देहरादून ,देश की निर्वाचित सरकारें किसानों के साथ भेदभाव करती रही है जिससे देश मे बेरोजगारी बढ़ी एवं पलायन करने के लिए इनके द्वारा मजबूर किया जाता रहा है।अभी समय है देश की 60प्रतिशत आवादी के लिए अच्छी नीति बनाने में सरकार का ध्यान होना चाहिए तो आधा अपराध, बेरोजगारी, पलायन में निश्चित कमी आएगी साथ ही खेती से जुड़े रहने से खेतो की जुताई होने पर वर्षा का पानी जमीन के अन्दर प्रवेश करने से पानी का अंडर ग्राउंड लेबल के लिये अक्षय बरदान साबित होता रहेगा।समय से फसलों की सिंचाई हो सकेगी। पृथ्वी के तापमान को स्थिर रखने के लिए जमीन पर असर दिखाई देने लगेगा । छोटी जोत के किसानों की हालत यह है कि वह ढंग से हल लगाने के लिए बैल भी नहीं रख सकता है।पहाड़ों में बैल पालने के लिये घाटे का सौदा साबित होता है।
किसानों के समर्थन मूल्य आज की महंगाई के अनुसार बढ़ाने से देश की तरक्की होगी।देश की 30 करोड़ आवादी को भूखे प्यासे सोने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।साथ 70लाख बचे कुपोषण के शिकार होने से बचेंगे। इसके अलावा देश को समृद्ध बनाने का आसन रास्ता दूसरा दिखाई नहीं देता है।आप अनुमान लगा कर हमारी सरकार को सुझावों से अबगत करते हुए देश हित के लिए आगे आएं
सन 1925 में 10 ग्राम सोने का मूल्य 18 रुपए और एक क्विंटल गेहूं 16 रुपए का होता था.
सन1960 में 10 ग्राम सोना 111 रुपए और एक क्विंटल गेहूं 41 रुपए का था.
आज 10 ग्राम सोने का मूल्य 30,600 रुपए है, तो एक क्विंटल गेहूं महज 1725 रुपए का है.
सन1965 में केंद्र सरकार के प्रथम श्रेणी अधिकारी के एक माह के वेतन से छह क्विंटल गेहूं खरीदा जा सकता था.
आज उस केंद्रीय कर्मी के एक माह के वेतन से 30 क्विंटल गेहूं खरीदा जा सकता है.
यह तुलनात्मक आंकड़ा साबित करता है कि सभी सरकारों ने मिलकर किसान को रोंदा है , किसानों के श्रम का सम्मान कितने अन्यायपूर्ण तरीके से करती चली आ रही है ! सरकार कृषि उपज का जो समर्थन मूल्य घोषित करती है वह देश की लगभग 60 फीसदी से अधिक आबादी के सम्मान और समानता से जीने के मौलिक अधिकार का सीधा-सीधा उल्लंघन है ।
आखिर क्यों किसान को पिछड़ने पर मजबूर किया गया ! पूंजीवाद की मानसिकता ने आज गहरा असंतुलन का गड्डा खोद दिया है जिससे निश्चित ही राष्ट्र को विनाश के मार्ग से होकर गुजरना पड़ेगा ।