केंद्रीय नेतृत्व से मिलाओ हां भाड़ में जाय जन्म भूमि माँ

Pahado Ki Goonj

– आखिर कब तक हाईकोर्ट की फटकार से जागेगी सोती उत्तराखंड  की त्रिवेंद्र सरकार

 खनन माफिया के हवाले किया जा रहा प्रदेश

*अल्पसंख्यक मोर्चा और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने इसका जमकर विरोध किया।।                        *विरोध में मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के प्रदेश संयोजक समेत कई सदस्यों ने अपने-अपने पद से स्तीफा  दे दिया।।                                                       *अध्यक्ष बिलाल-उर-रहमान एक खनन माफिया है

देहरादून। सरकार द्वारा एक खनन माफिया और बाहरी व्यक्ति को मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी  क्या सोचकर सौंपी गई। उत्तराखंड केे लोगों क्यों नहीं बनाया गया।उत्तराखंड के अल्प संख्या का वजूद नहीं है।सरकार को जगाने के लिए यह आलम देखने को मिल रहा है कि, इस सोती हुई  सरकार को अब हाईकोर्ट की फटकार से जागना पड़ रहा है।

कई विभाग ऐसे है, जिनका सही से क्रियान्वयन के लिए बोर्ड तो बना दिये गए। लेकिन सरकार इन बोर्ड की कार्यकारणी के सदस्य बनाना भूल गई।

आपको बता दें कि, ऐसे ही एक मामले को लेकर हल्द्वानी के फैजान अल्वी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। जनहित याचिका में फैज़ान द्वारा पूछा गया कि, मदरसा बोर्ड में कोई भी कार्यकारणी अभी तक क्यों नही बनाई गई। हाईकोर्ट ने याचिका पर संज्ञान लेते हुए सरकार से इस संदर्भ में जवाब मांगा कि, आखिर अभी तक सरकार द्वारा क्यों इस मदरसा बोर्ड की कार्यकारणी समिति तैयार नही की गई।

गौरतालब है कि, 6 जून तक सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया था। संतुष्ट पूर्ण जवाब न मिलने पर सरकार को हाईकोर्ट की फटकार भी सुनने को मिली। फटकार के साथ ही हाईकोर्ट द्वारा 3 दिन के भीतर इस कार्यसमिति को गठित करने को कहा गया था। लेकिन फिर से 7 जून को विभागीय मंत्री यशपाल आर्य द्वारा इसमें अधिसूचना जारी कर दी गई और आनन-फानन में मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष पद पर बिलाल-उर-रहमान को अध्यक्ष बना दिया गया।

– आखिर खनन माफियाओंं और बाहरी व्यक्ति को क्यों सौंपे गए दायित्व?

आपको बतादें कि, जिसका दुष्प्रभाव यह हुआ कि, अल्पसंख्यक मोर्चा और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के कार्यकर्ताओं ने इसका जमकर विरोध किया। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के प्रदेश संयोजक समेत कई सदस्यों ने अपने-अपने पद से स्तीफा तक दे दिया। अब इस सरकार पर आरोप यह लगते है कि, इनके द्वारा आनन-फानन में भीतरी मिली भगत से बाहरी व्यक्ति को अध्यक्ष बनाया गया। जिसका मदरसा बोर्ड की कार्यकारणी से कोई लेना देना ही नही है। जानकारी से ज्ञात हुआ कि, अध्यक्ष बिलाल-उर-रहमान एक खनन माफिया है। अब सवाल यह उठता है कि, कैसे सरकार द्वारा एक खनन माफिया और बाहरी व्यक्ति को मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी सौंपी गई और क्या सोचकर?

अब यहाँ ऐसा ही दूसरा मामला हमारे संज्ञान में आया है, भाषा संस्थान अकादमी का। जंहा 4 भाषा है, जिसमें हिंदी, उर्दू, पंजाबी और लोकभाषा अकादमी का गठजोड़ किया गया। इसमें भी 2018 में कार्यकारणी सदस्य के लिये जिओ पारित तो कर दिया गया, ठीक मदरसा बोर्ड की तरह बोर्ड भी बना, लेकिन कार्यकारणी सदस्यों का गठन अभी तक नही हो पाया।

सरकार से आखिर भाषा जैसे मुख्य अकादमी की अनदेखी किस लिए हो रही है, इसका जवाब खुद डबल इंजन की त्रिवेंद्र सरकार भी नही जानती है। अब तो ऐसा प्रतीत होता है कि, हर बार हाईकोर्ट की फटकार के बाद ही इस सोती हुई डबल इंजन की सरकार की नींद खुलती है। जब हाईकोर्ट को ही हर मामले में दखल देना पड़ जाए तो फिर ऐसी प्रदेश सरकार का क्या काम है?          केंद्रीय नेतृत्व से मिलाओ हां भाड़ में जाय जन्म भूमि माँ

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