काफ़ल पाको मैं नि चाखो काफ़ल की दर्द भरी कहानी

Pahado Ki Goonj

काफ़ल पाको मैं नि चाखो ,काफ़ल की दर्द भरी कहानी
एक गांव में मां बेटी रहती थी, निर्धन परिवार होने के कारण दोनों मां बेटी एक ही समय पर खाना खा पाते थे, उन दिनों काफ़ल का समय था, सायंकाल मां काफ़ल तोड़कर लाती है ।सुबह होने पर अपनी बेटी को उठाती है और कहती है कि
उठो अब धूप निकल आई है। बेटी बहुत ही उदास होकर मां से कहती है कि मां मैंने कल से कुछ नहीं खाया है,मुझे बहुत भूख लगी है, जो आप काफ़ल तोड़ कर लाई होे क्या मैं उसे खा सकती हूं, तो मां कहती है कि दिन में गेहूं काटकर आऊंगी दोनों मां बेटी साथ खाएंगे और मेरे आने तक तुम नमक पीस कर रखना। मां चली जाती है मां देखती है कि दोपहर हो चुकी है अब मुझे घर जाना चाहिए उधर बेटी सोचती है कि बहुत ज्यादा भूख लगी है किंतु मैं अपनी मां के साथ ही यह का फल खाऊंगी। जब मां घर आती है और बाहर धूप में रखे काफल देखती है तो धूप से बहुत से सूख गए थे और कुछ कम दिखाई दे रहे थे तो इसलिए मां बेटी को डांटकर कहती है कि जब मैंने कहा था कि हम साथ काफल खाएंगे तूने अकेले क्यों खाए तो बेटी कहती है कि मां मुझे मेरे मरे हुए पापा की कसम मैंने का फल नहीं खाए ,काम के कारण आप बहुत अधिक क्रोधित हैं मेरी बात शांति से सुनिए किंतु मां क्रोधित होती है और गुस्से में वह जोर से अपनी बेटी पर हाथ उठा देती है और बेटी मर जाती है। बेटी से अत्यधिक मोह होने के कारण मां को अपनी गलती का अहसास होता है,बेटी के वियोग में उसकी माँ भी प्राण त्याग देती है । ऐसा कहा जाता है कि उसी समय से यह दोनों मां बेटी पक्षी का जन्म लेकर पेड़ में बैठकर आपस में बात करती हैं काफ़ल पाको मैंने खाया।।
यह कहानी है काफ़ल और भला हो हमारे इन लोक- गायक कलाकारों का जिन्होंने हमारी इस पुरानी कहानी को जीवंत किया। अगर कहानी बताने में कहीं पर कोई त्रुटि हुई हो तो क्षमा चाहते हैं ।

यह कुमाऊं की एक बहुत पुरानी कहानी है जिसे हमारे गढ़वाली गायक कलाकारों ने बहुत खूबसूरत ढंग से अपनी मधुर धुन और आवाज में इस कहानी को पिरोया है, जिन्होंने हमारी संस्कृति को बचाए रखने के लिए पुरानी कहानियों को अपने मधुर गीत और संगीत के माध्यम से जन -सामान्य तक को समझा दिया।
हृदय से उन सभी कलाकारों को। कोटि कोटि नमन और धन्यवाद

Next Post

टिहरी के बारे मे आप तक कुछ जानकरी

टिहरी के बारे मे आप तक कूछ जानकरी टिहरी सन् 1815 से पूर्व तक एक छोटी सी बस्ती थी। धुनारों की बस्ती, जिसमें रहते थे 8-10 परिवार। इनका व्यवसाय था तीर्थ यात्रियों व अन्य लोगों को नदी आर-पार कराना। धुनारों की यह बस्ती कब बसी। यह विस्तृत व स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं […]

You May Like