पहाड़ी गाय के घी का महत्व – डॉ राजेंद्र डोभाल

Pahado Ki Goonj

उत्तराखण्ड : पहाड़ी गाय का घी एवं उसका महत्व – भाग 1

मेरे द्वारा पूर्व में विभिन्न उत्पादों पर लेख प्रस्तुत किये गये जिनका हमारी कृषि, आर्थिकी तथा सामान्य जनजीवन से सम्बन्ध था। आज मैंने सोचा कि एक ऐसे महत्वपूर्ण उत्पाद की जानकारी साझा करूं जिसका हमारे खाद्य सूची में महत्वपूर्ण स्थान है जिसको सभी के द्वारा उपयोग किया जाता है। घी का आविष्कार प्राचीन काल में तब हो गया था जब वर्तमान की तरह रेफ्रिजरेटर जैसे आधुनिक उपकरण नहीं थे। घी का आविष्कार दूध को लम्बे समय तक बचाये रखने के लिये किया गया क्योंकि दूध से बनने वाला घी ही एक ऐसा उत्पाद है जिसको वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
घी को हिंदुओं के घरेलू रसोई में खाना पकाने में, खाद्य पदार्थों और रोटी पर गार्निशिंग के रूप में, पारंपरिक मिठाइयां बनाने और कई धार्मिक संस्कारों व अनुष्ठानों में विभिन्न प्रकार से प्रयोग किया जाता है। प्राचीनतम संस्कृत टेक्स्ट ऋग्वेद में लगभग 1500 ई. पू. आर्य लोगों द्वारा सीरियल ग्रेन्स को घी में भूनकर उपयोग किये जाने का उल्लेख मिलता है घी के अतिरिक्त अन्य किसी वसा युक्त पदार्थ का उपयोग भोजन बनाने में हुआ हो प्रामाणिक तौर पे नहीं कहा जा सकता।

आइये अब इसके एडजुवेंट गुणों पर चर्चा करते हैं। आयुर्वेद में घी को समस्त लिपिड पदार्थों के मध्य ‘सर्वश्रेष्ठ’ वर्णित किया गया है। आयुर्वेदिक अभ्यास में व्यापक रूप से घी का प्रयोग खासकर अपक्षयी (डीजेनेरेटिव), पुरानी (क्रोनिक) और गहरे बैठे रोगों (डीप सीटेड डिजीज) में किया जाता है। इसे आहार में आंतरिक उपयोग या सहायक दवा के रूप में, ड्रग पोटेंसी को बढ़ाने में भी सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। घी औषधि के रूप में या किसी भी दवा के निष्कर्षण, अवशोषण और असिमिलेशन के लिए एक एडजुवेंट के रूप में प्रयोग किया जाता है। भोजन या दवाओं में उपस्थित, लिपिड में घुलनशील विटामिन या अन्य सक्रिय प्रिंसिपल कंपाउंड्स के अवशोषण के लिए इसे वाहक मीडिया के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। वसा में घुलनशील विटामिन्स खासकर विटामिन ई (जो धमनियों के इंडोथेलिअल क्षेत्र में मौजूद एलडीएल के ऑक्सीडेशन को रोकने में एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है), के स्तर को बढ़ाने में भी घी सहायक है और इस प्रकार एथेरोस्क्लेरोसिस और इसके परिणामस्वरूप हृदयाघात को रोकने में भी सहायक है।

सह-जैविक (प्रोबायोटिक) गुण :

घी की दानेदार बनावट, सुगंध, हल्का पीला रंग, औषधीय गुण आदि इसे आकर्षक बनाते हैं, आइये अब जरा घी के एक विशिष्ट स्वाद के पीछे फर्मेंटेशन में मौजूद माइक्रोब्स की भूमिका पर भी एक नजर डालते हैं।
हालांकि अफ़्रीकी, व मध्य पूर्व एसियाई देशों में घी का उत्पादन कई पीढ़ियों से किया जा रहा है लेकिन आज भी काफी हद तक देसी घी का उत्पादन स्वदेशी, पारंपरिक तरीकों पर आधारित है, पारंपरिक किण्वित मक्खन से बने उत्पाद को भारत में देसी घी और इथोपिया में नेटर कीबे नाम से संदर्भित किया जाता रहा है। आइये अब जरा घी बनने की पूरी प्रक्रिया पर एक सरसरी निगाह डालते हैं, गढ़वाल के कुछ स्थानीय लोगों से बात चीत करने पर एक बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई, कि सबसे पहले इस प्रक्रिया (बटर चर्निंग) में लौकी के एक सूखे फल को फर्मेंटेशन वेसेल के रूप में प्रयोग किया जाता था। इस बीच दूध में मौजूद माइक्रोफ्लोरा, फर्मेंटेशन वेसेल (लौकी) की इनर सरफेस पे स्टार्टर कल्चर के रूप में विकसित हो जाते हैं। किण्वित खाद्य पदार्थों के बायोट्रांसफार्मेशन में चाहे वो टेक्सचर, गुणवत्ता, स्वाद के विकास को लेकर हो या फिर स्पॉइलेज से रिलेटेड हो, माइक्रोबियल “स्टार्टर कल्चर” की प्रमुख भूमिका होती है। साथ ही उच्च ताप पर मक्खन को पकाया जाना इसमें उपस्थित हानिकारक बैक्टीरिया जैसे क्लोस्ट्रिडीयम को नष्ट करने में भी सहायक होता होगा। घी ही की तरह एक पारंपरिक किण्वित (फर्मेन्टेड) मक्खन से बना उत्पाद जिसे यूगांडा में व्यापक रूप से मशीटा, नाम से जाना जाता है, के फर्मेंटेशन में लगभग बीस से ज्यादा माइक्रोऑर्गैनिस्म होते हैं, ऐसा देखा गया है। मशीटा में पाए जाने वाले बैक्टीरिया में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया के सबसे अधिक तेईस स्ट्रेंस पाए गए जिनमे लैक्टोबैसिलस पैराकेसी, लैक्टोबैसिलस हेलवेटिकस, लैक्टोबैसिलस प्लान्टेरम और लैक्टोबैसिलस पेरोलेंस के साथ साथ बिफिडोबैक्टीरियम, एन्टरोकोकस फेसियम, एसीटोबैक्टर एसीटी, एसीटोबैक्टर लोविनीन्सिस भी मुख्य रूप से पाए गए। घी के औषधीय गुणों के पीछे भी अवश्य ही इन प्रोबायोटिक माइक्रोब्स का ही हाथ होता होगा।

आयुर्वेद ने गाय के घी को खाद्य वसा के रूप में घी को सर्वाधिक स्वास्थ्यप्रद स्रोत माना है। मेडिकेटेड घी के हितकारी गुणों व स्वास्थ्य पर इसके सकारात्मक प्रभावों के चलते हर्बल दवाओं को तैयार करने में इसका उपयोग भारत में काफी पहले से किया जाता रहा है। औषधि निर्माण में मेडिकेटेड घी और इसकी सामग्री का उपयोग प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों जैसे चरक संहिता, अष्टांग हृदय, भारत भैषज्य रत्नाकर और भावप्रकाश में अच्छी तरह से परिभाषित किया गया है। पारंपरिक भारतीय ग्रंथों में गाय के घी को मेधा रसायन भी नामित किया गया है, जो कि मानसिक सतर्कता और स्मृति के लिए फायदेमंद मानी गयी है, आज भी कई आयुर्वेदिक उत्पाद जो पारंपरिक रूप से स्मृति बढ़ाने के लिए उपयोग किए जा रहे हैं, घी से निर्मित होते हैं। स्मृति को सुधारने के लिए गोघृत यानि गाय के घी का उपयोग मस्तिष्क टॉनिक के रूप में किया जाता रहा है कहा जाता है कि घी मस्तिष्क के तीन मुख्य कार्यों जिनमे लर्निंग, मेमोरी और रेकॉलिंग को बढ़ाने में सहायक है।

बढ़ते वज़न के पीछे घी को लेकर भी तरह तरह की भ्रांतियां फैली हुई है। एक शोध में गाय के घी, अन्य वसा और ऑयल्स का चूहों के शारीरिक वजन पर क्या प्रभाव पड़ता है का आकलन किया गया और यह देखा गया की गाय के घी वाले समूह के चूहों के वजन में आश्चर्यजनक रूप से कमी हुई। वजन में यह कमी गाय के घी के औषधीय मूल्य से संबंधित हो सकती है जो भोजन को तेजी से अवशोषित कर पाचन में सहायता करती है। घी पाचन में सहायता के लिए पेट में मौजूद एसिड के स्राव को उत्तेजित करता है, जबकि अन्य वसा और तेल शरीर की पाचन प्रक्रिया को धीमा करते हैं।
गाय के घी में मुख्य रूप से पोलीअनसैचुरेटेड फैटी एसिड (पीयूएफए), ओमेगा 3 फैटी एसिड डी एच ए, लिनोलेनिक एसिड आदि रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं। पीयूएफए, ओमेगा 3 फैटी एसिड, और डीएचए, डिमेंशिया रोग (मानसिक रोग जिसमे न्यूरॉन्स नष्ट होने लगते हैं) के उपचार में फायदेमंद हैं। यह विचार गाय के घी की लिपिड प्रोफ़ाइल की स्वास्थ्य लाभ में उपयोगिता का समर्थन करता है।

एक अन्य शोध में डीएमबीए (7,12-डायमिथाइलबेन्ज़ (ए) -एन्थ्रेसीन, एक कार्सिनोजेन) ट्रीटेड चूहों पर गाय के घी व सोयाबीन तेल का एंटीकैंसर इफ़ेक्ट देखा गया। डीएमबीए ट्रीटेड चूहों वाले समूहों में, जिन्हे सोयाबीन तेल का ट्रीटमेंट दिया गया में ट्यूमर की घटनाएं (65.4%) अधिक थीं वहीँ दूसरी ओर गाय के घी वाले समूहों में, ट्यूमर की घटनाएं अपेक्षाकृत कम (26.6%) थी। इस अध्ययन से ये साबित हुआ कि सोयाबीन तेल की तुलना में गाय का घी कैंसर के लिए जिम्मेदार एंजाइम गतिविधियों को कम करने में ज्यादा इफेक्टिव होता है।

पिछले एक कुछ दशकों में शहरी क्षेत्रों में बदलती जीवन शैली के चलते परिष्कृत तेलों के प्रसार और लोकप्रियता ने भले ही घी की उपयोगिता को नज़र अंदाज किया हो लेकिन हालिया दिनों में कई फार्मास्यूटिकल संस्थाओं, व स्वास्थ्य संगठनों द्वारा के घी के विभिन्न लाभकारी गुणों पर अध्ययन ने, निश्चित रूप से एक बार फिर इसे सुपरफ़ूड श्रेणी में शामिल कर दिया है।

द हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार- भारत में “राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान” करनाल के शोधकर्ताओं ने भारतीयों व एशियाई उप-महाद्वीप के तीन चौथाई लोगों में बेड कोलेस्ट्रॉल, या ट्राइग्लिसराइड्स के उच्च स्तर को देखते हुए, रासायनिक प्रक्रिया से, घी का एक संस्करण विकसित किया है जो कोलेस्ट्रॉल सामग्री को 85 प्रतिशत कम कर देता है। अनुसंधान संस्थान के निदेशक के अनुसार यह घी खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण द्वारा निर्धारित सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के अनुसार शुद्ध घी मतलब पारदर्शी मक्खन (क्लेरिफाई बटर) या क्रीम से पूरी तरह व्युत्पन्न वसा जिसमे किस भी प्रकार का रंग या प्रिजर्वेटिव न हो, है। भारत में, घी को एगमार्क प्रमाणीकरण के तहत संगठित डेयरी से विपणन किया जाता है, जिसमें वहां मौजूद फ्री फैटी एसिड (एफएफए) के आधार पर तीन ग्रेड: विशेष (अधिकतम 1.4% एफएफए), जनरल (अधिकतम 2.5% एफएफए) और स्टैंडर्ड (अधिकतम 3.0% एफएफए) विकसित किये गए हैं।

निरंतर ………………..

डॉ राजेंद्र डोभाल
महानिदेशक
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद्
उत्तराखंड

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