13 अक्तूबर को शरद पूर्णिमा, जानें रात में खीर रखने की परंपरा क्यों

Pahado Ki Goonj

देहरादून। अश्विन महीने की पूर्णिमा इस बार 13 अक्टूबर, रविवार को है। जिसे शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। सभी पूर्णिमा में शरद पूर्णिमा को खास माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय पृथ्वी लोक का भ्रमण करती हैं।

इस रात चंद्रमा से बरसता है अमृत
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि में चंद्रमा सोलह कलाओं से अमृत वर्षा होने पर ओस के कण के रूप में अमृत की बूंदें गिरती हैं। इसलिए रात को चांदी के पात्र में खीर को रखा जाता है। ताकि अमृत के कण खीर के पात्र में गिरे जिसके फलस्वरूप यही खीर अमृत तुल्य हो जाती है। जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति आरोग्य एवं कांतिवान रहेंगे। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा पृथ्वी के बेहद करीब आ जाता है और इस ऋतु में मौसम साफ रहता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्र किरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है।

वैज्ञानिक मान्यता
शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी है। खीर दूध और चावल से बनकर तैयार होता है। दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है। यह एक ऐसा तत्व होता है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है। इसी के चलते सदियों से ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। एक अन्य वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं।

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