गुर्जर परिवारों को विस्थापन के नाम पर १९८३ से गोरखधंधा जारी है

Pahado Ki Goonj

1983 से आज तक सुलझ नहीं पाई, विस्थापन की गुत्थी में
अधिकारियों और भूमाफियाओं ने जमकर समय-समय पर  मलाई काटते रहे
ऋषिकेश, । पालकी के लुटेरों को ही बारात के सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंप दी जाए तो माजरा क्या होगा।या यूं कहें कि रक्षक ही भक्षक बनकर कुंडली मार कर बैठे हुए हैं। ये किसी से छुपा नहीं है। यही हालत वन विभाग के अफसरों की हो चुकी है। गुर्जर परिवारों को विस्थापन के नाम पर कई सालों से गोरखधंधा जारी है। हालत ये है कि जिन अफसरों पर पारदर्शी तरीके से भूमि आवंटन और मुआवजे की जिम्मेदारी है वही घपले की धुरी बन चुके हैं। यही वजह है कि गुर्जर परिवारों को विस्थापन की सूची वर्ष 1983 से अब तक फाइनल नहीं हो पाई है। पूर्व में जो सूची बनी वो फर्जीवाड़े का पुलिंदा से अलावा कुछ भी नहीं है।

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