चम्पावत जिले का कच्छे में अफसर,नुमांइदे बिस्तर पर

Pahado Ki Goonj

कच्छे में अफसर,नुमांइदे “बिस्तर” पर
● अजब हाल अपने चम्पावत जिले का
●आम जनता की समस्याओं से कोई नहीं सरोकार
●नेता जी सैलानियों की तरह कर जाते है टूर
===============
दिनेश चंद्र पांडेय,चम्पावत: जब आप यह आलेख पड़ रहे हों हो सकता है कि मानसून की रिमझिम फुहारें आपको ताजगी का अहसास करा रही हों।दूसरा प्रशासनिक फेरबदल के चलते चम्पावत में नये कलक्टर के रुप में अपने पुराने डीएम सत्येंद्र नारायण पांडेय को दूसरी बार जिले की कमान सभांले एक हफ्ता हो रहा होगा। दोनों ही घटनाओं जिले के लिए सुखद कही जा सकती है।जहां पानी सूरज की गर्मी से राहत दे रहा है वहीं नए डीएम के आने कई अव्यवस्थाऐं खुद व खुद पटरी पर आने लगी है।
वैसे इस दफा पहाड़ की वादियां में भाष्करदेव ज्यादा ही मेहरबान रहे। पारे का आलम यह रहा कि सुबह से ही घाम बेहाल किए रहा और ऊमस का कुछ ज्यादा ही अहसास इस बार दिखा।हांलाकि एक हफ्ते बाद सावन के साथ ही चौमांस की दस्तक तेज होने को है, । अबके गर्मी की इस ऊमस से ही तमाम अफसर हाफ पेंट(जंग्या) और टी शर्ट की स्मार्टी पोशाक के मोहपाश में ऐसे बंधे है कि उनकी छांग्या उतर ही नही रही है। वहीं नुमांइदों को बिस्तर प्यारा लग रहा है।ऐसे में समझा जा सकता है कि विकास के कामकाज सहित अन्य कामों में अजगरी आलस्य की बानगी देखते ही बनती है।जिसका खामियाजा आम जनता ने ही उठाना है।
जहां तक चम्पावत जनपद का सवाल है भले ही इसकी उम्र 22 साल की होने जा रही हो।लेकिन कई मायनों में यह जिला बच्चों के “ककहरे” सीखने जैसी स्थिति में है। जो सुविधा आज के दौर में विकसित इलाकों में दशकों पहले मिल चुकी है उनके लिए दूरस्थ इलाके फिलवक्त भी जद्दोजहद की स्थिति में है। सड़क जैसी मूलभूत सुविधा के लिए दर्जनों ग्रामीण इलाकों को लोकतंत्र के महापर्व चुनाव का बहिष्कार करना पड़ता है तो “कर लो दुनिया मुठ्ठी” के दौर में अपनों की कुशल-क्षेम के लिए मोबाइल के सिंगल ढूंढने पहाड़ की धारों में जाना मजबूरी है।नेपाल सीमा से लगे इलाकों में तो अपनों की नमस्कार भी “नमस्ते -नेपाल” सेवा से करनी पड़ती है।जहां थोड़ी बहुत सुविधा है भी तो वहां अक्सर टावरों की खराबी सिरदर्द पैदा कर देती है।
स्वास्थ्य सेवा तो लकवाग्रस्त है ही।इन इलाकों के कई क्षेत्रों में वार्डबाय या चतुर्थ श्रेणी के कर्मियों के हाथ रोगियों की नब्ज रहती है।यही वजह है कि यहां झोलाझाप या नीम हकीम की गिरफ्त के कारण ज्यों ज्यों दवा की,मर्जी बढाता ही गया का जुमला भी सार्थकता ले लेता है।
हर घर को रोशन करने का दावा सरकारें करती तो है पर राजस्व गांवों और तोकों के चक्कर में कई दूरस्थ तोक अभी भी रोशनी के इंतजार में है।हांलाकि उर्जा निगम का आंकड़ा फाइलों में लगभग पूरे जिले को जगमग कर चुका है । वैसे उरेडा के जरिए भी इस क्षेत्र में कार्य किया जा रहा है ।
वहीं दूर के कई ऐसे इलाके है जहां आये दिन लाइनों की खराबी उपभोक्ताओं को बेहाल कर देती है। तल्लादेश,गुमदेश, बनलेख से सूखीडांग तक का इलाका हो या भिगराडा -पनार -देवीधूरा क्षेत्र यहां जंगली क्षेत्र से लाइनें गुजरने के कारण फाल्ट आते रहते है। ट्रांसफार्मर फुंकने की घटनायें तो कोढ़ में गाज बन जाती है।
ऐसा ही हाल पिथौरागढ़ से जिले को आने वाली सप्लाई का है। आंधी तूफान बारिश या बर्फवारी के दौरान जिले के लोग घंटों बत्ती से महरूम हो जाते है।
टनकपुर से लेकर चम्पावत तक नई विद्युत लाइन बनाने की मांग पर सार्थक पहल कभी नजर नहीं आई।
पानी का मामला तो और भी बेहाल है। फिल्टर तंत्रों और लाइनों के रखरखाव में हर साल लाखों की धनराशि खर्चने के बाद भी साफ पानी नहीं मिलता है। जबकि जिला मुख्यालय चम्पावत में तो उपभोक्ता पुरानी पालिका की कारगुजारियों के चलते तीन गुना पानी का बिल भरने को विवश है और इस मामले में नेताओं के होंठ सिले हुए है।
सड़क, बिजली,पानी,स्वास्थ्य जैसी मूलभूत जरूरतों के अलावा सरकारी शिक्षा बेहाल है। जहां मास्टरों के शराब पीकर स्कूल जाने और बालिकाओं के साथ उत्पीड़न की घटनाऐं शर्मसार करने वाली है।
साथ ही आमजनता को छोटे से छोटे काम के लिए भटकना, परेशान होना, रिश्वत के मकड़जाल में फसना मजबूरी बना है। ऐसे में नुमांइदों का क्षेत्र से पीठ फेरे रहना और अफसरों को टरकाऊ निति परेशान करने वाली है।जनप्रतिनिधि जहां सैलानियों की तरह दो तीन महिनों में एक दो दिन दौरा कर फेसबुक व सोशल मिडिया में पोस्ट कर चंपत हो जाते है।वैसे ही तमाम अफसर भी अक्सर मुख्यालय में कम ही दिखते है। जो है भी उनमें से कुछ तो लंच बाद दर्शन ही नहीं देते। वह दफ्तर पुहचेंगे या नहीं उनकी पोशाक से अनुमान लगाना पड़ता है। अगर लंच बाद आवास में उन्होंने “जंग्या” पहन लिया तो समझो अब मुश्किल है दफ्तर जाना ।
बहरहाल चम्पावत जिले के हाल फिलवक्त तो बेहाल ही है ।
•••••••••••••••••••••••••••••

“पांडेजी” के आने से हडकंप
===========
चम्पावत: बीसवें जिलाधिकारी के रुप में सत्येंद्र नारायण पांडेय की दुबारा तैनाती से सरकारी अमले में जहां हडकंप है। वहीं आम जनता में खुशी है।पांडे अपने पहले कार्यकाल से कायदे कानून के साथ बेहतर अनुशासन और जनता का दुख दर्द समझने और उनका सही व समयबद्ध समाधान करने वाले अफसर के रूप में पहचान बना चुके है। उनके आने से भष्ट्र व कामचोर सरकारी मशीनरी तो खासी घबराहट में है।
=================

दलाल टाइप कर्मियों की हो रही “पुल-पुल”
••••••••••••
चम्पावत: जिले में बड़े अधिकारियों की चमचागिरी कर दलाली करने और छोटे कर्मचारियों में धौंस जमाने वाले तथाकथित अफसरों की भी पांडे के दुबारा डी एम बनने से सिट्टी पिट्टी गुम है। क्योंकि पहले कार्यकाल में उन्हें इनकी हरकतों का पता चल गया था।और कुछ को तो उन्होंने सबक भी सिखाया और परेशान करने वाले कर्मियों की नकेल भी कसी।
=================

गलत लोगों में प्रशासन का खौफ
नही
••••••••••••
चम्पावत: जिले में प्रशासनिक कार्यप्रणाली भी लचर रही है।प्रशासनिक अफसरों का माफियाओं,गलत लोगों में खौफ नहीं है।फलस्वरुप अवैध गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पाता है। जहां सही काम के लिए सामान्य लोग परेशान रहते है वहीं जुगाड़ व पहुच वाले गलत कामों को भी करा ले जाते है।
================

बहुद्देशीय शिविरों की दरकार

चम्पावत: जनपद में आम जनता की समस्याओं के त्वरित समाधान के लिए बहुद्देशीय शिविरों की दरकार है। जिलाधिकारी के तौर पर बेहद ईमानदार व जनप्रिय रहे गोपाल कृष्ण द्विवेदी ने चम्पावत जिले से ही बहुद्देशीय शिविर का कांसेप्ट इजाद किया था।आज पूरे प्रदेश में यह राहत दे रहा है । पर इस जिले में प्रशासनिक अमले के अजगरी आलस्य से यहां इसकी स्थिति बदतर है। इन शिविरों में मेडिकल कैंप के साथ राजस्व, ग्राम विकास,समाज कल्याण के जहां कई कार्य होते थे।वहीं विभागीय स्टाल लगाकर योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंचता था। बिजली, पानी, टेलीफोन तक के बिल जमा हो जाते थे। वर्तमान में रोस्टर तो है पर महज खानापूर्ति के लिए ही शिविर लगते है।
================

Next Post

तस्वीर भारत विभाजन के समय की है इतिहास के किसी दस्तावेज में यह दर्ज नहीं कि पुरुष के कंधे पर बैठी यह स्त्री उसकी पत्नी , बहन , बेटी है,

तस्वीर भारत विभाजन के समय की है। इतिहास के किसी दस्तावेज में यह दर्ज नहीं कि पुरुष के कंधे पर बैठी यह स्त्री उसकी पत्नी है, बहन है, बेटी है, या कौन है। बस इतना स्पष्ट है कि एक पुरुष और एक स्त्री मृत्यु के भय से भाग रहे हैं। […]

You May Like