राजधानी गैरसैण अभियान के41वें दिवस पर लोक सर्वेक्षण जनजागृति अभियान का किया आगाज

Pahado Ki Goonj

41वें दिवस पर लोक सर्वेक्षण जनजागृति अभियान का किया आगाज| 10 लाख लोगों तक अप्रत्यक्ष व 50 हजार लोगों तक प्रत्यक्ष पहुंचने का रखा गया है लक्ष्य

देहरादून 27.10.2018| गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान* द्वारा 17 सितम्बर 2018 से प्रारम्भ धरना आज 41वें दिवस में प्रवेश कर चुका है| इस मौके पर *गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान ने आज *लोक सर्वेक्षण जनजागृति अभियान* का आगाज एक प्रेस वार्ता के माध्यम से किया गया| इस अवसर पर *गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान* के पदाधिकारियों ने कहा कि राज्य निर्माण अवधारणा की लड़ाई लड़ने वाली महान संघर्षशील ताकतों की अगली लड़ाई को अब हमने अपने हाथ में लिया है| क्यूंकि आज तक इस प्रदेश में स्थाई राजधानी का हल नहीं किया जा सका है, और इस प्रश्न को जनबूझकर टाला जा रहा है क्यूंकि सरकार समझती है कि गैरसैंण गंभीर मुद्दा नहीं है। उन्होंने कहा कि इस आंदोलन को सरकार बेहद ही हल्के में ले रही है। प्रेस वार्ता में कहा गया कि बहरहाल हम उत्तराखंड की अवधारणा को जीने व जीतने वाली शक्तियों की इस विचारधारा से आत्मसात करते हुए कि उत्तराखंड प्रदेश की स्थाई व पूर्णकालिक राजधानी गैरसैंण बने, गैरसैंण के पक्ष में ऐसे समय में जबकि निकाय चुनावों के माध्यम से प्रदेश की अवाम लोकतंत्र के पर्व में उतरी हुई है, *गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान* भी जनता के मध्य एक *सामानांतर प्रचार अभियान गैरसैंण राजधानी को लेकर* चलाने जा रही है। सामानांतर प्रचार अभियान एक लोक सर्वेक्षण जनजागृति अभियान के रुप में सृजित किया गया है। इस लोक सर्वेक्षण जनजागृति अभियान को मूलतः पारदर्शिता और सुशासन क्षेत्र में कार्यरत संगठन *आरटीआई लोक सेवा* ने विशेषतः गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान हेतु विकसित किया है।
उत्तराखंड प्रदेश की स्थाई व पूर्णकालिक राजधानी गैरसैंण के सवाल पर *आरटीआई लोक सेवा* द्वारा सृजित व गैरसैंण राजधानी निर्माण अभियान द्वारा संचालित किए जा रहे लोक सर्वेक्षण में 03 पृष्ठों में 08 प्रश्न रखे गए हैं जिनमें उन कारणों पर सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की गई है कि जिसके द्वारा स्थाई व पूर्णकालिक राजधानी आज 18 वर्ष बाद भी हल नहीं हो पाई है। लोक सर्वेक्षण के माध्यम से जनता से राय मांगी जा रही है कि वह इस मुद्दे को लम्बित रखने की पक्षधर है अथवा स्वयं भी स्थाई हल का निवारण चाहती है। इस लोक सर्वेक्षण में देहरादून की जनता में तेजी से पनपते विचार कि देहरादून को अस्थाई राजधानी के बोझ से अवमुक्त किया जाए को प्रमुखता प्रदान है। लोक सर्वेक्षण में उत्तराखंड की विभिन्न सरकारों द्वारा लिए गए निर्णय जैसे कि एक विधानसभा रिस्पना पुल के समीप (देहरादून मेंद्), एक विधानसभा भवन भराड़ीसैण (कर्णप्रयाग जनपद में) व एक विधानसभा भवन (रायपुर, देहरादून में प्रस्तावित व चयनीत) बनाकर, राजधानी प्रश्न को लंबित ही रखे जाने को प्रमुखता से उठाया गया है। इस लोक सर्वेक्षण द्वारा प्रदेश की स्थायी राजधानी कहॉं पर बने के प्रश्न को राज्य निर्माण विधेयक में पूरी तरह से खारिज करने एवम् वर्तमान में देहरादून से अस्थायी राजधानी का संचालन बिना किसी शासनादेश जारी किए संचालित किए जाने को पूर्णतः अलोकतांत्रिक व अवैधानिक मानने पर रायशुमारी मांगी गई है। लोक सर्वेक्षण के द्वारा राजधानी गैरसैण स्थापित करने के पीछे ठोस लोकतांत्रिक और व्यवस्थागत विचारधारात्मक तर्कों को अवाम के बीच लाए जाने का प्रयास किया गया है। जिसमें राजधानी गैरसैण बनने से लोक ईच्छा का सम्मान होना, राज्य निर्माण की अवधारणा का पूर्ण होना, राज्य निर्माण आंदोलन व संगठनों की रुकी हुई व अनिर्णित मांग का पूर्ण होना, हिमालयी राज्यों की राजधानी हिमालयी क्षेत्रों में ही होना, सत्ता के निर्णयक केन्द्र विधानमंडल, सचिवालय आदि को हिमालयी समाज व सरोकारों के प्रति अधिक संवेदनशील व जवाबदेह बनाने एवम् सीमांत प्रदेश की राष्ट्रीय सुरक्षा आवश्यकताओं के प्रति सर्व शासकीय संस्थान व तंत्रिका में अधिक सजगता व पूर्ण ईमानदारी से कार्य संपादित करने को बेहद ही संजीदगी से पूछा गया है।
लोक सर्वेक्षण में राजधानी गैरसैण में आवश्यक ढांचागत विकास नहीं किया जा सकता है, गैरसैंण सभी जनपदों से सुदूरवर्ती क्षेत्र है, व उससे हिमालयी पर्यावरण-पारिस्थितिकी पर प्रतिकूल असर पड़ेगा| जैसे तर्कों को भी स्थान देकर यह जताया गया है कि गैरसैंण स्थाई राजधानी के मुद्दे पर ठोस विमर्श करने भागेगा नहीं।
साथ ही इस लोक सर्वेक्षण में प्रदेश के नेताओं, बाबूओं, नौकरशाहों व अफसरों आदि के परिवारों को भौतिकवादी सुविधाएं जैसे बड़े-बड़े अंग्रेजी स्कूल, सिनेमा हॉल, मॉल, क्लब इत्यादि से वंचित होना पडेगा को भी रायशुमारी का हिस्सा बनाकर अवाम को यह बताने का प्रयास हो रहा है कि क्यों राजधानी गैरसैंण के मुद्दे को लटकाया जाता रहा है। लोक सर्वेक्षण में यह बात भी उठ रही है कि हिमालयी समाज, पर्वतीय अवाम और आम जनता के पिछड़ेपन को दूर करने व पलायन को रोकने आदि सवालों पर कुछ प्रगति व भलाई जब आज तक नहीं की गई हैं तो आगे भी कोई नवीन रचना कर क्यूॅं बड़ी जहमत उठाई जाए। इसके अलावा अस्थाई राजधानी देहरादून में किए गए अनाप शनाप खर्च के बाद अब अन्यत्र खर्चा किये जाने पर बु(मता को ईमानदारी से लोक सर्वेक्षण का हिस्सा बनाया गया है। गैरसैंण से इतर विचार हेतु एक अहम उत्तर में यह राय जानने का प्रयास कि क्या गैरसैण का मुद्दा व विचार, धूर्त किस्म के राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों को सब नागरिकों के बीच पहाड़-मैदान / गढ़वाल-कुमाऊ / अगड़ा-पिछड़ा आदि परस्पर विरोधी समाज में बॉंटने का मौका प्रदत्त करती हैं, व केवल इसलिए इस गंभीर सवाल पर अधिक माथा-पच्ची न की जाए ताकी सबके लिए बेहतर रहेगा को उठाकर वर्तमान में प्रचलित कुटिल राजनीति को कसकर झकझोरने का प्रयास किया गया है।
लोक सर्वेक्षण में प्रदेश सरकार द्वारा गठित एक सदस्यीय जस्टिस विरेन्द्र दीक्षित आयोग के गठन को हिस्सा बनाया गया है ताकी उसकी विशेषज्ञता पूर्ण सिफरिश अथवा आयोग का गठन के पीछे स्थायी राजधानी के प्रश्न को सुलझाने की बजाय उलझाने को जनता के बीच लाया जा सके को प्रमुखता दी गई है। लोक सर्वेक्षण के द्वारा सत्ता की उस मानसिकता जो लोकतांत्रिक दृष्टिकोण और आवाज को तकनीकी आधार पैदा कर मनमाने तरीके से अवाम पर अपना निर्णय थोपती है, आदि को हिस्सा बनाया गया है। इस लोक सर्वेक्षण का एक और अहम पहलु यह है कि इसमें अवाम को इस बात से परिचय कराया जा रहा है कि जस्टिस विरेन्द्र दीक्षित आयोग के गठन की तरह से ही उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में 02 अक्टूबर 1994 के रामपुर तिराहा कॉंड के बाद न्यायमूर्ति राजेश्वर सिंह (एकल सदस्यताद्) मुजफ्फरनगर जांच आयोग का गठन व बाद में न्यायमूर्ति जहीर हसन आयोग (एकल सदस्य) का गठन और ठीक इसी क्रम में 10 नवम्बर 1995 के श्रीयंत्र टापू कॉंड (श्रीनगर, गढ़वाल में) पर जस्टिस वी.पी.सिंह जांच आयोग (एकल सदस्यद्) का गठन करना, व इन सबकी जांच या तो पूर्ण नहीं हुई या फिर उनकी रिपोर्टों पर शून्य कारवाई ही हुई।
स्थायी राजधानी के प्रश्न को हल करने के लिए इस लोक सर्वेक्षण में अवाम के स्टैंड को सन् 1992 में गठित रमाशंकर कौशिक समिति की प्रदत्त सिफारिश, सन् 1994 से सन् 2000 में उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन के सर्व राजनैतिक दलों व संगठनों की संस्था ‘उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति’ द्वारा पारित संकल्प व असंख्य ज्ञापन जिसमें उत्तराखंड गठन व उसकी राजधानी गैरसैण बनाने की मांग, सन् 1992 के बागेश्वर मेला अधिवेशन में पारित उक्रांद (अविभाजितद्) का राजनैतिक संकल्प व प्रस्ताव कि उत्तराखंड की राजधानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर ‘चंद्रनगर’ के नाम से दुधातोली, भराड़ीसैण, गैरसैण और चौखुटिया में बने आदि के आधार पर भी मांगा गया है। उत्तराखंड की राजधानी के पक्ष में ‘21वीं सदी का राज्य, 21वीं सदी की राजधानी’ सोच के साथ आधुनिक व पर्यावरण-पारिस्थितिकी के आधार पर गैरसैण में विकसित करने के आंदोलनकारी संगठनों द्वारा प्रदेश गठन से पूर्व ही 29 सितम्बर 2000 को पारित संकल्प, प्रस्ताव एवम् ब्लू प्रिंट का जिक्र कर यह समझाने का प्रयास भी इस लोक सर्वेक्षण में है कि सरकार भले ही अंधेरे में तीर चलाती हो परंतु इस मुद्दे को लड़ने वालों के पास ठोस कार्ययोजना गैरसैंण को लेकर प्रारम्भ से रही है।
गैरसैण राजधानी निर्माण अभियान और इस लोक सर्वेक्षण के रचनाधर्मी संगठन आरटीआई लोक सेवा के दावों की बात मानें तो लोक सर्वेक्षण जनजागृति अभियान के पूर्ण होने तक अनुमान है कि इस अति महत्वपूर्ण मुद्दे पर अप्रत्यक्ष रुप में कम से कम 01 मिलियिन आबादी क्षेत्र को कवर किया जाएगा। इसके अतिरिक्त लगभग 50 हजार लोगों से इस सर्वेक्षण में सीधे तौर पर डाटा संकलन कर विश्लेषण किया जा सकेगा। उनका दावा है कि ऐसा इसलिए संभव होगा क्योंकि लोक सर्वेक्षण जनजागृति अभियान पर पूछे गए सवालों को सोशल मीडिया जैसे कि व्हाट्सएप (Whatsapp) , फेसबुक Facebook) , इंस्टाग्राम (Instagram), ट्वीटर (Twitter) और अन्य उपलब्ध माध्यमों द्वारा अभिप्रसारित करने की रणनीति पर भी इस संगठन द्वारा यु(स्तर पर की जा रही है। इस हेतु लोक सर्वेक्षण जनजागृति अभियान की प्रश्नावली प्रारुप को प्रिंट फॉर्म (Print Form) व गुगल फार्म (Google Form) दोनों के साथ साथ पीडीएफ फॉर्म (PDF Form) में भी उपलब्ध करवाया जाना सुनिश्चित किया जा रहा है। ताकी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा जा सके। गैरसैण राजधानी निर्माण अभियान इस रायशुमारी द्वारा अवाम के बीच से गैरसैंण के पक्ष में बड़ी लामबंदी करेगा यह भी स्पष्ट दिख रहा है। इसमें अवाम से गैरसैण राजधानी निर्माण अभियान में अपनी भूमिका तलाशने का मौका देकर उत्तरदाताओं को बतौर सक्रिय अभियानकर्मी, जनगीत, कविता, पोस्टर, पर्चा आदि के रचनाकार की भूमिका में, आंदोलन को आर्थिक व ढांचागत सुविधा प्रदान करने वाले सहयोगी की भूमिका में, गैरसैंण स्थाई व पूर्णकालिक राजधानी बने विचार को अभिप्रसारित करने हेतु घुम्मकड़ी भाषणकर्ता / वाद-विवाद वक्ता के रुप में, सोशल मीडिया एक्टिविस्ट (Social Media Activist) के रुप में पहचानकर संगठन की आगामी रणनीति से जोडने की झलक प्रेस वार्ता को माध्यम से बताई गई| आज की प्रेस वार्ता को संबोधित करने वालों व धरना कार्यक्रम में आने वालों में डीएवी महाविद्यालय के पूर्व महासचिव सचिन थपलियाल, युवा नेता मदनसिंह भंडारी, आरटीआई लोक सेवा के अध्यक्ष मनोज ध्यानी, दुबई से आई प्रवासी समाजसेविका गीता चंदोला, हर्ष मैंदोली, सुमन डोभाल काला, कृष्ण काँत कुनियाल, उपेन्द्र चौहान, उत्तराखंड अगेंस्ट करप्शन के सुरेश नेगी, सोबन सिंह बिष्ट, राकेश चन्द्र सती, सुभाष रतूडी, अनूप पोखरियाल, राष्ट्रीय कवि राधाकृष्ण पंत, श्रीमती मोहनी चौहान, अंकित सिंह, राजेन्द्र सिंह, अभिषेक सिंह, बिजेन्द्र सिंह, परमेश, लुसून टोडरिया, गणेश धीमी, सौरभ रावल आदि उपस्थित थे|

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