_*क्या गया श्राद्ध के बाद श्राद्ध-तर्पण होना चाहिये ?*_
( एक आवश्यक स्पष्टीकरण )
नोट —–प्रस्तुत लेख धसरा राजा निवासी गिरिजा शंकर त्रिपाठी पत्रकार (दैनिक जागरण) द्वारा अपने माता–पिता का गया श्राद्ध सम्पन्न हो जाने के बाद पुनः अपने पूज्य पिता की पुण्यतिथि मनाने पर लोगों द्वारा उठाए गए सवाल के जबाब मे लिखा गया है।
*देवीभागवत के अनुसार -*
_जीवितो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरिभोजनात् ।_
_गयायां पिण्डदानाच्च त्रिभिः पुत्रस्य पुत्रता ।।_
*ब्रह्मवैवर्त और हेमाद्रि के अनुसार -*
_स्नानाङ्गतर्पणं विद्वान् कदाचिन्नैव ह्यापयेत् ।_
*आचाररत्न में कहा है -*
आशौचेsपि तद्भवति । अत्र देवपितृ्ऋणामेवेज्यत्वात् साङ्गस्य चानुष्ठेयत्वाज्जीवितपितृकस्याप्यधिकारः ।
*अर्थात्* सन्ध्या के अङ्ग रूप में तर्पण आवश्यक है और जीवित-पितृकों के लिये भी विहित है ।
देव-ऋषि-दिव्य पितृ-चतुर्दश यम के लिये तर्पण सभी के लिये विहित है, इसके आगे का कृत्य सपितृक न करे ऐसा निर्देश मिलता है ।
श्राद्ध के पक्ष में उपरोक्त देवीभागवत का निर्देश पर्याप्त है । शेष निर्णय
*विष्णुपुराण के निम्न अंश से पूर्ण हो जाता है -*
_गीतं सनत्कुमारेण यथैलाय महात्मने ।_
_पृच्छते पितृभक्ताय प्रश्रयावनताय च ।।_
महाराज ऐल ( पुरूरवा ) के पूछने पर श्री सनत्कुमार जी ने बतलाया –
_पितृगीतान्तथैवात्र श्लोकांस्ताञ्छृणु पार्थिव ।_
_श्रुत्वा तथैव भवता भाव्यं तत्रादृतात्मना ।।_
राजन् ! अब तुम पितृगण की इच्छा रूपी गायन सुनो और उन्हें प्रसन्न करने के लिए वैसा आचरण करो –
_अपि धन्यः कुले जायादस्माकं मतिमान्नरः ।_
_अकुर्वन्वित्तशाठ्यं यः पिण्डान्नो निर्वपिष्यति ।।_
_रत्नं वस्त्रं महायानं सर्वभोगादिकं वसु ।_
_विभवे सति विप्रेभ्यो योsस्मानुद्दिश्य दास्यति ।।_
पितृगण कहते हैं — क्या, हमारे कुल में कोई ऐसा मतिमान् पुरुष होगा जो लालच त्याग कर हमारे उद्देश्य से पिण्डदान करेगा तथा ब्राह्मणों को रत्न, वस्त्र, यान और सम्पूर्ण भोग-सामग्री देगा ।
_अन्नेन वा यथाशक्त्या कालेsस्मिन्भक्तिनम्रधीः ।_
_भोजयिष्यति विप्राग्र्यांस्तन्मात्रविभवो नरः ।।_
*अर्थात्* श्राद्धकाल में भक्ति-विनम्र चित्त से ब्राह्मणों को यथाशक्ति अन्न ही भोजन कराना चाहिए
_असमर्थोsन्नदानस्य धान्यमामं स्वशक्तितः ।_
_प्रदास्यति द्विजाग्र्येभ्यः स्वल्पाल्पां वापि दक्षिणाम् ।।_
_तत्राप्यसामर्थ्ययुतः कराग्राग्रस्थितांस्तिलान
।_
_प्रणम्य द्विजमुख्याय कस्मैचिद्भूप दास्यति ।।_
_तिलैस्सप्ताष्टभिर्वापि समवेतं जलाञ्जलिम् ।_
_भक्तिनम्रस्समुद्दिश्य भुव्यस्माकं प्रदास्यति ।।_
_यतः कुतश्चित्सम्प्राप्य गोभ्यो वापि गवाह्निकम् ।_
_अभावे प्रीणयन्नस्माञ्छ्रद्धायुक्तः प्रदास्यति ।।_
*अर्थात्* अन्नदान में असमर्थ होने पर थोड़ा सा कच्चा धान्य और दक्षिणा ही देगा ।
यह भी न होने पर एक मुट्ठी तिल ब्राह्मण को प्रणाम कर देगा ।
इतनी सामर्थ्य न होने पर केवल सात-आठ तिलों से युक्त जलाञ्जलि ही भूमि पर देगा ।
इसका भी अभाव होने पर कहीं से एक दिन का चारा लाकर प्रीति और श्रद्धा पूर्वक हमारे उद्देश्य से गाय को खिलायेगा ।।
_सर्वाभावे वनं गत्वा कक्षमूलप्रदर्शकः ।_
_सूर्यादिलोकपालानामिदमुच्चैर्वदिष्यति ।।_
_न मेsस्ति वित्तं न धनं च नान्य- च्छ्राद्धोपयोग्यं स्वपितृ्ऋन्नतोsस्मि ।_
_तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयैतौ कृतौ भुजौ वर्त्मनि मारुतस्य ।।_
*अर्थात्* स्वास्थ्य से लेकर धन-धान्य-वित्तादि सबका अभाव अर्थात् अकिञ्चन की स्थिति में वन में जाकर दोनों भुजाओं को ऊपर उठाकर ( कक्षमूलप्रदर्शकः भूत्वा )
सूर्यादि दिक्पालों के समक्ष उच्च वाणी से इस प्रकार कहेगा –
मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है जो आपके श्राद्ध के लिए उपयोगी हो । अतः अपनी दोनों भूजाओं को आकाश और वायु में उठाकर मैं आपको तथा अपने पितरों को केवल प्रणाम निवेदन करता हूँ ; इससे ही आपसब तृप्त एवं प्रसन्न हों ।
_इत्येतत्पितृभिर्गीतं भावाभावप्रयोजनम् ।_
_यः करोति कृतं तेन श्राद्धं भवति पार्थिव ।।_
सम्पूर्ण प्रयोजन यह कि श्राद्ध-तर्पण होना चाहिये और यदि गया श्राद्ध के बाद परिस्थिति अनुकूल नहीं रहती, यहाँ तक कि शरीर भी साथ नहीं देता तो सनत्कुमार जी के निर्देश का पालन तब भी हो सकता है । हाँ, गया श्राद्ध के पहले न करने से पितृशाप का भागी होता है ।
कुछ विद्वान लोगों का ये भी कहना है कि गया श्राद्ध के उपरांत तर्पण का कार्य न करके पूरे श्राद्धपक्ष में प्रतिदिन अपने पितरों के लिए पंचबलि और गीता पाठ जरूर करें ( ये उनके लिए भी है जो गयाश्राद्ध नहीं किये हैं। पूरे श्राद्धपक्ष के इन पावन दिनों में पितृश्वरों के मोक्षार्थ प्रतिदिन *पंचबलि और गीता पाठ का* कार्यक्रम स्वयं करना चाहिए।
ये पंचबलि और गीता पाठ का कार्यक्रम पितरों की आत्मा के शांति, पितृदोष निवारण और स्वयं सुख शांति पूर्वक आप भी अपने पूर्वजों को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित कर पितृ ऋण से मुक्ति पाएं और अपनी वंश परम्परा में होने वाले अनेक प्रकार के दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से छुटकारा प्राप्त करने के लिए अपने पूर्वजों से प्रार्थना करें 🙏
कहने का तात्पर्य है कि गया श्राद्ध के बाद, श्रद्धा पूर्वक पितृपक्ष में श्राद्धकर्म कर सकते हैं।
*गया में श्राद्धकर्म* करने से पितरों की आत्मा को शांति प्राप्त होती हैं। गरुड़ पुराण में स्वयं ब्रह्मा जी ने कहा है कि जो व्यक्ति घर से पितरों का पिंडदान करने के लिए निकलता है। इसका घर से निकला हर एक कदम पितरों को स्वर्गलोक की ओर बढ़ता है। वे कहते हैं, ‘हे व्यासजी सभी समुद्र, नदी, वापी, कू आदि जितने भी तीर्थ है, ये सब गया तीर्थ में खुद स्नान करने के लिए आते हैं। इसमें किसी भी प्रकार का संदेह नहीं किया जा सकता है। गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नी गमन आदि महापाप करने वाले पितरों को भी लाभ मिलता है और इन पापों से मुक्ति मिल जाती है।
आपसभी को अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त हो और उनके आशीर्वाद रूपी आशीष से आपके और आपके पूरे परिवार के जीवन में सुख, शांति व समृद्धि हो, यही मंगलकामना हैं 🙏
*स्वाध्याय समूह*
निवेदक कमलेश दत्त त्रिपाठी ग्राम गम्भीरापुर पोस्ट कनोखर थाना व तहसील लालगंग जिला मिर्जापुर उत्तर प्रदेश भारत
मो० 9452338870