर्णय और आदेश अमान्य हैं। कभी बड़ा राजस्व कमाने वाला उत्तराखंड पेयजल निगम आज घाटे का निगम बना हुआ है। हालत यह है कि निगम को तीन-तीन, चार-चार माह में एक माह की तनख्वाह भी बमुश्किल मिल पा रही है। पेंशनर्स को पेंशन समय पर पेंशन नहीं मिल पा रही है।
आरोप है कि पिछले तकरीबन 10 साल के एमडी के कार्यकाल में उनके द्वारा निगम हित कम और स्वहित में ज्यादा परेशान रहे। रिटायर हो रहे अधिकारयिों एवं कर्मचारियों को कई-कई वर्षों तक ग्रेच्युटी आदि का लाभ नहीं मिल पा रहा है। पेयजल योजनाओं के टेंडरों में अनियमितताओं के चलते वह हमेशा अखबारों, न्यूज पोर्टलों और टीवी चैनलों की सुर्खियों में रहे हैं। कर्मचारियों की स्थाई और आउटसोर्सिंग कार्मिकों की नियुक्ति के साथ ही पदोन्नति और पोस्टिंग आदि में भी लेनदेन की आरोप भी उन पर हमेशा लगते रहे हैं।
कार्मिकों की एसीआर में मनमाने तरीके से लिखने और इसमें गोट-छांट करने के भी आरोप उन पर आए दिन लगते रहे हैं। कुछ विवादित एसीआर के मामले कोर्ट भी पहुंचे हैं। चहेते अधिकारियों को प्रमोट करने के लिए दूसरे अधिकारियों की एसीआर में खेल करने जैसे विवाद भी उनसे जुड़े हुए हैं। बताया जा रहा है कि कई अधिकारियों की दो-दो, तीन-तीन साल से एसीआर उनके द्वारा दबाई गई है। उनके पद से हटने के बाद ऐसी एसीआर के मामले में लटक सकते हैं। पदोन्नति के दौरान ही एसीआर लिखने का रिवाज भी पेयजल निगम में भजन के कार्यकाल में शुरु हुआ है।
अपने चहेतों पर वह किस कदर मेहरबान रहे, अधिशासी अभियंता इमरान खान सरीखे कई अधिकारी इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। बताते चलें कि इमरान खान का पूर्व में एक ठेकेदार से रिश्वतखोरी का वीडिया सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ, जिसमें उनका भी नाम सीधे तौर पर उनका भी नाम जुड़ा हुआ था।
भजन सिंह ने ऐन केन प्रकारेण मामले को दबाकर इमरान को निलंबित होने से ही नहीं बचाया, बल्कि कुछ दिनों में ही पौड़ी से फिर देहरादून वापसी करवाई। इसके बाद एक और तोहफा देते हुए पहले इमरान को प्रभारी जीएम बनाया और अब हाल में टिहरी केे अधीक्षण अभियंता का भी प्रभार दे दिया।
भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों को संरक्षण देना उनके मुखिया होने पर सवाल तो उठाते ही हैं साथ ही उनकी कार्यप्रणाली पर भी प्रश्नचिन्ह लग जाता है। इसके ठीक उलट ऐसे भी कई मामले में जिन पर आरोप लगते ही उन्हें निलंबित ही नहीं किया गया, बल्कि बर्खास्तगी की कार्रवाई की गई। जबकि बात न मानने वाले कई अधिकारियों पर उन्होंने नियमों के विरुद्ध कार्रवाई करके दबाने का काम किया है, जिसकी शासन और सरकार में कई शिकायतें हैं।
‘निवर्तमान प्रबंध निदेशक भजन सिंह पर विभिन्न माध्यमों से जो भी अनियमितताओं से संबंधित आरोप लगे हैं सरकार उसकी निष्पक्ष जांच कराए। निविदाओं में गड़बड़ी की जो भी शिकायतें हैं, उसकी निष्पक्ष जांच कराई जाए। और यदि वह दोषी पाए जाते हैं तो उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए।’
प्रवीन कुमार राय, अध्यक्ष, अधिशासी अभियंता एसोसिएशन
‘निवर्तमान एमडी भजन सिंह चहेतों को नियम विरुद्ध ढंग से लाभ पहुंचाते रहे हैं। अभियंताओं की वरिष्ठता में भी उनके द्वारा भारी गड़बड़ी की गई है। कनिष्ठ होने के बाद भी नियम विरुद्ध ढंग से अब तक एमडी के पद पर बने रहे। आरटीआई के जिस मामले में सूचना आयोग ने 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है उस मामले में बर्खास्तगी की कार्रवाई पूर्णतया असंवैधानिक है। जबकि यह मामला अभी हाईकोर्ट में लंबित है।
तपोवन पुनर्गठन पंपिंग पेयजल योजना का जो टेंडर जारी किया गया था, जिसे तीन माह के अंदर अवार्ड किया गया था। जबकि विभाग के अन्य टेंडरों की प्रक्रिया में छह माह से एक साल का समय लग रहा हैं। ऐसे में दूसरे अधिकारियों पर इसके लिए सेवा से बर्खास्तगी की कार्रवाई प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
इससे साबित होता है कि भजन सिंह द्वैष भावना से अंतिम दिन पद पर रहते हुए सुजीत कुमार विकास को सेवा से बर्खास्त किया गया है, जबकि निर्णय लेनेे से पूर्व पत्रावली पर निगम के चेयरमैन और विभागीय मंत्री से अनुमोदन लेना आवश्यक था। एमडी चयन की नियमावली में शासन स्तर से किया गया संशोधन 5 जून 2020 से लागू हो गया था। इसलिए पांच जून के पश्चात भजन सिंह द्वारा लिए गए सभी प्रशासनिक निर्णय एवं आदेश संवैधानिक को रुप से मान्य नहीं है।’
सौरभ शर्मा, प्रांतीय महासचिव, सहायक अभियंता एसोसिएशन
‘भजन सिंह ने पेयजल निगम की लुटिया डुबोने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। ऐसे अधिकारों को सलाहकार बनाना प्रदेशवासियों के साथ छलावा है। उनके द्वारा एक नहीं कई बार एमडी के पद का दुरुपयोग किया गया। कई बड़ी योजनाओं में धांधली करके जनता के पैसे से उन्होंने अपनी झोली भरी है।
मुख्यमंत्री से अपील है कि यदि सरकार वास्तव में जीरो टाॅलरेंस की नीति पर काम कर रही है वह भजन सिंह की संपत्ति की ईडी विजिलेंसे से जांच कराए, ताकि दूध का दूध और पानी का पानी हो सके। इसके साथ ही जांच होने तक उन्हें निलंबित रखा जाए।’
योगेंद्र सिंह, अध्यक्ष, पेयजल इंजीनियर्स, पेंशनर्स एवं कर्मचारी एसोसिएशन