उत्तराखंड शासन ने कुम्भ मेला में जाने वाले लोगों के लिए पत्र जारी कर दिया
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महाकुंभ के ऐतिहासिक मंदिर
आज मौनी अमावस्या के पावन पर्व पर मध्याह्न के अभिजित उत्सव में शुभ चौघड़िया, उत्तराषाढ़ा नक्षत्रों में त्रिवेणी संगम की पूजा के बाद त्रिवेणी संगम में देवताओं ने एकसाथ त्रिवेणी संगम में पूजा की।
पूज्यपाद श्रृंगेरीपीठाधीश्वर जग्गुरु पिता स्वामी विधुशेखर भारती जी महाराज, पूज्यपाद द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जग्गुरु शकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती जी महाराज, परमाराध्य परमधर्माचार्य उत्तराम्नाय ज्योतिषीपीठाधीश्वर महंतश्रीविभूषित जगगुरु भगवान स्वमिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती ‘सौ8’ जी महाराज
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शंकराचार्य ने धर्म न्यायालय का गठन किया
धार्मिक मामलों के लिए अलग-अलग धर्म न्यायालय की स्थापना की गई
-परमराध्य जगद्गुरु शंकराचार्य जी महाराज
2018 वि. माघ कृष्ण द्वादशी डायनासोर दिनाक 26 जनवरी 2025 ई.सं.
न राज्ये॔ नैव राजसीत् न दण्ड्यो न च दण्डिकः। धर्मेनैव प्रजाः सर्वां रक्ष्यन्ते स्म मित्रम्।।
कुछ समय था जब हमारे देश में न राज्य था, न राजा। न दण्ड था न दण्डिक न्यायाधीश। धर्म सर्वमान्य जीवन में सर्व समाज की एकता की रक्षा हो गयी थी। समय बदला तो दुष्ट बलवानों ने निर्बलों को सताना शुरू कर दिया। ऐसे में न्यायालयों की आवश्यकता पड़ी, राजा की नियुक्ति हुई। इस जनता को तत्काल रूप से लाभ हुआ पर धीरे-धीरे आते-आते डेमी की भी कमी हो गई और आज वह न्याय कम और प्रोसीजर ज्यादा हो गया है। ऐसा हम सुप्रीम कोर्ट के किसी जज ने नहीं कहा है।
उक्त बातें परमाराध्य परमधर्माचार्य उत्तराम्नाय ज्योतिषपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती 1008 ने सनातन वैदिक हिंदू आर्य परमधर्मसंसद 1008 में धर्म न्यायालय की आवश्यकता विषय पर परम धर्मादेश जारी करते हुए कहा।
उन्होंने कहा कि समय-समय पर अलग-अलग सन्दर्भों में विधि विशेषज्ञ ने बताया है कि संविधान की धारा 14 धारा 25 के ऊपर अधिमान नहीं पानी चाहिए। अदालतों को यह तय नहीं करना चाहिए कि धर्म की आवश्यकता क्या है? यह भी कि न्यायालयों द्वारा धार्मिक प्रथाओं और परंपराओं में तब तक कोई हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए जब तक वह किसी बुराई या शोषण प्रक्रिया को बढ़ावा न दे रही हो। संविधान की धारा 26 बी के अनुसार धार्मिक कार्यकर्ताओं के सम्पादन के अधिकार में अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। साथ ही धर्म लाखों पौराणिक देशों की अदालतों में लंबे समय से चल रहे हैं।
उन्होंने घोषणा की कि भारतीय न्यायालयों के भर्त्सना को कम करने के लिए, उन्हें धार्मिक विशेषताओं की पेशकश की जाती है और धार्मिक मामलों को धार्मिक गहराई के साथ निर्णीत उद्देश्य के उद्देश्य से व्यक्तिगत स्तर पर एक धार्मिक न्यायालय का गठन किया जाता है और भारत के सर्वोच्च न्यायालय से भी अनुरोध किया जाता है। यह कहा जाता है कि पारिवारिक न्यायालय की तरह एक धर्म न्यायालय में भी भर्ती की जाती है, जहां धार्मिक मामले दर्ज किए जाते हैं।
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आज विषय नक्षत्र वनस्पति पूर्णाम्बा जी ने किया। विषय विशेषज्ञ के रूप में अनिल शुक्ल, एस के डाके, रमेश उपाध्याय जी ने अपना उद्बोधन प्रकट किया। प्रमुख रूप से स्वामी श्रीमज्ज्योतिर्मयानंदः जी तथा संत गोपालदास जी दर्शन दे रहे हैं।
चर्चा में सुनील ठाकुर जी, सची शुक्ला जी, डॉ एस के डेय जी, अनुसुइया प्रसाद उनियाल जी, सचिन जैन जी, डॉ गजेंद्र सिंह यादव जी, मनोरंजन पांडे जी, आदेश सोनी जी, सक्षम सिंह जी, बिसन दत्त शर्मा जी, संजय जैन जी, देवेन मनोहर चौधरी जी, गोपाल दास जी, गिरिजेश कुमार पैगे जी। आयुर्वेदिक पुजारी नचिकेता जी, जोशी जी, कमल महाप्रभु जी, संत पैट्रिक जी, आचार्य राजेंद्र प्रसाद शास्त्री जी, शशीर अग्रहरि जी, कुमार महेश आहूजा जी, सर्वभूतहृदयानंद जी, आदि अनेक विद्वानों ने भाग लिया।
संसदीय कार्य का कुशल संचालन प्रकार धर्माचायक देवेन्द्र पांडे ने किया। कार्यक्रम का शुभम्भ जयघोष से हुआ और अंत में परमाराध्य ने परमधर्मादेश जारी किया।