रचना
छत टपकती है उसके कच्चे घर की,
फिर भी वह किसान बारिश की दुआ करता है !!
शेर खुद अपनी ताकत
से राजा कहलाता है;
जंगल मे चुनाव नही होते.. ।।
उन्होंने तो हमें धक्का दिया था डुबोने के इरादे से,
अंजाम ये निकला की हम तैराक बन गए !!
कोई कह दे उनसे जाकर की छत पे ना जाया करे .. शहर मे बेवजह, ईद की तारीख बदल जाती है….
आइना भी टूटकर ये कह गया मुझ से,
ये तेरी झूठी मुस्कान अब बर्दास्त नहीं होती मुझ से !!अखबार तो रोज़ आता है घर में, बस अपनों की ख़बर नहीं आती.
सन्देश मेहता