हे काशी विश्वनाथ अब तो अपना त्रिशूल उठाओ
वह तो नादान निश्छल सी मासूम बिटिया थी
उसकी तो अभी गॉव तक सीमित दुनिया थी
बहेशियों ने कोमल नाजुक अंग को तार तार किया
हे विश्वनाथ तेरी ही धरती में ये कैसा पाप किया।
यमुना गंगा की धरती आज लहुलुहान हो गयी
बाबा काशीनाथ की भूमि आज शर्मसार हो गयी
दंरिदगी से आज देवभूमि फिर कंलकित हो गयी
एक बेटी आज कलयुगी राक्षसों की भेट चढ गयी।
हे त्रिनेत्रधारी अब तो अपना तीसरा नेत्र खोलो
डमरूधारी अब तो इस डमरू से कुछ तो बोलो
आज तुम्हारा ये त्रिशूल न जाने क्यों मौन हो गया
हे विश्वनाथ देवभूमि में असूरों का प्रकोप हो गया।
गंगा यमुना तुमने भी क्या आज ऑखे मूंद ली
उन दरिंदगों की जिन्दगी तुमने क्यो न लील ली
ले आती तुम महाप्रलय इन दुराचारों के लिए
हे गंगा यमुना मॉ बन जाती उस नादान के लिए।
यमुना तुम तो यम की भगिनी कहलाती हो
गंगा तुम तो शिव जटा से निकलती हो
आज तुमने ये अत्याचार कैसा सह लिया
बेटी के दंरिदगों को तुमने जिंदा कैसे छोड़ दिया।
देवभूमि तो अब दानव भूमि में बदल गयी
नंदा जहॉ की ईष्ट देवी, वह भी मौन हो गयी
दुराचारों ने अब तो इस पावन धरती को नहीं छोड़ा
बाबा बद्रीनाथ, केदारनाथ ने न जाने क्यो मुॅह मोड़ा।
हे काशी विश्वनाथ अब तो अपना त्रिशूल उठाओ
हे गंगा यमुना अब तो तुम काली का रूप दिखाओ
बहुत हो गया इस देवभूमि पर दानवों का अत्याचार
हे बद्रीनाथ अब तुम जल्दी से लो नृसिह अवतार।
कोई ना कर सके दुबारा फिर किसी बेटी का बलात्कार
दरिदांं उन बुझदिलों को मौत देकर करो तुम चमत्कार
अब बहुत सह लिया देव भूमि की जनता ने अत्याचार
अब तो होश में आ जाओ ऐ मेरे देश की सरकार।
यहॉ तो कोर्ट कचहरियों मे लम्बा वाद चलेगा
उस निर्दोष बेटी को न जाने कब न्याय मिलेगा
हे घर्मराज अब तुम ही अपनी शक्ति दिखाओ
मौत बनकर अब तुम ही उनको फांसी पर चढाओ।
मनखी की कलम से।