तिरस्कार या मजबूरी

Pahado Ki Goonj

*तिरस्कार या मजबूरी*

*गोपाल किशन जी एक सेवानिवृत अध्यापक हैं। सुबह दस बजे तक ये एकदम स्वस्थ प्रतीत हो रहे थे । शाम के सात बजते-बजते तेज बुखार के साथ-साथ वे सारे लक्षण दिखायी देने लगे जो एक कोरोना पॉजीटिव मरीज के अंदर दिखाई देते हैं।*

*परिवार के सदस्यों के चेहरों पर खौफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था। उनकी चारपाई घर के एक पुराने बड़े से बाहरी कमरे में डाल दी गयी जिसमें इनके पालतू कुत्ते *मार्शल* का बसेरा है । *गोपाल किशन जी कुछ साल पहले एक छोटा सा घायल पिल्ला सड़क से उठाकर लाये थे और अपने बच्चे की तरह पालकर इसको नाम दिया *मार्शल*।

*इस कमरे में अब गोपाल किशन जी , उनकी चारपाई और उनका प्यारा मार्शल हैं। दोनों बेटों -बहुओं ने दूरी बना ली और बच्चों को भी पास ना जानें के निर्देश दे दिए गये।*

*सरकार द्वारा जारी किये गये नंबर पर फोन करके सूचना दे दी गयी । खबर मुहल्ले भर में फैल चुकी थी लेकिन मिलने कोई नहीं आया । साड़ी के पल्ले से मुँह लपेटे हुए, हाथ में छड़ी लिये पड़ोस की कोई एक बूढी अम्मा आई और गोपाल किशन जी की पत्नी से बोली -“अरे कोई इसके पास दूर से खाना भी सरका दो, वे अस्पताल वाले तो इसे भूखे को ही ले जाएँगे उठा के”।*

*अब प्रश्न ये था कि उनको खाना देनें के लिये कौन जाए। बहुओं ने खाना अपनी सास को पकड़ा दिया अब गोपाल किशन जी की पत्नी के हाथ, थाली पकड़ते ही काँपने लगे, पैर मानो खूँटे से बाँध दिये गए हों।*

*इतना देखकर वह पड़ोसन बूढ़ी अम्मा बोली “अरी तेरा तो पति है तू भी डर रही है …।* *मुँह बाँध के चली जा और दूर से थाली सरका दे वो अपने आप उठाकर खा लेगा”। सारा वार्तालाप गोपाल किशन जी चुपचाप सुन रहे थे , उनकी आँखें नम थी और काँपते होठों से उन्होंने सबसे कहा कि “कोई मेरे पास ना आये तो बेहतर है , मुझे भूख भी नहीं है”।*

*इसी बीच एम्बुलेंस आ जाती है और गोपाल किशन जी को एम्बुलेंस में बैठने के लिये बोला जाता है। गोपाल किशन जी घर के दरवाजे पर आकर एक बार पलटकर अपने घर की तरफ देखते हैं । पोती -पोते First floor की खिड़की से मास्क लगाए दादा को निहारते हुए और उन बच्चों के पीछे सर पर पल्लू रखे उनकी दोनों बहुएँ दिखाई पड़ती हैं। Ground floor पर, दोनों बेटे काफी दूर, अपनी माँ के साथ खड़े थे।*
*”विचारों का तूफान” गोपाल किशन जी के अंदर उमड़ रहा था। उनकी पोती ने उनकी तरफ हाथ हिलाते हुए Bye कहा । एक क्षण को उन्हें लगा कि ‘जिंदगी ने उनको अलविदा कह दिया।’*

*गोपाल किशन जी की आँखें लबलबा उठी। उन्होंने बैठकर अपने घर की देहरी को चूमा और एम्बुलेंस में जाकर बैठ गये।*

*उनकी पत्नी ने तुरंत पानी से भरी बाल्टी घर की उस देहरी पर उड़ेल दी जिसको गोपाल किशन चूमकर एम्बुलेंस में बैठे थे।*

*इसे तिरस्कार कहो या मजबूरी, लेकिन ये दृश्य देखकर कुत्ता मार्शल भी रो पड़ा और उसी एम्बुलेंस के पीछे – पीछे हो लिया जो गोपाल किशन जी को अस्पताल लेकर जा रही थी।*

*गोपाल किशन जी अस्पताल में 14 दिनों के अब्ज़र्वेशन पीरियड में रहे। उनकी सभी जाँच सामान्य थी। उन्हें पूर्णतः स्वस्थ घोषित करके छुट्टी दे दी गयी। जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उनको अस्पताल के गेट पर उनका प्यारा कुत्ता मार्शल बैठा दिखाई दिया। दोनों आज एक दूसरे से लिपट गये। एक की आँखों से गंगा तो एक की आँखों से यमुना बहे जा रही थी।*

उनको याद आया कि आज से 40 वर्ष पहले जब रोजगार पाने के लिए हम आगे चलकर बढ़ रहे थे तो उस समय देश में जय श्री राम कह कर एक दूसरे का अभिवादन करने की परम्परा राम मन्दिर बनाने के लिए चल पड़ी थीं।सब भावनाओं में भटकते हुए आगे बढ़ने लगे थे। श्री राम अज्ञा कारी हुए सायद राम के नाम का नारा लगाने वाले भी आगे चलकर  कुछ गुण वान होंगे। आज्ञा कारी श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता पिता को तीर्थ यात्रा पर लेजा कर अपने प्राण  दिये ।आज भी करोड़ों में एक दो श्रवण कुमार दिखाई देते हैं ।जो अपने माँ बाप को यात्रा पर उत्तराखंड में भी चारधाम  लाते हैं।उस अस्सी दशक के दौर में राम के मन्दिर बनाने के लिए सत्ता पाने का काम करने के लिए देश मे अपराधी भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने लगे ।हमारे देश की माटी में वह सभी गुण विद्यमान है। जो बाल्मीकि डाकु से सन्त बना कर बाल्मीकि रामायण के रचयिता बना दिया।राम के सौतेले भाई भारत महाराज ने राम पाने के लिए गद्दी छोड़ कर  उनके खड़ाऊ से राज्य का काम किया। अस्सी के दशक के बाद।तथा कथित लोगों ने गद्दी के लिए राम छोड़कर मांबाप का अनादर कर गलत संस्कृति को जन्म दिया है। तब से तीन काम हुए ।पहले बड़ो का अनादर, दूसरे  ,पशुधन की नीलामी, खेती से विमुख कर पलायन बढ़ा है।घर में बड़ों का अपमान होना बड़ी बात नहीं रह गई।राम मंदिर बनेगा कब तक बनेगा ?

आज मा बाप् बोझ लगने लगे हैं।उनको कोई तकलीफ होती है तो उनकी देखभाल के लिए किसी के पास समय नहीं है।जिधर भी देखें उधर बूढ़े लोगों की बेकद्री होने की घटनाओं की लम्बी फहरिस्त है।बड़े बुजुर्ग अपने को असाय महसूस करते हुए उन्होंने देखा है उनके मन में कई तरह के खयाल पल पल में उनके मन से उमड़ गूमड़ कर जमान पर आते हैं।वह किस प्रकार अपने मन को बोल कर हल्का करते ।मन की बात किससे कहते ,मार्शल है वह अपने मालिक से बिछड़ने का दुख आँख से छलक कर व्यक्त कर चुका था।परन्तु उन्हें समाज में बिना  बीमारी के जांच पड़ताल कर अपने घर के  लोगों से ऐसा बिमुख होने की उम्मीद नहीं थी।

*जब तक उनके बेटों की लम्बी – लंबी गाड़ी उन्हें लेने पहुँचती तब तक वो अपने कुत्ते को लेकर किसी दूसरी दिशा की ओर निकल चुके थे।*

*उसके बाद वो कभी दिखाई नहीं दिये। आज उनके फोटो के साथ उनकी गुमशुदगी की खबर छपी है अखबार में लिखा है कि सूचना देने वाले को 40 हजार का ईनाम दिया जायेगा।*

*40 हजार रुपया – हाँ पढ़कर ध्यान आया कि इतनी ही तो मासिक पेंशन आती थी उनकी जिसको वो परिवार के ऊपर हँसते गाते हुए उड़ा दिया करते थे।*

साभार

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