नई दिल्ली। निर्भया केस में फांसी की सजा पाए चारों दोषियों विनय, अक्षय, मुकेश और पवन पर जेल प्रशासन लगातार नजर रख रहा है। सूत्रों का कहना है कि चारों दोषी जेल के कर्मचारियों से उनके बारे में चल रही खबरों में अक्सर पूछते रहते हैं। उन्हें यह पता है कि तिहाड़ जेल संख्या तीन में स्थित फांसी घर में कुछ हलचल शुरू हुई है। निर्भया केस में फांसी की सजा पाए चारों दोषियों विनय, अक्षय, मुकेश और पवन पर जेल प्रशासन लगातार नजर रख रहा है। इन पर जेलकर्मियों के अलावा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल व तमिलनाडु पुलिस के जवान चैबीस घंटे नजर रख रहे हैं। जेल सूत्रों के अनुसार, इसकी बड़ी वजह इस बात की आशंका है कि घबराहट की स्थिति में कोई कैदी खुद को नुकसान या आत्महत्या की कोशिश जैसे कदम न उठा ले। इनके सेल के आसपास नियमित तौर पर लगे कैमरे के अलावा उच्च क्षमता वाले सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। कैमरे की फुटेज की निगरानी के लिए जेल कर्मचारी 24 घंटे तैनात रहते हैं।जब ये कैदी अपने सेल से बाहर रहते हैं, तब उनके आसपास जेल प्रशासन का भरोसेमंद कैदी या जेलकर्मी लगातार उनकी निगरानी में खड़ा रहता है। सूत्रों की मानें तो रात के समय इनके सेल की बत्ती हर समय जलती रहती है ताकि सुरक्षाकर्मी को दोषियों की स्थिति की जानकारी मिलती रहे। सुरक्षाकर्मियों से कहा गया है कि जब ये शौचालय का इस्तेमाल करें तो सुरक्षाकर्मियों को पूरी चैकसी बरतनी चाहिए। इस दौरान कोशिश इस बात की हो वे उनसे लगातार बात करते रहें। उन्हें जो खाना परोसा जा रहा है, उसकी जांच की जाती है। जेल में तैनात काउंसलर जरूरत पड़ने पर इनकी काउंसिलिंग भी कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि आमतौर पर राष्ट्रपति के समक्ष दायर दया याचिका खारिज होने की स्थिति में दोषी को 14 दिनों का वक्त मिलता है। इस दौरान जेल प्रशासन राज्य सरकार के साथ सलाह लेकर फांसी की तिथि तय करती है।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में दया याचिकाओं के समयबद्ध तरीके से निपटारे के लिए एक याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि दया याचिकाओं की स्पष्ट प्रक्रिया, नियमों और दिशा-निर्देशों के लिए केंद्र को आदेश दिया जाए। अधिवक्ता शिवकुमार त्रिपाठी की ओर से दायर याचिका में दया याचिकाओं (मर्सी पेटिशन) को एक तय समयसीमा में निपटाने के लिए केंद्र को दिशा-निर्देश देने की अपील की गई है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि अगर दया याचिका का निपटारा तय समय में नहीं किया गया तो उसके परिणाम भी भुगतने होंगे। याचिका में कहा गया है कि कुछ ही मामलों में ऐसा हुआ है कि दया याचिकाओं की सुनवाई में खासी देरी हो जाती है। ऐसे मामलों में दोषियों को इस देरी का लाभ मिल जाता है और वह अपनी सजा-ए-मौत को आजीवन कारावास में बदलवा लेते हैं। ऐसे मामलों में पीड़ित और उनके परिजन ठगा हुआ महसूस करते हैं। याचिकाकर्ता ने कहा कि चूंकि दया याचिकाओं के निपटारे के लिए कोई तय प्रक्रिया, नियम और दिशा-निर्देश नहीं हैं, इसलिए समयबद्ध तरीके से इनके निपटारे की व्यवस्था होनी चाहिए। कई दफा दया याचिकाओं के निपटारे में भेदभाव और मनमानी की जाती है।