दुति चंद को पद्म श्री पुरष्कार का सम्मान 15 अगस्त2019 को दिया जाय
हमारे कमजोर आत्मबल से हमारी संस्कृति नेतृत्व यह बनाने लगे हैं कि अंग्रेजों के नाम से सड़क भवन का नाम बदलकर दूसरा रखने लगे हैं।पर इस घटिया किस्म के खेल की जगह अपना खेल को बढ़ावा नही दे पारहे हैं पड़ोसी देश चाइना से व्यपार करना तो शिखने की कोशिश करते हैं पर खेलने के लिए भी सीखने का प्रयास करें। पत्र का साफ कहना है कि याद रहे जो दुति चंद ने इस हालत में करके दिखाया वह आज के देश का ध्यान बाटने वाले हीरो साधन उपलब्ध होने पर भी कभी नहीं कर सकेंगे।
मर्दों को अंग्रेजों की गुलामी का स्थायी प्रतीक क्रिकेट के शोर में डूबे हुए इस देश को कौन बताए कि इसकी एक बेटी 100 मीटर फर्राटा दौड़ में पूरे विश्व को झकझोर आई है। सोचिए 100 मीटर फर्राटा। जिस देश में मर्द धावक जब तक पैरों की एड़ियां सही करते हैं, जमैका का उसेन बोल्ट 100 मीटर की दौड़ का एक चौथाई सिरा पार कर जाता है, वहां ऐसी उपलब्धि के आगे सौ क्रिकेट वर्ल्ड कप किनारे कर दिए जाएं तो भी बराबरी न होगी! जब से इटली के नेपल्स में आयोजित वर्ल्ड यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में उड़ीसा की दुती चंद के 100 मीटर फर्राटा जीतने की खबर पढ़ी है, तभी से सोच रहा हूं कि धोनी, विराट और भारत रत्न सचिन के ग्लैमराइजेशन के इस दौर में दुती चंद होने के मायने क्या हैं? क्या दुतीचंद की जीत पर देश के किसी भी हिस्से में खुशी से बौराए लोगों के तिरंगा लेकर दौड़ने की खबर देखी या सुनी? क्या मीडिया में भारत और अफगानिस्तान के लीग मैच की तुलना में दुतीचंद की इस उपलब्धि की 0.0001 प्रतिशत भी कवरेज दिखी क्या? वो तो गनीमत है कि प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने दुती चंद को ट्वीट कर अपनी खुशी और शुभकामना जाहिर की वरना देश के राजनीतिज्ञों की 90 फीसदी फौज तो ये भी नही जानती होगी कि दुती चंद हैं कौन? 11.24 सेकेंड का राष्ट्रीय रिकार्ड रखने वाली दुती चंद किसी भी विश्व स्तरीय चैंपियनशिप में 100 मीटर फर्राटा गोल्ड जीतने वाली देश की पहली महिला बन गई हैं। अपनी जीत की तस्वीर के साथ उन्होंने एक बेहद ही भावुक बात लिखी है- “मुझे नीचे खींचो, मैं और भी मजबूती से वापसी करूंगी, Pull me down, I will come back stronger।” वाकई जो वापसी उन्होंने की है, ऐसी वापसी कोई धोनी, कोई युवराज, कोई सचिन कभी नही कर पाएगा। क्रिकेट के पगलाए हुए ग्लैमराइजेशन के उस दौर में जहां हैमस्ट्रिंग में चोट या फिर मांसपेशियां खिंचने के चलते क्रिकेट से दूर होकर फिर वापसी करने वाले क्रिकेटर के पराक्रम का सम्राट अशोक और महाराणा प्रताप के शौर्य जैसा बखान किया जाता है, किसी दुती चंद या फिर किसी मैरी कॉम की वापसी को गिनता ही कौन है? ओडिसा के एक गरीब, बुनकर परिवार की इस लड़की को किसने नीचे खींचा, कैसे उनका मनोबल तोड़ने के कुचक्र रचे गए, ये सब का सब इतिहास के पन्नों पर है। गूगल के चमकदार पन्नों पर कैद एक औरत पर थोपे गए सामाजिक कारावास का ये काला इतिहास आज चटक चटक कर टूट रहा है। हैरानी तो देखिए, वर्ल्ड कप सेमीफाइनल के पागलपन में डूबे इस देश को पता ही नही कि विश्व मनीषा की चौखट पर भारतीय आन बान शान का फाइनल मैच कब का पूरा हो चुका है और इस विश्व विजेता का नाम दुती चंद है! आइए अपनी अपनी जड़ता के ठहराव को तोड़कर थोड़ा दूर हम भी दौड़ें और दिल से सलाम करें भारतीयता के विश्व गर्व की इस विश्व नायिका को।
पत्र का कहना है कि अंग्रेजों ने भारत का बीड़ा गर्क कराने के लिए एक मैकाले की शिक्षा नीति के साथ साथ अपने स्कूल में क्रिकेट खेल सुरु कर देश के परंपरागत खेल समाप्त करने का काम किया आज 72 साल होगये अंग्रेजों को छोड़े हुये पर यहां लाखों अंग्रेज क्रिकेट टीम के लिए पैदा कर दिये। हमे विश्व विजेता अपने देश के खेल दौड़ लगाने पर गरीबी से लड़कर भी नहीं हारी दुति चंद ने करोड़ों भारतीयों का कोटि कोटि सलाम विश्व में अपना बर्चस्व क़ायम करने के लिये क्रिकेट खेल को धीरे धीरे बन्द कर अपने देश के खेलों को बढ़ावा देने की नीति बनाने में कार्य करें।