बृहस्पति ग्रह के चांद यूरोपा में पानी मिलने के संकेत, धरती के बाहर जीवन की तलाश

Pahado Ki Goonj

नासा। हालिया खोज के बाद खगोलीय जीव वैज्ञानिकों का यह मानना है कि हमारे सौर मंडल के तमाम ग्रहों के चंद्रमाओं में जीवन होने की संभावना ज्यादा है। और अब इस संभावना को और ज्यादा तलाशने के लिए कई अंतरिक्ष अभियानों की योजना पर काम चल रहा है।
धरती के करीबी ग्रहों से इतर जो दूर के ग्रह हैं, उनके चंद्रमा पर पानी होने की संकेत मिले हैं। जैसे कि बृहस्पति ग्रह के चंद्रमा यूरोपा के बारे में माना जाता है कि उस पर धरती के सारे समंदर में मौजूद पानी से भी ज्यादा पानी है। इस पानी और इस में मौजूद जीवन की अंतरिक्ष के रेडिएशन और उल्कापिंडों से हिफाजत के लिए कई किलोमीटर मोटी बर्फ की परत है।
इसी तरह शनि ग्रह के चंद्रमा एनसेलाडस से उठती पानी की फुहारों से ऐसा लगता है कि उन के भीतर पानी का तापमान इतना गर्म होगा कि उस पर तरल समंदर मौजूद हों. जिन्हें सूरज से नहीं, बल्कि उनकी अंदरूनी ऊर्जा और रेडिएशन से गर्मी मिलती हो. और इन्हें ये ताकत उन ग्रहों से मिलती है, जिनका ये चंद्रमा चक्कर लगाते हैं।
अब कई ग्रहों के चंद्रमा, जैसे यूरोपा, कैलिस्टो, गैनीमीड और एनसेलाडस पर पानी होने के सबूत मिल चुके हैं। इस साल जून में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट के मुताबिक एनसेलाडस पर पिछले एक अरब साल से समंदर मौजूद है। इतने समय में जिंदगी की शुरुआत हो जाती है। माना जाता है कि ये समंदर नमकीन हैं, जिनमें सोडियम क्लोराइड पाया जाता है. जैसे कि हमारी पृथ्वी के समुद्रों का पानी है. इससे भी इन चंद्रमाओं पर पानी होने की संभावना बढ़ जाती है।
वैज्ञानिक इस बात की भी संभावना जताते हैं कि समंदर में मौजूद तरल पानी और उसकी गहराई में मौजूद चट्टानों के संपर्क से कई केमिकल रिएक्शन हुए होंगे। किसी भी जगह पर जीवन की उत्पत्ति के लिए ऐसा होना जरूरी होता है। नासा के कैसिनी मिशन ने एनसेलाडस चंद्रमा पर पानी के धुएं का अध्ययन करके ये अंदाजा लगाया है कि उस की समुद्री सतह के भीतर गर्म पानी के सोते हैं, जो पानी का तापमान बढ़ाने का काम करते हैं।
ऐसे ही पानी के सोते धरती के समुद्री तल पर भी मौजूद हैं। वहां पर धरती के भीतर से निकलने वाला गर्म लावा, नमकीन पानी से मिलकर केमिकल रिएक्शन करता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसी केमिकल रिएक्शन से धरती पर जीवन की उत्पत्ति हुई थी।
समुद्र की तलहटी तक सूरज की किरणें नहीं पहुंच पाती हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ऐसा ही बृहस्पति और शनि ग्रहों के चंद्रमा पर मौजूद समुद्र के साथ होगा। लेकिन, इसका ये मतलब नहीं कि वहां जीवन की कोई संभावना नहीं. क्योंकि धरती पर तो समुद्र की तलहटी में जिंदगी की पौध लहलहा रही है।
करीब 20 साल पहले आई बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री नेचुरल हिस्ट्री ऑफ ऐन एलिएन में दिखाया गया था कि यूरोपा के गहरे समुद्र की सतह पर जिंदगी लबरेज हो सकती है। वैज्ञानिकों की एक टीम का कहना था कि किसी भी ग्रह पर जीवन की फूड चेन के लिए बैक्टीरिया जरूरी होते हैं। जो कीमोसिंथेसिस नाम की रासायनिक प्रक्रिया से समुद्र के भीतर मौजूद गर्म सोतों से ऊर्जा लेते हैं. और लंबी ट्यूब जैसी संरचनाएं बनाते है, जो समुद्र की सतह तक आती हैं।
फिर समुद्र में रहने वाले दूसरे जीव जैसे मछलियां, इन लंबी ट्यूब को खाती हैं। फिर उन्हें शार्क जैसी शिकारी मछलियां खाती हैं। ये फूड चेन धरती पर मिलती है. दूसरे ग्रहों के चंद्रमा पर ऐसे फूड चेन की संभावना कम ही है।
हालांकि हमारी धरती के लंबे इतिहास में 90 प्रतिशत समय तक बैक्टीरिया पर आधारित फूड चेन ही चलती रही थी। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एंड्र्यू नॉल कहते हैं कि यूरोपा या एनसेलाडस पर अगर जीवन होगा भी तो वो कीटाणुओं जैसे जीवों की शक्ल में ही होगा। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी को ओरिजिन्स ऑफ लाइफ इनीशिएटिव के निदेशक प्रोफेसर दिमितर सासेलोव कहते हैं कि इन कीटाणुओं पर आधारित छोटे इकोसिस्टम होने की पूरी संभावना है। प्रोफेसर सासेलोव कहते हैं कि, श्अटकलें लगाना मजेदार है। मेरा मानना है कि अंतरिक्ष में जीवन की उत्पत्ति की काफी संभावनाएं हैं। बहुकोशिकीय जीव दूसरे ग्रहों पर जरूर पनप रहे हैं, जो दूसरे जीवों को खाकर अपना पेट भरते होंगे।
इंसान एक और ग्रह के चंद्रमा पर जाने की तैयारी कर रहा है, जहां का मामला जरा पेचीदा है। ये है शनि ग्रह का टाइटन चंद्रमा. धरती से दूर टाइटन इकलौता खगोलीय पिंड है, जहां द्रव सतह पर मौजूद है। नासा के कैसिनी मिशन पर मौजूद ह्यूजेंस प्रोब, टाइटन पर 2005 में उतरा था, ह्यूजेंस ने टाइटन की जो तस्वीरें भेजी थीं, उन में धरती जैसा ही मंजर दिखा था। नदियां थीं और समंदर थे। लेकिन, टाइटन पर पानी के बजाय जो बादल, बारिश और समुद्र हैं, वो मीथेन और ईथेन गैस के हैं। ये हमारी पृथ्वी पर मिलने वाली कुदरती गैस के अवयव हैं। जो पानी टाइटन ग्रह पर मौजूद है, वो उसकी चट्टानों और पहाड़ों में पैबस्त है. क्योंकि टाइटन की सतह का तापमान माइनस 180 डिग्री सेल्सियस है। इसका मतलब ये हुआ कि ऊपरी तौर पर तो टाइटन हमारी धरती जैसा ही है। लेकिन, इसका माहौल हमारे ग्रह से बिल्कुल अलग है। अगर वहां पर जीवन मौजूद है, तो वो मीथेन पर निर्भर होगा. न कि पानी पर. और शायद वहां असली एलियन रहते हों।
इस बात की काफी हद तक संभावना है कि टाइटन पर जीवन मौजूद हो। लेकिन, वो हमारी धरती से बिल्कुल अलग तरह का होगा। धरती पर जिंदगी कोशिकाओं से पनपी. इसकी दीवार फॉस्फोलिपिड से बनी होती है। जिसका सिरा फॉस्फोरस-ऑक्सीजन का होता है और निचला हिस्सा कार्बन चेन का होता है।
अगर किसी और ग्रह पर मीथेन आधारित जीवन है, तो हमारी धरती पर पायी जाने वाली कोशिकाओं से अलग होगा। कॉर्नेल यूनिवर्सिटी की एक टीम ने प्रयोगशाला में नाइट्रोजन, कार्बन और हाइड्रोजन की मदद से कोशिकाएं बनाने में कामयाबी हासिल की थी. टाइटन पर ऐसी कोशिकाओं के होने की संभावना जताई जा रही है। 2015 में हुए इस प्रयोग के बाद से ही नासा के वैज्ञानिकें ने टाइटन के वातावरण में विनाइल साएनाइड नाम के केमिकल की मौजूदगी की पुष्टि की है। इससे कोशिकाओं की दीवारें बन सकती हैं। यानी सैद्धांतिक तौर पर टाइटन पर वो सारे अवयव मौजूद हैं, जिनकी बुनियाद पर वहां जीवन की उत्पत्ति हो सकती है। नासा, 2026 में टाइटन के लिए ड्रैगनफ्लाई मिशन भेजने पर काम कर रहा है. जिससे ड्रोन जैसे यान टाइटन पर उतरेंगे. ड्रैगनफ्लाई मिशन 2034 तक वहां पहुंचेगा। टाइटन के उत्तरी समुद्र क्रानेन मेयर के समुद्र के लिए नासा एक पनडुब्बी भेजने पर भी विचार कर रहा है।
इसी तरह, बृहस्पति के उपग्रह गैनीमीड पर भी मिशन भेजने की तैयारी है। यूरोपीय स्पेस एजेंसी का मिशन जूस 2022 में गैनीमीड के लिए रवाना होगा। यह मिशन बृहस्पति ग्रह के कैलिस्ट और यूरोपा उपग्रहों पर भी जाएगा. नासा का यूरोपा क्लिपर मिशन भी 2023 में रवाना होगा। वो यूरोपा के चक्कर लगाकर वहां जिंदगी की संभावनाएं तलाशेगा। नासा के समर्थन से एक प्राइवेट मिशन भी एनसेलाडस उपग्रह पर जाने वाला है, जिसे 2025 में रवाना किया जाना है।
किसी और खगोलीय पिंड पर जीवन तलाशने के लिए हमें पनडुब्बी जैसा यान भेजना होगा, जो मुश्किल काम है। 2018 में अमरीका में वैज्ञानिकों ने एटमी पावर से चलने वाली टनलबोट का कॉन्सेप्ट पेश किया था, जिसे दूसरे खगोलीय पिंडों पर जीवन की तलाश के लिए भेजा जा सकता है। लेकिन, यह भी हो सकता है कि जिस तरह की जिंदगी की तलाश हम ब्रह्मांड में कर रहे हों, वैसी कहीं हो ही न। आज से करीब 5 अरब साल बाद हमारे सूरज का हाइड्रोजन ईंधन खत्म हो जाएगा। तब विशाल लाल पिंड के तौर पर और बड़ा होगा। हो सकता है कि तब इसकी प्रचंड गर्मी से इन उपग्रहों पर जमा बर्फ पिघल जाए और जिंदगी की कोपलें फूटें।
सूरज के खात्मे के बाद हम सब को किसी और ठिकाने को तलाशना होगा। तब यह उपग्रह हमें पनाह पाने के ठिकाने मुहैया करा सकते हैं।

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