हमारी संस्कृति को दूषित करने केलिये बाजार में अनेकों प्रकार कार्य किये जारहे हैं इनमें से एक हमारे देवादिदेव गणेश भगवान की मूर्ति की पूजा ९दिन कर दसवें दिन उसकी कूड़े के ढेर में बदलने में देर नहीं लगाते हैं ।यह कैसी आस्था ?इसकी जानकारी सबको है।पर इसे रोकने के लिए एक भी आदमी तैयार नहीं कारण स्पष्ट है कि हम अपने लिए भौतिक सुख जोड़ने के लिए किसी भी सीमा तक नैतिक अनैतिक रूप से माया जोड़ने की संस्कृति को पनपने में खाद बीज डालने का कार्य कर रहे हैं ।हम दिखावे केलिये क्या क्या काम कर सकते कि हमारी पहचान समाज में बनजाय ।इस आपाधापी में हमें अपने अस्तित्व को बचाने की लगी है।नाकि देवी देवताओं की।असल मे शहरों में जगह जगह से लोग बस गए उन्होंने अपने अपने ढंग से त्योहार को भव्य बनाने केलिये सैकड़ों तरीके अपना लिए ।ऐसे माहौल में महोत्सब में कितने लोग साधारण ढंग से गणपति की पूजा करने के लिए तैयारहो सकते हैं। इसके लिये अन्य लोगों से अच्छे आचरण के इच्छा शक्ति रखने वाले लोग ही सुधार ला सकते हैं।यह समाज मे अराजकता लाने के लिये बुरे तत्व करते हैं ।आज वोट बैंक के लिए भी कई प्रकारके कार्यक्रम जनभावनाओं को भुनाने के लिये हो रहे हैं। जनभावनाओं को कैश करनेवालो को संस्कृति एवं देश से कोई लेना देना नहीं है । यह जनभावनाओं को भुनाने के लिये हो रहे हैं। जनभावनाओं केलिये समाज मे सरलता से सबको जोड़ने के लिये आज महोत्सब जैसे कार्य सम्पन करने के कारण आस्था पर भारी कुठाराघात हो रहा है
हमारी संस्कृति में देशी गया के गोबर से गणेश पूजा की जाती हैं ।ऋषियों ने हमारे पूजा के विधि विधान सरल बनाये गोबर के गणेश भगवान को चौकी पर स्थापित कर उसकी पूजा कर चढ़ावे में चढ़े मेवे गोवर नदियों में विषर्जन से लेते थे । आज भी जँहा नदी नहीं वहां गणेश पूजा की सामग्री आँगन, खेत के ऊंचे पवित्र स्थान पर डालते हैं । परन्तु हजारों रूपये की मूर्ति लाकर उसकी १०वें दिन वेकदरी कर अपने धर्म का उपहास करना होगया।इतने लोग अपने धर्म रक्षा के लिए उस धन से गरीब लोगों की पढ़ाई, सादी में खर्च करें तो देश में मानव धर्म समृद्ध होगा ।इसके लिए भारत सरकार को कानून बनाने की आवश्यकता है जिन्होंने भगवान गणेश की मूर्ति का विसर्जन इसप्रकार किया है ,उनसे यन जी टी विभाग जुर्माना लगा कर देश को रासायनिक रंगों कर प्रदूषण के साथ साथ सही आस्था को , बर्बाद कराने बचाया जा सकता है।