मोदी सरकर में देश बहुत बर्बाद होने से लोकतंत्र खात्मे की कगार पर है

Pahado Ki Goonj

नई दिल्ली। याद कीजिए कि संप्रग सरकार के समय भ्रष्टाचार, लोकपाल, निर्भया रेपकांड के बाद सिविल सोसायटी के बड़े आंदोलन हुए। अनेक बड़े-बड़े प्रदर्शन, आंदोलन, रैलियां हुईं जिन्हें मीडिया ने हाइप दिया। विपक्ष और स्वतंत्र लोगों ने समर्थन दिया। लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में देश बहुत बर्बाद हुआ है। लोकतंत्र खात्मे की कगार पर है। मोदी-काॅरपोरेट-आरएसएस मंडली की मनमानी हो रही है। सबकुछ प्राइवेट को सौंपा जा रहा है। जमकर भ्रष्टाचार हो रहा है मगर उसे दबाया जा रहा है। सरकार के देश और समाज विरोधी निर्णयों पर कोई आवाज उठाता है तो उसे देशद्रोही इत्यादि बताकर प्रताड़ित और बदनाम किया जाता है। एक नागरिक के रूप में हमारे अधिकार खत्म किये जा रहे हैं और हम जागकर सरकार की जोर-जबरदस्ती के खिलाफ नहीं बोल रहे हैं तो आगे चलकर हम खत्म हो जाएंगे। अब जब चुनाव सिर पर है तो कुछ लोगों को सुधि आई है। देश की सिविल सोसाइटी एक बार फिर कुछ करने की तैयारी में हैं। पिछले 5 सालों में देश में बने राजनैतिक और सामाजिक हालात, आम लोगों से जुड़े मुद्दों को उठाते हुए सिविल सोसाइटी एक बार फिर इस चुनावी माहौल में उतरने की तैयारी कर रही है। इसके लिए बाकायदा उन्होंने सेक्युलर विपक्षी दलों से संपर्क भी किया है।
इसमें कांग्रेस, सीपीआई, सीपीएम, डीएमके, आरजेडी, टीडीपी, एनसीपी, नैशनल कॉन्फ्रेंस, आप, जेडीएस, टीएमसी, योगेंद्र यादव की स्वराज इंडिया और सीपीआईएल के भाग लेने की बात कही जा रही है। प्रमुख वक्ताओं में सियासी जगत से कांग्रेस से यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी, सीपीएम से सीताराम येचुरी, सीपीआई से डी राजा, आरजेडी से मनोज झा, डीएमके से टीकेएस इलंगोवन, योगेंद्र यादव और सीपीआईएमएल की कविता कृष्णन शामिल हैं।
यह पहला मौका होगा कि कांग्रेस अधिवेशन के बाद सार्वजनिक तौर पर राहुल और सोनिया ने एक मंच से लोगों को संबोधित करेंगे। कांग्रेस मैनिफेस्टो रिलीज के मौके पर भी सोनिया ने भाषण नहीं दिया था। इस आयोजन से सिविल सोसाइटी ऐक्टिविस्ट हामिदा सईद जैसे चेहरे भी जुड़े हैं, जो यूपीए के दौर में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता में बनी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के सदस्य थीं। इस आयोजन के दो हिस्से होंगे। पहले हिस्से में सिविल सोसाइटजी 10 से 12 बिंदुओं को लेकर एक डिमांड अजेंडा सामने रखकर राजनैतिक दलों से मांग करेंगे कि वे इसे अपने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में शामिल करें। इन बिंदुओं को जन सरोकार अजेंडा नाम दिया गया है।
दूसरे हिस्से में मोदी सरकार के खिलाफ एक चार्जशीट तैयार की जाएगी। इसके तहत 2014 में उन्होंने सरकार में आने से पहले जो वादे किए थे, उनकी वास्तविकता और इसके अलावा अलग-अलग पैरामीटर्स व योजनाओं पर मोदी सरकार की नाकामी को दर्शाया जाएगा। पीडीएस योजना की हकीकत, मनरेगा की दयनीय स्थिति, देश की लोकतांत्रिक संस्थानों पर चोट जैसे मुद्दों पर घेरने की तैयारी की जाएगी। देश के आम नागरिकों को देश हित में चिंतन करने की आवश्यकता है।

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