रिजर्व बैंक मोदी की गड़बड़ियों को उजागर कर अपने पाप धोएगा

Pahado Ki Goonj

मुंबई। नरेंद्र मोदी ने हर सरकारी एजेंसी की साख और स्वायतता की ऐसी-तैसी कर दी। अधिकारी विरल आचार्य (डेप्युटी गवर्नर) को उकसाने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। नरेंद्र मोदी शर्म-लिहाज की भावना से काफी ऊपर बहुत पहले ही उठ चुके थे। वह प्रेस और सामान्य लोगों के बीच कभी नहीं जाते, इसलिए वह सवालों से बचे रहते हैं। लेकिन एजेंसियों के अधिकारियों को तो प्रेस के साथ ही प्रायः तमाम लोगों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में उन्हें अक्सर लज्जित होना पड़ता है। नोटबंदी के समय और उसके एकाध साल बाद तक तो रिजर्व बैंक मोदी के चक्कर में नोटबंदी का बचाव करता रहा लेकिन लगातार किरकिरी और नोटबंदी के नुकसान सामने आने के बाद बचाव करना संभव नहीं रहा तो उसने धीरे-धीरे असलियत बतानी शुरु कर दी है। राफेल सौदे का घपला मोदी ने किया था यह लगभग साफ हो चुका है। अपने बचाव और विरोधियों को फंसाने के लिए सीबीआई में अपने पुर्जे राकेश अस्थाना को खास पद पर नियुक्त किया था, उसका भांडा फूट चुका है। अब लगता है कि रिजर्व बैंक भी मोदी सरकार की गड़बड़ियों को उजागर कर अपने पाप धोएगा।
26 अक्टूबर को आचार्य ने चेताते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार ने आरबीआई की स्वायत्तता को चोट पहुंचाने का प्रयास किया, तो बाजार को इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगे। इससे पहले, आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने भी 2015 में गोवा में अपने भाषण में कहा था कि मजबूत सरकारें सही दिशा में नहीं बढ़ सकतीं। जानकर आश्चर्य होगा कि देश की आर्थिक राजधानी यानी मुंबई में पटेल को श्छोटा राजनश् के नाम से भी जाना जाता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि क्या आरबीआई एक ऐसे मुद्दे को हवा देकर अपनी गलतियों पर पर्दा डालना चाहती है, जिसपर काफी पहले से बहस होती आई है। लंबे समय से इस बात को लेकर बहस होती रही है कि देश की न्यायपालिका, निर्वाचन आयोग, सीबीआई जैसे संस्थानों की स्वायत्तता खतरे में है? हाल के वाकये से इस फेहरिश्त में आरबीआई का भी नाम जुड़ गया है।
आचार्य का केंद्र सरकार पर हमला पिछले सप्ताह आरबीआई बोर्ड की बैठक के बाद सामने आया है। यह दूसरी बैठक थी, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के विचारक और चार्टर्ड अकाउंटेंट एस. गुरुमूर्ति ने हिस्सा लिया था। गुरुमूर्ति ने अगस्त में आरबीआई का बोर्ड जॉइन किया था। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिग्गजों की बैठक में तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर फैसला नहीं हो पाया। पहला, आईएलएंडएफएस मुद्दे के कारण पैदा हुए संकट से निपटने के लिए आरबीआई द्वारा नकदी की व्यवस्था के अतिरिक्त उपाय करना। दूसरा, प्रॉम्प्ट करेक्टिव एक्शन (पीसीए) के दायरे में आए 11 बैंकों को कर्ज देने में ढील देना। तीसरा, मझोले तथा छोटे कारोबारों को एक लाइफ लाइन और दूसरा मौका देना, क्योंकि नोटबंदी से ऐसे अधिकांश कारोबारों की वित्तीय कमर टूट गई है

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