पत्र की ढोल दमाऊ दिवस के अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं-चंद्रशेखर पैन्यूली
देहरादून:ढोल दमाऊ हमारी संस्कृति,के परिचायक है, ढोल सागर विद्या एक बहुत बड़ी विद्या है,आज ढोल दमाऊ को बजाने वाले बाजगी,औजी धीरे धीरे कम होते जा रहे हैं जो चिंता का विषय है,लेकिन सुखद ये है कि इसको गढ़वाल विवि के कला,निष्पादन विभाग में पढ़ाया,सिखाया जाता है,आज इसके जानकार सिर्फ अनुसूचित जाति के ही लोग नही बल्कि स्वर्ण नवयुवक भी ढोल की विद्या को सीख रहे है।ढोल दमाऊ सदैव ही अपनी एक विशेष पहचान बनाये हुए रखा है,पहले के वक्त ढोल दमाऊ बजाकर ही किसी बात की उद्घोषणा होती थी,किसी भी शादी विवाह,शुभ मुहूर्त,देव यात्रा,देव नृत्य,थौले,मेले आदि ढोल दमाऊ की थाप पर ही संचालित होते रहे है,ढोल सागर के जानकार एक स्थान से दूसरे स्थान तक ढोल की थाप से संदेशों का आदान प्रदान करते रहे हैं, पहले के समय जब हमारे पास संचार सेवा उपलब्ध नही थी हमारे पहाड़ी क्षेत्रों में ढोल के द्वारा ही संदेशों को भेजकर सामने की स्थिति पता लगती थी,आधुनिक दौर में डी जे, आर्केस्ट्रा आदि ने ढोल दमाऊ के महत्व को कुछ कम किया है लेकिन थौले,मंडाण,पूजा पाठ आदि देव कार्य में ढोल दमाऊ का अपना एक विशेष महत्व है।हमारे पहाड़ो में एक से बढ़कर एक ढोलवादक रहे हैं, आज के दौर में ढोल सागर के जानकारों में बड़ा नाम पदम् श्री जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण जी का है, इसके अलावा पुजारगॉव चन्द्रबदनी के सोहनलाल एंड टीम,आदि,मेरे गॉव के पैतृक ढोल वादक कोटालगॉव के हैं,पहले के लोग बताते थे कि यहाँ के रुकमदास एक अच्छे ढोल सागर के ज्ञाता थे,बाद के समय में ढोल दमाऊ के विशेषज्ञ अब्बल दास,कमल दास की जोड़ी पूरे क्षेत्र में मानी जानी जोड़ी थी,उन्हें तब के समय जिला स्तर पर भी पुरष्कृत किया गया था,हालाँकि इनमें से मैंने किसी भी व्यक्ति को नही देखा सुना था,मैंने अपने कोटालगॉव के औजियों में कुशलदास के ढोल बजाने की कला देखी है,अब कुशलदास भी इस दुनिया में नही है,हमारे औजियों में अब केवल सुन्दर लाल और बसन्त लाल ही है,इनकी अगली पीढ़ी शायद ही ढोल बजाएगी,क्योंकि नई पीढ़ी अपने अलग अलग काम धंधों में लग गयी है,कोई सरकारी नौकरी में तो कोई प्राइवेट नौकरी के लिए पलायन कर गए,हमारे क्षेत्र में लिखवार गॉव के पैन्यूली के ढोल वादकों कोटालगॉव के औजियों की एक अलग ही पहचान थी,साथ ही हमारी पट्टी के कुछ अन्य ढोल दमाऊ वादक प्रेमदास,बलवीर लाल,मंजू लाल आदि,शुक्री के भैरू और नरसू की जोड़ी भी शानदार लय ताल के साथ ढोल दमाऊ बजाती थी,ऐसे ही कई अन्य ढोल वादक है जिंनके नाम याद नही है,आपके आस पास भी ढोल दमाऊ के अच्छे जानकार रहे होंगे या वर्तमान में होंगे ऐसे अवसर पर जरूर उन्हें याद करें।घनसाली के पूर्व विधायक भीमलाल आर्य के दादा,परदादा भी कोटालगॉव के ढोलवादक थे,जो बाद में रगड़ी गॉव में जाकर बसे लेकिन आज भी उन्हें पुराने लोग लिखवारों का औजी कहते हैं,सुखद बात ये है कि कई मौको पर भीमलाल के पिता बैंक टिहरी गढ़वाल जिला सहकारी बैंक के कर्मचारी अब्बल लाल ढोल बजाते नजर आते हैं, वो समय निकालकर आज भी अपनी गैख्याली पर जाते हैं।आपने कई मौकों पर उत्तराखण्ड के पूर्व मंत्री जी मंत्री प्रसाद नैथानी को भी ढोल बजाते देखा होगा,ढोल सिर्फ एक वाद्य यंत्र मात्र नही है यह एक विद्या है,एक वेद है, एक ज्ञान है,आज के समय में नई पीढ़ी के युवा ढोल से दूर होते जा रहे हैं जो दुःखद है, लेकिन हमारे क्षेत्र के ही सुंदर लाल के दामाद पिपलोगी निवासी युवा बहुत ही अच्छे ढोल वादक है वो सरकारी सेवा में भी कार्यरत है,तिनवाल गॉव के युवा अनिल भी बेहतरीन ढोल वादक हैं तो पोखरी के युवा प्रवेश भी एक उम्दा ढोल वादक है,ऐसे युवाओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए जो अपनी संस्कृति को आगे बढ़ा रहे हैं।
आज 30 मार्च को ढोल दमाऊ दिवस मनाने का निर्णय श्रीनगर गढ़वाल में एक कार्यक्रम के दौरान 2012 में हुआ था,उस बैठक में बड़े बड़े रंगकर्मियों के साथ मुझे भी शामिल होने का अवसर मिला था,बैठक में विमल बहुगुणा जी,प्रो डी आर पुरोहित जी,डॉ जयकृष्ण पैन्यूली जी,गंगा असनोड़ा जी,गिरीश पैन्यूली बन्नू भाई,डॉ संजय पांडेय जी,अनूप बहुगुणा जी आदि लोग थे,आज के समय में डॉ संजय पाण्डेय जी गढ़वाल विवि में इस ढोल दमाऊ दिवस को मनाते हैं,उनका कहना है कि अब उन्हें भी किसी का कोई खास सहयोग नही मिलता पर अपनी संस्कृति के प्रतीक ढोल दमाऊ दिवस को वो मनाते जरूर है।ढोल दमाऊ दिवस को एक व्यापक रूप में मनाने की जरूरत है,इसको बड़े स्तर पर मनाने से आज की पीढ़ी ढोल दमाऊ के महत्व को समझ पायेगी,ढोल दमाऊ हमारी संस्कृति के वाहक है, टिहरी गढ़वाल के चम्बा विकास खंड के साबली गावँ का उत्तम दास इकलौता ढोल वादक है जो ढोल दमाऊ ये साथ बजता है उनको ट्वीन वन है ।इनको भारत के किसी भी विश्वविद्यालय में विजिटिंग प्रॉफेसर सरकार बनाने के लिए प्रयास करें तो यह अदुतीय ज्ञान को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है ।श्रीदेव सुमन विश्विद्यालय को इसका संज्ञान लेने की आवश्यकता है। इनसे जब पुछा की ओजी से सम्बोधित करते हैं तो उनका मानना है कि वह ढोल नंगे पांव में खड़े होकर बजाते हैं हम भगवान शिव के दास होने का गौरव प्राप्त है इस शब्द का अपभ्रंश होकर ओजी बोलने लगे इसका सही अर्थ सम्मान करते हुए कहा जाता है आओ जी ।अब सभी लोग ज्ञान प्राप्त करने में लगे हैं धीरे धीरे सही उच्चारण करते हुए मान सम्मान भी मिलने लगेगा।हम आशावादी हैं। जब यह कार्यक्रम की प्रस्तुति देने के लिए सम्पादक जीतमणि पैन्यूली ने उत्तम दास को कहा ।तो वह हमारी नातिन के सगाई समारोह में रायवाला रिजॉर्ट में आये थे ।लोकगायिका संगीता धौण्डियाल एवं उनके पति के समक्ष प्रस्तुत कर यह जताने का प्रयास किया है कि हमारी संस्कृति को आगे अंतराष्ट्रीय मंच पर हमें भी मौके दिया जाय।
सरकार कोइन्हें सहेजने की जरूरत है, आज आरक्षण प्राप्त जातियों के लिए पाठ्यक्रम में उनकी घर मे प्रचलन की विधा को समलित करने की आवश्यकता है। चाहिए बुनकरों ,नाइ धोबी, लुहार ,मछली पकड़ने, आदि लोगों को सुरु से ज्ञान देने की आवश्यकता है नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब सरकार इसके ज्ञान के लिए टेंडर लगा कर विदेशों से इन विधाओं को आयात करेगी।आज ढोल दमाऊ दिवस पर ढोल सागर,सामवेद के जानकारों को नमन करते हुए सभी ज्ञात अज्ञात ढोल दमाऊ वादकों सहित हमारे पहाड़ी क्षेत्र के सभी भाई बहनों को पहाड़ों की गूंज परिवार की हार्दिक बधाई।