उत्तराखंड से बछेंद्रीपाल को पद्मभूषण, प्रीतम भरतवांण और अनूप शाह को पद्मश्री
देहरादून / भारत सरकार देशभर की कई विभूतियों को अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए सम्मानित किया जाएगा. इसी क्रम में उत्तराखंड के भी तीन होनहारों को सम्मानित किया जाएगा. गढ़वाली लोक गायक प्रीतम भरतवांण और ऑर्ट फोटोग्राफर अनूप शाह को पद्मश्री और बछेंद्री पाल को पद्मभूषण से नवाजा जाएगा ।
26 जनवरी को भारत सरकार उत्तराखंड की तीन विभूतियों को सम्मानित करेगी. इसमें गढ़वाल के मशहूर लोकगायक प्रीतम भरतवाण, नैनीताल से ताल्लुक रखने वाले मशहूर ऑर्ट फोटोग्राफर अनूप शाह और पर्वतारोही बछेंद्री पाल शामिल हैं. लोक संस्कृति में दुनियाभर में अपना जादू बिखरेने में प्रीतम भरतवांण को पद्मश्री, ऑर्ट फोटोग्राफी में अनूप शाह को भी पद्मश्री और स्पोर्ट्स माउंटेनिंग में दुनियाभर में अपनी पहचान बनाने वाली बछेंद्री पाल को पद्मभूषण से सम्मानित किया जाएगा.
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जानें, कौन हैं बछेंद्री पाल
चमोली जिले से ताल्लुक रखने वाली एवरेस्ट विजेता बछेंद्री पाल की पढ़ाई नाकुरी सहित उत्तरकाशी जिले में हुई. एक ऐसे समय में जब महिलाओं को घर से बाहर निकलने पर भी कई पाबंदियां थी, उस वक्तबछेंद्री पाल ने पर्वतारोहण को चुना. और दुनिया भर अपने नाम का डंका बजवाया. बछेंद्री पाल ने 23 मई 1984 को एवरेस्ट फतह किया और एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला बनी. वर्तमान में बछेंद्री पाल टाटा स्टील एडवेंचर फाउडेशन की चीफ हैं. बछेंद्री पाल को वर्ष 1984 में पद्मश्री से नवाजा गया था, जबकि 1986 में अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया.
जानें, कौन हैं प्रीतम भरतवांण प्रीतम भरतवांण उत्तराखंड के जाने-माने लोक गायक और जागर सम्राट है. भरतवाण ने उत्तराखंड की संस्कृति और ढोल को न सिर्फ देश में विदेशों में भी पहुंचाया है. प्रीतम भरतवांण को उत्तराखंड पहाड़ी क्षेत्रों में खास त्यौहारों पर गाए जाने वाले जागर की वजह से आज भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है.
प्रीतम भरतवाणं ने मात्र 6 साल की उम्र में ही थाली बजाकर पहाड़ी संगीत को सीखना शुरू कर दिया था. वह न सिर्फ जाकर गाते थे, बल्कि लोकगीत, पवांडा और भी गाते थे.
1998 में प्रीतम भरतवांण ने ऑल इंडिया रेडियो के जरिए अपनी प्रतिभा को जगजाहिर कर दिया था. जिसके बाद प्रीतम को उनकी आवाज और प्रतिभा के लिए देश और विदेश से कई अवार्ड भी मिले. प्रीतम भरतवांण अमेरिका की सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर बच्चों को ढोल सागर भी सिखाने जाते हैं ।