हल्द्वानी में अच्छी सेहत की उम्मीद अधूरी

Pahado Ki Goonj

राजधानी देहरादून के बाद हल्द्वानी को उत्तराखंड के दूसरे बड़े शहर के रूप में देखा जाता है। चौड़ी सड़कें और ऊंची इमारतें कुछ-कुछ ऐसा भान देती भी हैं, लेकिन जब बात आम आदमी को मिलने वाली बुनियादी सुविधाओं की होती है तो हल्द्वानी पहाड़ के किसी दुर्गम क्षेत्र की तरह ही लगने लगता है। कुमाऊं मंडल का सबसे बड़ा अस्पताल सुशीला तिवारी अस्पताल (एसटीएच) यहीं होने के बावजूद हल्द्वानी में स्वास्थ्य सेवाओं का बुरा हाल है। एसटीएच के अलावा यहां सोबन सिंह जीना बेस अस्पताल और महिला अस्पताल भी हैं, लेकिन जब बात मरीज की जान बचाने की आती है तो तीमारदारों और परिजनों के आगे सिवाय निजी अस्पतालों की ओर दौड़ लगाने के कोई चारा नहीं बचता।

एसटीएच में हर रोज औसतन 20 से अधिक मरीजों को वेंटीलेटर पर रखने की जरूरत पड़ती है, लेकिन अस्पताल में सिर्फ छह वेंटीलेटर हैं। ऐसे में डॉक्टर मरीजों को भर्ती करने से हाथ खड़े कर देते हैं और तीमारदारों को निजी अस्पताल में हर दिन के लिए आठ से दस हजार रुपये चुकाने पर मजबूर होना पड़ता है। हैरत की बात यह है कि अस्पताल में छह नये वेंटीलेटर की मांग पांच साल से की जा रही है, लेकिन यह पूरी नहीं हुई। कुमाऊं आयुक्त की ओर से भेजा गया प्रस्ताव भी फाइलों में कहीं धूल फांक रहा है।

उत्तराखंड में 108 एंबुलेंस सेवा की शुरुआत हुए आठ साल से अधिक समय हो चुका है। मई 2008 में शुरू हुई सेवा के तहत पूरे प्रदेश के लिए 139 एंबुलेंस दी गई थीं। अब हालत यह है कि 20 एंबुलेंस पांच लाख किलोमीटर (पर्वतीय रूटों पर किसी वाहन के चलने की अधिकतम सीमा) से अधिक चल चुकी हैं। इसके अलावा 90 गाडिय़ां भी आठ साल पुरानी हो चुकी हैं। इसके बावजूद न तो 108 सेवा के लिए शासन के स्तर पर नयी एंबुलेंस उपलब्ध कराई जा रही हैं, न ही पुरानी एंबुलेंसों की मरम्मत पर ध्यान दिया जा रहा है।

 

 

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