जयपुर । वृद्ध विधवा मां ने खेतों में मेहनत-मजदूरी कर अपनी तीन बेटियों को अफसर बनाने का सपना अंतत: साकार कर दिखाया। मां का कहना है कि उसने अपने पति की अंतिम इच्छा पूरी की। जो चाहते थे कि उनकी तीनों बेटियां बड़ी अफसर बनें। इकलौता बेटा भी पिता की इच्छा पूरी करने के लिए पढ़ाई छोड़ मेहनत-मजदूरी में जुट गया, ताकि बहनें पढ़ सकें।
गरीबी को आड़े नहीं आने दिया
जज्बातों से भरी यह कहानी जयपुर जिले के सारंग का बास गांव से आई है। जहां 55 वर्षीय मीरा देवी की तीन बेटियों कमला चौधरी, ममता चौधरी और गीता चौधरी ने राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस ) परीक्षा में सफलता हासिल की है। मीरा देवी का कहना है कि स्वर्गवासी पति गोपाल की अधूरी इच्छा पूरी करना ही उनके जीवन का मकसद था। गोपाल अपनी तीनों बेटियों को अफसर बनाना चाहते थे। विधवा मां ने इस सपने को पूरा करने के लिए गरीबी को आड़े नहीं आने दिया। बेटे ने भी त्याग किया।े
गांव के छोटे से कच्चे घर में रहता है परिवार
गांव के छोटे से कच्चे घर में रहने वाली बेटियों ने भी मन लगाकर पढ़ाई की। तीनों ने मिलकर योजना बनाई और दो साल जमकर प्रशासनिक सेवा की तैयारी की। उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा भी दी थी, लेकिन कुछ अंक से पीछे रह गईं। फिर राजस्थान प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी और उसमें वे सफल हो गईं। तीनो में सबसे बड़ी कमला को ओबीसी रैंक में 32वां स्थान मिला, वहीं गीता को 64वां और ममता को 128वां स्थान मिला।
पिता का सपना पूरा किया
मीरा देवी का कहना है कि कई सालों तक बीमार रहे पति का दो साल पहले देहांत हो गया। इसके बाद से बेटियों ने पिता का सपना पूरा करने के लिए दिन-रात पढ़ाई करना शुरू किया। तीनों का लक्ष्य भारतीय प्रशासनिक सेवा में जाने का है और वे इसकी तैयारी में जुटी हैं।
बहनों के लिए भाई ने किया त्याग
अपनी तीनों बहनों को अफसर बनाने के सपने को पूरा करने के लिए मीरा के बेटे रामसिंह ने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। रामसिंह का कहना है कि पिता की बीमारी के कारण बचपन में ही घर की जिम्मेदारी का अहसास हो गया । पिता की मौत के बाद खेतों में मां के साथ काम करता था। रामसिंह का कहना है कि यदि मैं पढ़ाई करने जाता तो फिर मां के साथ खेत में काम कौन करता।