नई दिल्ली [डॉ. लक्ष्मी शंकर यादव]। वर्तमान में चीन केवल थलीय सीमा पर ही रक्षा चुनौतियां नहीं पेश कर रहा है, बल्कि वह भारत की सामुद्रिक घेराबंदी करने में भी लगा हुआ है। चीन की रक्षा तैयारियों को देखते हुएभारतीय नौसेना को आक्रामक और प्रतिरक्षात्मक तौर पर मजबूत होना होगा। नौ दिसंबर को श्रीलंका ने सामरिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हंबनटोटा बंदरगाह को औपचारिक रूप से चीन को सौंप दिया। इस बंदरगाह का नियंत्रण एक समझौते के तहत 99 वर्षो के लिए चीनी कंपनियों को दे दिया गया है। इस बंदरगाह को विकसित करने और कुछ अन्य परियोजनाओं के लिए चीन ने श्रीलंका को आठ अरब डॉलर अर्थात 51 हजार करोड़ रुपये का कर्ज दिया है।
हिंद महासागर और चीन
श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे का कहना है कि हिंद महासागर में यह बंदरगाह व्यापारिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है और इससे होने वाली आय से चीन का कर्ज वापस किया जाएगा। इस बंदरगाह के आसपास बनने वाला आर्थिक क्षेत्र और वहां होने वाले औद्योगीकरण से इलाके का विकास होगा। श्रीलंका सरकार ने चीन की महत्वाकांक्षी ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना का हिस्सा बनने की भी घोषणा कर रखी है। यह भी उम्मीद की जा रही है कि चीन अपनी इस परियोजना के तहत इस बंदरगाह का बड़े पैमाने पर उपयोग कर सकता है। यहां से व्यापारिक गतिविधियों के अलावा सैन्य गतिविधियां भी संचालित की जा सकती हैं। दोनों देशों के इस समझौते से भारत की सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई हैं। जब चीन की नौसेना इसका इस्तेमाल करेगी तो यह भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए ठीक नहीं होगा। 1उधर पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान प्रांत में स्थित ग्वादर बंदरगाह का संचालन भी चीन के हाथों में आने से अरब सागर में उसके जहाजों की आवाजाही और दखल बढ़ जाएगा। इस बंदरगाह के माध्यम से चीन का अफगानिस्तान व मध्य एशिया के सभी देशों से व्यापार संभव हो जाएगा, जो भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। ग्वादर बंदरगाह पाकिस्तान के लिए बेहद सामरिक महत्व वाला बंदरगाह है। चीन इस क्षेत्र में पाकिस्तान से पश्चिमी चीन तक ऊर्जा और खाड़ी देशों से व्यापार का कॉरिडोर खोलना चाहता है। ग्वादर पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम भाग में बलूचिस्तान प्रांत के अरब सागर का तटवर्ती शहर है। यह शहर 80 किलोमीटर की चौड़ी पट्टी पर स्थित है। पूरी तरह से विकसित होने के बाद यह दुनिया के आधुनिकतम बंदरगाहों में से एक बन गया है। यहां से मात्र 10 नॉटिकल मील की दूरी पर दुनिया का सबसे व्यस्ततम जल मार्ग है, जहां से लगभग 200 जहाज प्रतिदिन गुजरते हैं।
पाकिस्तान में सड़क के रास्ते चीन की चाल
चीन ग्वादर से जियोंग तक रेल मार्ग भी तैयार कर रहा है। उसने यहां से अपने देश के शिनजियांग प्रांत को पाकिस्तान से जोड़ने के लिए बहुत पहले काराकोरम मार्ग बनाया था। चीन द्वारा अब इस हाईवे का विस्तार किया जा चुका है। इन सभी मार्गो से चीन बलूचिस्तान के ग्वादर, पासनी एवं ओइमरा में स्थित अपने नौ सैनिक अड्डों पर जरूरी सैनिक साजो-सामान, कार्गो व तेल टैंकर मात्र 48 घंटों में पहुंचाने में सक्षम हो गया है। जाहिर है इस बंदरगाह का आर्थिक व सामरिक रूप से विशेष महत्व है। इसीलिए चीन द्वारा परमाणु पनडुब्बियों, अत्याधुनिक जलयानों व मिसाइलों की तैनाती यहां पर की जा रही है। यहां से चीन अरब सागर के माध्यम से हिंद महासागर में प्रवेश करके भारत को चुनौती प्रस्तुत कर सकेगा। इस प्रकार से ग्वादर नौ सैनिक अड्डे पर पाकिस्तान की नौ सेना भी महफूज रह सकेगी। भारत के लिए चिंतनीय स्थिति यह है कि इस सामरिक महत्व वाले स्थान पर भारतीय नौसेना व थल सेना की पहुंच आसान नहीं होगी तथा पहाड़ी इलाका होने के कारण भारतीय वायु सेना भी यहां पर हवाई हमले नहीं कर सकेगी।
चीन-म्यांमार की दोस्ती के माएने
हिंद महासागर में अपनी ताकत बढ़ाने के लिए चीन ने म्यांमार को भी अपना दोस्त बनाकर उससे सैन्य संबंध बढ़ा लिया है। चीन म्यांमार को परमाणु व मिसाइल क्षेत्र में सहयोग प्रदान कर रहा है। आशंका है कि चीन ने म्यांमार के द्वीपों पर भी नौ सैनिक सुविधाएं बढ़ा रखी हैं ताकि हिंद महासागर में भारतीय नौसेना की हर गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। म्यांमार के हांगई द्वीप पर राडार और सोनार जैसी संचार सुविधाओं का स्थापित किया जाना चीन की खतरनाक मंशा को दर्शा रही है। म्यांमार के क्याकप्यू में भी चीन बंदरगाह बना रहा है और उसके थिलावा बंदरगाह पर भी चीन का आवागमन है। वहां के सितवे बंदरगाह पर चीन एक तेल व गैसपाइप बना रहा है। मालूम हो कि अंडमान निकोबार द्वीप समूह से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोको द्वीप पर चीन अपनी ताकत बढ़ाकर आधुनिक नौ सैनिक सुविधाएं पहले ही स्थापित कर चुका है।
मालदीव- मॉरीशस और चीन का रिश्ता
उधर मालदीव और मॉरीशस के साथ चीन के बेहतर संबंध पहले ही बन चुके हैं। मालदीव ने चीन को मराओ द्वीप लीज पर दे रखा है। खबरों के अनुसार चीन उसका उपयोग निगरानी अड्डे के रूप में कर रहा है। इसके अलावा चीन बांग्लादेश के चटगांव बंदरगाह का भी विस्तार कर रहा है। बांग्लादेश का अधिकांश व्यापार यहीं से होता है। चीनी युद्धपोतों का आवागमन यहां पर होता रहता है। चीन जिबूती, ओमान व यमन जैसे देशों के बंदरगाहों का भी इस्तेमाल अपने लिए करने का प्रयास कर रहा है। वह हिंद महासागर के सेशेल्स द्वीप पर अपना पहला विदेशी सन्य अड्डा खोल भी चुका है। इस उद्देश्य के लिए चीन ने सेशेल्स को दो वाई-12 सर्विलांस एयरक्राफ्ट उपलब्ध करवा रखा है। सैन्य अड्डा खोलना चीन की सामरिक रणनीति का एक हिस्सा है।
दरअसल इस सैन्य अड्डे की मदद से सेशेल्स अथवा दूसरे देशों के बंदरगाहों पर आपूर्ति और सहायता अभियानों में भी मदद पहुंचाई जा सकती है। यह स्थिति भारत के लिए खतरे का संकेत है। ये सैन्य ठिकाने भारत की घेरेबंदी के लिए पर्याप्त हैं। जाहिर है भारत को समय रहते सचेत हो जाना चाहिए और अपनी सामरिक तैयारियों में किसी तरह की ढिलाई बरतने से परहेज करना चाहिए।
(लेखक सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक हैं)