डब्बल इंजन ने उत्तराखंड के मोरी ब्लॉक सटूड़ी गांव के लिए शिक्षा पाना अभिशाप बना दिया

Pahado Ki Goonj

उत्तरकाशी मोरी /(मदन पैन्यूली)आपको बताते चलें कि सीमांत ब्लॉक मोरी के सटुड़ी गांव में पुल नहीं होने से बच्चे शिक्षा से वंचित है। स्थिति इतनी खराब है कि आपदा में पुल बहने के कारण गांव के ग्रामीण बीते सात सालों से अपने बच्चों को कक्षा पांच तो पास करा लेते है, लेकिन आगे की शिक्षा के लिए गांव में कोई स्कूल न होने से

 उफनाई नदी पर पुन न होने के कारण गांव के बच्चे आगे की पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। गांव के बच्चों का भविष्य अधर में लटका हुआ है। वहीं बीमार व गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य उपचार के लिए भी भारी दिक्क्तों का सामना करना पड़ रहा है।सरकार का बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजनाओं को संचालन का यह नारा राज्य के दूर दराज में लागू करने के लिए साधन उपलब्ध नहीं है।

मामला जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 185 किमी. सड़क मार्ग तथा छह किमी.की पैदल दूरी पर स्थित मोरी ब्लॉक के सटुड़ी का है। जहां मानसून के दौरान उफनाई सुपिन नदी के साथ ही अन्य कोई रास्ता न होने के कारण ग्रामीण अपने गांव में ही कैद हैं। गांव तक पहुंचने के लिए सुपिन नदी पर बना पुल वर्ष 2012 की आपदा की भेंट चढ़ गया था। तब से आज तक इस स्थान पर पुल का निर्माण तो दूर जिला प्रशासन ने ट्राली का निर्माण करना तक उचित नहीं समझा। ग्रामीणों ने पुल बहने के बाद गांव तक पहुंचने के लिए लकड़ी की बलियों का कच्ची पुलिया तैयार की थी, जो वर्तमान समय में पूरी तरह जर्जर हो गया है। ग्रामीण जब इस पर आवागमन कर रहे हैं तो पुल पुरी तरह हिलता रहता है। जिससे ग्रामीण जान जोखिम में डालकर आवागमन करने मजबूर हैं। ज्यादा परेशानी बीमार व गर्भवती महिलाओं को स्वास्थ्य उपचार को दिक्क्तों का सामना करना पड़ रहा है।
क्या कहते हैं सटुड़ी के ग्रामीण
45 परिवारों वाले सटुड़ी गांव के करीब 300 की आबादी वाले ग्रामीणों को जान जोखिम में डालकर किसी तरह पकड़ -पकड़कर पुल को पार करना पड़ता है। सबसे ज्यादा परेशानी प्रसव पीड़िता व बीमार लोगों को उठानी पड़ती है। पुल न होने के कारण गांव में दैनिक उपभोग की आवश्यक वस्तुओं को पहुंचाने में भी परेशानी होती है। खाने का सामान आदि जरूरी वस्तुयें भी गांव में दो गुने दाम पर ग्रामीण खरीदने को विवश हैं।
ऐलासी देवी ,निवासी सटुड़ी का कहना है कि
आपदा में पुल बहने पर ग्रामीणों ने सुपिन नदी पर लकड़ी का कच्चा पुल बनाया है, जो अब जर्जर स्थिति में। इस पुल चलने से यह हिलता रहता है। जिसपे उन्हें चलने पर बहुत डर लगता है। नदी में बहने के डरने के कारण ग्रामीण कक्षा पांच के बाद आगे की शिक्षा के लिए बच्चों को अन्य पास के गांव में पढ़ाई के लिए नही भेज पाते हैं। इस स्थान पर पुल लगना जरूरी है। ताकि हमारी जैसे बच्चे अनपढ़ न रहे।
गजेन्द्री, निवासी सटुड़ी बताती है कि
पुल निर्माण के लिए कई बार गोबिन्द्र वन्य जीव विहार व शासन प्रशासन से गुहार लगाई है। लेकिन अभी तक शासन स्तर से कोई सुध नहीं ली गई है। कहा कि कई जगह का चयन किया गया। लेकिन पुल निर्माण की कार्यवाही अधर में हैं। कहा कि सतलुज जलविद्युत निगम की परियोजना निर्माण में सुरंग व निर्माण कार्यो की अनुमति तो मिल जाती है। लेकिन ग्रामीणों की समस्याओं पर ध्यान देने को तैयार नहीं है।
ग्राम प्रधान सटुड़ी ज्ञान सिंह ने सरकार से गुहार लगाई है कि
हमारे भाई -बहनों का भविष्य तो बचा लो सरकार
सुपिन नदी पर बने लकड़ी के पुल से गुजरने वाली गांव की किशोरी रीना ने बताया कि गांव में प्राथमिक विद्यालय के बाद दूसरा कोई स्कूल नहीं है। जिससे गांव अधिकांशा बच्चे आगे की पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। नदी को पार करने में हर दिन खतरा बना रहता है। जिससे मेरी जैसी कई किशोरियां व किशोर कक्षा पांच के बाद आगे की पढ़ाई से वंचित हैं। हमारा भविष्य तो बर्बाद हो गया है, लेकिन हमारे छोटे भाई बहनों का भविष्य बर्बाद न हो इसके लिए सरकार को पुल के साथ ही सड़क व अन्य मूलभूत सुविधायें मुहैया करनी चाहिए।

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