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पूरी ताकत उत्तराखण्ड में झौंक दी भाजपा नेताओं ने

Pahado Ki Goonj
  1. देहरादून । पंजाब व गोवा की विधानसभा के गठन के लिए 4 फरवरी को हुए मतदान तथा उप्र में सपा व कांग्रेस के बीच हुए अखिलेश -राहुल के चुनावी गठजोड़ ने नोटबंदी के बाद उप्र, पंजाब, उत्तराखण्ड, मणिपुर व गोवा के विधानसभा चुनाव में इन पांचो राज्यों में अपना परचम लहराने की प्रधानमंत्री मोदी व अमित शाह के नेतृत्व वाली भाजपा की आशाओं पर बज्रपात सा कर दिया है। पंजाब व गोवा की सत्ता गंवाने व उप्र की सत्ता में आसीन होने के सपने को चूर चूर होने से आशंकित भाजपाई नेतृत्व ने अपनी लाज बचाने के लिए अब अपनी पूरी ताकत उत्तराखण्ड में झोंक दी हे। इसकी कमान स्वयं प्रधानमंत्री मोदी व उनके सिपहसालार अमित शाह ने संभाल ली है। अमित शाह इन दिनों उत्तराखण्ड में डेरा डाले हुए है। वहीं प्रधानमंत्री मोदी की भी ताड़व तोड सभाये की जायेगी। 10 फरवरी को श्रीनगर, हरिद्वार, के बाद अब 11 फरवरी को प्रधानमंत्री रूद्रपुर व 12 फरवरी को पिथौरागढ़ में भाजपा को जिताने के लिए चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगे। इसके अलावा अनेक कबीना मंत्री कई दिनों से उत्तराखण्ड के कस्बे कस्बों में सभायें करने में जुटे है। हर हाल में उत्तराखण्ड जीतने के लिए भाजपा ने अब नितिन गडकरी, हेमामालनी व स्मृति इरानी को भी प्रमुख प्रचारक के रूप में चुनावी दंगल में उतार दिया है। यही नहीं ऊधमसिंह नगर में बंगाली मतदाताओं की संख्या को देखते हुए बाबुल प्रियो को भी उतार दिया है। भाजपा को उत्तराखण्ड में चुनाव जीतना न केवल इन पांच राज्यों के चुनाव में लाज बचाने के लिए महत्वपूर्ण है अपितु भाजपा सन् 2016 में उत्तराखण्ड की हरीश रावत सरकार के हाथों मिली करारा हार का भी हिसाब चुकता करना चाहती है। सन् 2016 में भाजपा ने यकायक जिस प्रकार से 9 कांग्रेसी विद्रोहियों को साथ लेकर प्रदेश की हरीश रावत सरकार को गिरा कर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने की असफल प्रयास किया, उसमें भाजपा को न केवल न्यायालय में अपितु सदन में भी मुंह की खानी पड़ी। उत्तराखण्ड में सरकार गिराने के प्रकरण में मिली असफलता से पूरे देश में भाजपा की भारी किरकिरी हुई। भाजपा उत्तराखण्ड को जीतने के लिए कितनी बैताब है यह भाजपा के टिकट बितरण पर एक नजर दौडाने से ही साफ उजागर हो जाता है। भाजपा ने हर हाल में उत्तराखण्ड में विजय के लिए जिस प्रकार से अपने समर्पित कार्यकत्र्ताओं को नजरांदाज कर तीन दर्जन से अधिक पूर्व कांग्रेसियों को टिकट दी, जिस प्रकार से भाजपा ने टिकट बितरण में खुल कर परिवारवाद व साफ छवि वाले मापदण्ड को रौंदा उससे न केवल पूरे प्रदेश में कई दर्जन भाजपा नेताओं ने विद्रोह करके पार्टी के उम्मीदवार के खिलाफ ताल ठोकी व विरोध में प्रचार किया।
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