साठ के दसक में उत्तरकाशी जुस्याडा झूला पुल मजबूत लाइफ लाइन रही।
उत्तरकाशी_उत्तराखंड आज भी तांबाखाणी उत्तरकाशी मे पुराने झूला पुल का एक टावर दिखाई देता है जो की जोशियाडा मोटर पुल के बिलकुल पास है।उत्तरकाशी_उत्तराखंड:आज भी तांबाखाणी उत्तरकाशी मे पुराने झूलापुल का एक टावर दिखाई देता है जो की जोशियाडा मोटर के बिलकुल पास है। इस चित्र मे वो पुल धुंधला सा दिखाई देता है। ये वो झूला पुल नहीं है जो की 2 साल पहले बाढ़ मे बह गया था, बल्कि ये वो झूला पुल है जो की टिहरी के राजा ने बनवाया था और इसके स्थान पर जोशियाडा मोटर ब्रिज बना।
इसके नीचे नदी के मोड पर जहां पर नदी पहाड़ पर टक्कर मारती है, उसके बारे मे पुराने लोगों की ये उक्ति है की वहाँ एक सुरंग है (ये वो सुरंग नहीं जो कुछ साल पहले वरणावत पैकेज से बनाई गई थी) । इस सुरंग के बारे मे दो मत हैं।
1)-यह सुरंग भीतर ही भीतर बड़कोट मे पत्थर गाड के समीप निकलती है जिसे जमदग्नि ऋषि ने अपनी पत्नी रेणुका के लिए निकलवाया था ताकि रेणुका को गंगाजल लेने के लिए रोज यमुना घाटी से गंगा घाटी ना आना पड़े। इसके पहले रेणुका माता को पैदल छोटे रास्ते से रोज बड़कोट से उत्तरकाशी आना पड़ता था।
2)-कुछ पुराने लोग ये मानते हैं की यह तंबाखानी नदी के तल वाली सुरंग विदुर ने बनवाई थी। यह सुरंग सीधे लक्षेस्वर के पास वाली भीम-गुफा से मिली हुई थी। पुरोचन ने जब लाक्षागृह मे आग लगाई तो पांडव भीम गुफा की सुरंग के भीतर होकर सीधा तांबाखानी के पास नदी के तल पर पहुंचे, जहां से नाविक ने उनको पार जोशियाड़ा पहुंचा दिया और वहाँ से पांडव भाग निकले।
यह बाते कितनी सत्य हैं इसका मुझे ज्ञान नहीं है। किन्तु उभान यशपाल जी का ये फोटो अविस्मरणीय है।
यह पुल मजबूत बना हुआ था इस पुल को बाडागाड़ी ,गाजणा ,रमोली, भदूरा ,ओण ,रैका,कोटिफैगुल, ढुङ्ग मंदार,केमर ,आरगड की जनता के लिए एक मात्र आवा जाहि का साधन लाइफ लाइन के रूप में था
इस चित्र मे वो पुल धुंधला सा दिखाई देता है। ये वो झूला पुल नहीं है जो की 2 साल पहले बाढ़ मे बह गया था, बल्कि ये वो झूला पुल है जो की टिहरी के राजा ने बनवाया था और इसके स्थान पर जोशियाडा मोटर ब्रिज बना।
इसके नीचे नदी के मोड पर जहां पर नदी पहाड़ पर टक्कर मारती है, उसके बारे मे पुराने लोगों की ये उक्ति है की वहाँ एक सुरंग है (ये वो सुरंग नहीं जो कुछ साल पहले वरणावत पैकेज से बनाई गई थी) । इस सुरंग के बारे मे दो मत हैं।
1)-यह सुरंग भीतर ही भीतर बड़कोट मे पत्थर गाड के समीप निकलती है जिसे जमदग्नि ऋषि ने अपनी पत्नी रेणुका के लिए निकलवाया था ताकि रेणुका को गंगाजल लेने के लिए रोज यमुना घाटी से गंगा घाटी ना आना पड़े। इसके पहले रेणुका माता को पैदल छोटे रास्ते से रोज बड़कोट से उत्तरकाशी आना पड़ता था।
2)-कुछ पुराने लोग ये मानते हैं की यह तंबाखानी नदी के तल वाली सुरंग विदुर ने बनवाई थी। यह सुरंग सीधे लक्षेस्वर के पास वाली भीम-गुफा से मिली हुई थी। पुरोचन ने जब लाक्षागृह मे आग लगाई तो पांडव भीम गुफा की सुरंग के भीतर होकर सीधा तांबाखानी के पास नदी के तल पर पहुंचे, जहां से नाविक ने उनको पार जोशियाड़ा पहुंचा दिया और वहाँ से पांडव भाग निकले।
यह बाते कितनी सत्य हैं इसका मुझे ज्ञान नहीं है। किन्तु उभान यशपाल जी का ये फोटो अविस्मरणीय है।