देहरादून। उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव काफ़ी महत्वपूर्ण होंने वाले है। क्यूँकि इस लोकसभा चुनाव में कई दिग्गज नेताओ की शाख़ दाव पर लगी हैं। लेकिन अगर सबसे बड़ी चुनौती यदि किसी के लिए है तो वह हैं प्रदेश के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत को ही है।त्रिवेन्द्र सिंह रावत मुख्यमंत्री को केंद्र के नेताओं का बरदहस्त होने के कारण उनको अहंकार जैसा ही है कि जिस जनता की सेवा लिए वह बिठाये गये उनको वह मिलने का समय नहीं है।कई महीनों से जनता दरवार लगाने की हिम्मत नहीं जुटा पारहे हैं।वहां एक तरफ से चाटुकारों की ,आर एस एस के लोगो की भर्ती कर सरकार जनता के धन को उनके ऊपर लुटाने का कार्यक्रम लेकर चलने वाले लोगों को सत्ता का स्वाद लेने का मौका जहाँ मिला है। वहीं त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में ये पहला बड़ा चुनाव लड़ा जा रहा हैं, जिसमें प्रदेश की जनता नरेंद्र मोदी के पाँच साल और त्रिवेंद्र रावत के दो साल के कार्यकाल को ध्यान में रख कर मतदान करेंगीं।
रावत सरकार के कार्यकाल को लेकर बीजेपी जनता के बीच जा रही है,जिसमें सरकार की ज़ीरो टोरेंट्स पॉलिसी, प्रदेश वासियों को स्वास्थ्य सुरक्षा (उत्तराखण्ड अटल आयुष्मान योजना) और इन्वेस्ट समिट जैसे उपलब्धि शामिल है। जिसके परिणाम दिखाई नहीं दिये।
एसे में जनता भले किसी सरकार को पाँच साल के लिए चुनती हों फिर जाके उसके कार्यकाल पर उसको नम्बर देती हैं। लेकिन त्रिवेंद्र सरकार अपने दो साल की उपलब्धि को लेकर हीं जनता के बीच गयी है। ख़ुद मुख्यमंत्री पाँचो लोकसभा सीट में प्रतियाशियो के पक्ष में प्रचार कर अपनी सरकार की योजनाओं को जनता को बता रहे हैं।
त्रिवेंद्र सिंह रावत ख़ुद भी जानते हैं कि ये परीक्षा उनके लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है। पार्टी आलाकमान का विश्वाश बना रहे इस लिए इस परीक्षा में पास होना बेहद जरूरी है।
त्रिवेंद्र सिंह रावत को विपक्ष के साथ ही उन अपनों से भी जूझना है जिनकी आँखो में त्रिवेंद्र हमेंसा खटकते रहते हैं। और किसी न किसी बहाने उनकी टाँग खिंचने की पुरज़ोर कौशिश करते रहते है।त्रिवेन्द्र सिंह रावत असल मे इस पद की गरिमा को जनता के साथ मुख्यमंत्री आवास में मिलने का कार्यक्रम बन्द करने से प्रश्न चिन्ह लगने लगे हैं गुड़ नहीं हो तो गुड़ जैसा मीठा तो बोलो अब तो उनके आसपास जो फ़ौज दिखाई देती है उसमें रावत के अलावा अन्य के लिए जगह नहीं है।प्रश्न यह है कि महिलाओं की परेशानियों को गाँव में कम करने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनी है नारायण दत्त तिवारी सरकार के समय के विकास कार्य अधूरे पड़े हैं चिकित्सालयों में उस समय ख़रीदिगई मशीनों पर उनके उपयोग करने के लिए डॉ, तकनीशियन नहोने से वह जहां कबाड़ बनती जारही है वहीं उन रुपये का कर्ज जनता के ऊपर बढ़ रहा है ।चकबंदी के लिए स्टाफ नहीं है। मजदूरों की बेतन फिक्स नहीं है। जनता का बड़े पैमाने में रोजगार के नाम पर शोषण किया जा रहा है।
एसे में त्रिवेंद्र को वो दौर भी पता हैं जब 2009 के लोकसभा चुनाव नतीजे ख़राब होने की वजह से मौजूदा मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खंडूरी को पूर्व होना पड़ा था। इसलिए उन्हें हर कदम पूरी मजबूती के साथ और हर सियासी चाल चाणिक्य की तरह चलनी होगी।